समाज और राष्ट्र की रीढ़ होते हैं शिक्षक, शिक्षण को महत्ता देने का समय, टापर्स को इंजीनियर, डाक्टर और सिविल सेवकों के अलावा शिक्षक बनने की ओर उन्मुख करने के प्रयास करने होंगे।


शिक्षण को महत्ता देने का समय, टापर्स को इंजीनियर, डाक्टर और सिविल सेवकों के अलावा शिक्षक बनने की ओर उन्मुख करने के प्रयास करने होंगे।


समाज और राष्ट्र की रीढ़ होते हैं शिक्षक 


एक युवा छात्र ने पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे ए. अब्दुल कलाम से किसी अवसर पर पूछा था- 'सर आपको जीवन में महान चीजों को हासिल करने की प्रेरणा कैसे मिली?' डा. कलाम ने उत्तर दिया, मैं जब पांचवीं कक्षा में था तब प्राथमिक विद्यालय के मेरे शिक्षक शिव सुब्रमण्यम अय्यर से मुझे प्रेरणा मिली। उन्होंने मुझे बताया कि पक्षी कैसे उड़ते हैं। उस दिन फैसला किया कि मैं उन मशीनों के साथ काम करूंगा, जो उड़ सकती हैं। कुछ वर्षों बाद युवा कलाम ने भारत को अपने लड़ाकू विमानों, उपग्रहीं और मिसाइलों को हवा और अंतरिक्ष में उड़ाने की क्षमता प्रदान दी।


वास्तव में शिक्षक समाज और राष्ट्र की रीढ़ होते हैं। वे सामाजिक मनोबल और भविष्य के नेताओं का निर्माण करते हैं। हमारे देश में लगभग 97 लाख शिक्षक हैं, जिनकी तैनाती 15 लाख स्कूलों में है। इनमें से दो तिहाई से अधिक शिक्षक सरकारी स्कूलों में हैं, जो अक्सर आर्थिक रूप से वंचित वर्ग के बच्चों के जीवन में ज्ञान की उम्मीद जगाते हैं। वास्तविकता यह है कि भारत में एक लाख से अधिक स्कूल सिर्फ एक-एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में हैं। भारत की शिक्षा के यही नायक देश के उन 25 करोड़ बच्चों का भविष्य लिखते हैं, जी इनसे शिक्षा ग्रहण करते हैं। विकास के इन स्तंभों की बेहतरी, गुणवत्ता, प्रेरणा और सुधार एक ऐसा मुझ होना चाहिए जिस पर तत्काल ध्यान दिया जाए। हम ऐसा कैसे कर सकते हैं ?


सबसे पहला मुद्दा गुणवत्ता का है। हर बार सर्वेक्षणों से यही सामने आता है कि वैश्विक स्तर पर भारत की शिक्षा गुणवत्ता के पैमाने पर बहुत नीचे है। यह एक ऐसे राष्ट्र के लिए चिंताजनक है, जो अपने युवाओं पर गर्व करता है। शिक्षण की स्थिति में सुधार के लिए हमें शिक्षकों की स्थिति में सुधार करना होगा। इसके लिए हमें शिक्षकों को चुनने और उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में बनाए रखने के तरीके को बदलने की जरूरत है। हमें बीएड और एमएड जैसे प्रोग्राम में सुधार करने की जरूरत है, जो अब पुराने और अप्रासंगिक हो गए हैं। चूंकि इन डिग्रियों को हासिल कर ही अधिकांश शिक्षक तैयार होते हैं, इसलिए इनमें पढ़ाने और सीखने के मनोविज्ञान में आधुनिक तरीकों को शामिल करने की आवश्यकता है। 


