03 March 2022

बिना शासनादेश और बजट के परिषदीय स्कूलों में बनाए जा रहे किचन शेड

बदायूं। विधानसभा चुनाव से ऐन पहले जिले में बिना किसी शासनादेश व बजट के परिषदीय स्कूलों में किचन शेड बनाने का काम शुरू करा दिया गया जो बदस्तूर जारी है। मनरेगा के जरिये फिलहाल प्रधान निजी स्तर पर यह काम करा रहे हैं जिसका मस्टररोल भी जारी नहीं किया जा सका है। मौखिक निर्देश पर अजीबोगरीब ढंग से कराया जा रहा ये काम चर्चा का विषय बना है। प्रधानों में इसे लेकर रोष है और उन्हें अपनी रकम फंसने का खतरा नजर आ रहा है।


जिले में करीब 2400 परिषदीय विद्यालय हैं और लगभग सभी के पास अपना भवन है। यहां मिडडेमील बनाने की रसोई भी है और स्कूलों के कमरों व बरामदे में बच्चों के दोपहर का भोजन करने की व्यवस्था भी। बावजूद इसके टिन शेड बनाकर उनमें बच्चों को बैठाकर भोजन कराने का नया शिगूफा छेड़ा गया। प्रधानों से मिली जानकारी के मुताबिक विकास व पंचायत विभाग के अफसरों के मौखिक निर्देश पर वे यह टिन शेड बनवा रहे हैं। वही लोग निजी स्तर पर पैसा भी खर्च कर रहे हैं। भरोसा दिलाया गया है कि बाद में भुगतान हो जाएगा।

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ग्राम निधि और मनरेगा से होना है भुगतान
प्रति टिन शेड का व्यय दो लाख 22 हजार रुपये बताया जा रहा है। इसमें छत की टिन ग्राम निधि से 47 हजार रुपये से डालने व बाकी रकम का भुगतान मनरेगा से कराने की बात अफसरों ने प्रधानों को बताई है। बताते हैं कि अब तक इसका मस्टररोल जारी न होने व जियो टैगिंग न होने से मनरेगा भुगतान में अड़चन आ सकती है।
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कुछ स्कूलों में तो दो-दो शेड बनाए जा रहे
सभी स्कूलों में शेड बनाने का निर्देश दिया गया। इनमें से पहले चरण में 721 में शेड बनाने का काम शुरू हो गया, करीब पांच सौ स्कूलों में शेड बन भी गए हैं। शुरू में आचार संहिता व अन्य बहानों से प्रधानों ने इसे बनाने में ढील की तो अफसरों ने मौखिक रूप से ही पेच कस दिए। इसके बाद बचे खुचे प्रधान भी इसे बनवाने लगे हैं। कहीं एक स्कूल में दो-दो शेड भी बनाए जा रहे हैं। हालांकि यह स्कूल संविलियन हैं। एक ही शेड से दो स्कूलों का काम चलाया जा सकता है।
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प्रधानों पर दबाव बनाकर हो रहा काम, विरोध करेंगे : धारा
राष्ट्रीय पंचायती राज ग्राम प्रधान संगठन के जिलाध्यक्ष दिनेश कुमार धारा का कहना है कि चुनाव से पहले जल्दबाजी में मौखिक रूप से आदेश देकर कराए गए काम का उन्होंने पहले भी विरोध किया था। अब फिर विरोध किया जाएगा। पूरा काम नियमों को ताक पर रखकर किया जा रहा है। इसमें न जियो टैगिंग की गई है और न मस्टररोल जारी हुए हैं। ऐसे में कराए गए काम को तकनीकी रूप से साबित करना मुश्किल हो जाएगा और प्रधानों की रकम फंसेगी। अधिकारियों को पहले ही स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी।
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चुनाव से पहले शासन स्तर से पूछा गया था कि परिषदीय स्कूलों में शेड हैं या नहीं। इस लिहाज से अधिकारियों ने इन्हें बनवाने का निर्देश दिया था। यह एक बेहतर प्रयास है। ग्राम पंचायत स्तर से इसका टेंडर निकाला गया था। अधिकतर धन मनरेगा से निकाला जाएगा। इसका मॉडल एस्टीमेट 2.22 लाख है जो कुछ बढ़ या घट सकता है।
- आरएस यादव, डीसी मनरेगा