शिक्षक अपनी गुणवत्ता को परखें, इसके लिए देश की सर्वश्रेष्ठ कंपनियों और संस्थानों के साथ साझेदारी में उन्हें अनिवार्य प्रशिक्षण से गुजरने का समय दिया जाना चाहिए। इसरो, डीआरडीओ, हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड, मेट्रो रेल जैसे संगठनों और अन्य हाइटेक उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे स्कूली शिक्षकों को अत्याधुनिक तकनीक के विषय में प्रशिक्षित करें। शिक्षकों की वेतन वृद्धि को हर पांच साल में किए जाने वाले इस तरह के आकलन से जोड़ा जाना चाहिए। इससे बेहतर प्रदर्शन करने वाले शिक्षकों को तेजी से आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलेगा। विभिन्न क्षेत्रों का अनुभव रखने वाले निजी क्षेत्र के जो कर्मचारी शिक्षक बनना चाहते हैं, उन्हें मध्यम स्तर पर शिक्षकों के पदों पर लैटरल इंट्री दी जानी चाहिए।


दूसरा पहलू फोकस का है। शिक्षक अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ होते हैं। उनके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए। उनका इस्तेमाल चुनाव ड्यूटी, जनगणना और टीकाकरण के लिए अतिरिक्त कार्यबल के रूप में नहीं किया जा सकता है। मुख्य भूमिका से हटाकर उन्हें इस तरह से दूसरे कामों में लगाना यह दिखाता है कि एक शिक्षक के काम को हम कितना सम्मान देते हैं। किसी कक्षा में शिक्षक की जगह कोई और नहीं ले सकता। कक्षा की अपनी ही एक गरिमा होती है। इसकी गरिमा से खिलवाड़ नहीं होना चाहिए।


तीसरा मसला विकास का है। एक शिक्षिका 20 साल की उम्र में अपना करियर शुरू करती है। लगभग चार दशकों की नौकरी में वह 50 साल की उम्र में ज्यादा से ज्यादा किसी स्कूल की प्रिंसिपल बनने की उम्मीद कर सकती है। उस उम्र और अनुभव के बाद भी उस शिक्षक पर नई नियुक्ति पर के आए एक नौकरशाह का हुक्म चल सकता है, जो खुद कभी शिक्षक की भूमिका में नहीं रहा होगा। शिक्षा नीति के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका न के बराबर होती है। हमें शिक्षा के क्षेत्र को शिक्षकों को सौंपने पर विचार करना चाहिए। स्कूल विभागों में वरिष्ठ प्रशासनिक पदों को विशेष रूप से पूर्व शिक्षकों को दे दिया जाना चाहिए। उन्हें यह तय करने देना चाहिए कि स्कूलों के लिए सबसे अच्छा क्या है।


अंत में काम के माहौल का मुद्दा है। किसी भी अन्य पेशेवर की तरह ही शिक्षक भी अपने काम की जगह पर सम्मान के हकदार हैं। दूरदराज के स्कूलों में परिवहन के लिए भत्ता, एक अच्छी तरह सुसज्जित स्टाफ रूम, शिक्षकों के लिए एक अच्छा शौचालय बुनियादी जरूरतों में शामिल हैं। अधिकांश स्कूलों में अक्सर इनकी कमी देखी जाती है। किसी भी वयस्क पेशेवर से इन सभी मुश्किलों को सह कर भी प्रेरित रहने की उम्मीद करना सच से परे है, जिनमें अधिकांश महिलाएं हैं।


शिक्षक की भूमिका किताबों को पढ़ाने भर से कहीं बड़ी है। शिक्षक एक मिसाल होता है जिसे बच्चे देखते हैं और उसके पदचिह्नों पर चलते हैं। वे न केवल भविष्य के कौशल का निर्माण करते हैं, बल्कि राष्ट्र के मूल्यों को भी आकार देते हैं। इसलिए हमारे युवाओं के बीच शिक्षण को पसंदीदा पेशा बनाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने चाहिए। किसी क्लास के टापर्स को इंजीनियर, डाक्टर और सिविल सेवकों के अलावा महान शिक्षक बनने की इच्छा भी रखनी चाहिए। इसके लिए आवश्यक यही होगा कि शिक्षण की आकांक्षी बनाया जाए ताकि नई पीढ़ी को इस पेशे से जुड़ने में पर्याप्त संभावनाएं नजर आएं।





✍️ सृजन पाल सिंह
( पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम के सलाहकार रहे लेखक कलाम सेंटर के सीईओ है)