टेक्नोलॉजी कभी शिक्षक का स्थान नहीं ले सकती


सत्या नडेला कहते हैं कि शिक्षा ही वह राह है, जो परिवारों और इंसानों की तकदीर बदल सकती है। एक शिक्षक का काम सबसे गंभीर और जिम्मेदारी का | टेक्नोलॉजी जरूर शिक्षण को आसान और उन्नत बनाने में मददगार हो सकती है, लेकिन टेक्नोलॉजी कभी भी एक शिक्षक और समुदाय की समर्पण भावना का विकल्प नहीं हो सकती।





हम जो तकनीक के क्षेत्र में काम कर रहे हैं, इस भ्रम में बिलकुल नहीं हैं कि तकनीक मानवीय चेतना, बुद्धिमत्ता और भावनात्मक स्पर्श की जगह ले लेगी। एआई के इस दौर में यह बहुत सारे लोगों की एक बड़ी चिंता का सवाल है कि क्या टेक्नोलॉजी इंसान को रिप्लेस कर देगी। सच तो यह है कि तकनीक कितनी भी आगे क्यों न बढ़ जाए, वो शिक्षकों की जगह कभी नहीं ले सकती।



हां, वह शिक्षकों का काम आसान जरूर बना सकती है। तकनीक शिक्षण की प्रक्रिया में मददगार हो सकती है, लेकिन एक टीचर की जो सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, बच्चों के भीतर छिपे टैलेंट और संभावनाओं को पहचानना और उन्हें प्रेरित करना। यह काम कोई टेक्नोलॉजी नहीं कर सकती। यह ह्यूमन टच के बगैर संभव नहीं। परिवार, समाज और शिक्षक, ये सब मिलकर बच्चे के विकास में मददगार होते हैं। तकनीक इन सबकी मददगार है, इनका विकल्प नहीं। मैं जितनी बार किसी शिक्षक से मिलता हूं तो उनके मुकाबले में अपना काम बहुत आसान लगता है।





मैं दुनिया भर में घूमा हूं। काहिरा से लेकर, अफ्रीका और तेल अवीव तक। मुझे लगता है कि पूरी दुनिया में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। नामुमकिन सी लगने वाली जगहों में अपार प्रतिभा का खजाना छिपा हुआ है। जरूरत एक मौके की आज सबसे बड़ी जरूरत शिक्षा के लोकतंत्रीकरण की है। एजुकेशन को एक सीमित प्रिविलेज्ड दायरे से निकालकर जन-जन तक पहुंचाने की। आज हमारे बच्चों को एक बेहतर कल के लिए तैयार करने की जरूरत है। टेक्नोलॉजी में कल को ऐसी-ऐसी नौकरियों होंगी, जो आज अस्तित्व में ही नहीं हैं। तकनीक का भविष्य हमारे बच्चों के कल का भविष्य है।



-सत्या नडेला के यह विचार माइक्रोसॉफ्ट के मंच पर दी गई स्पीच 'इम्पॉर्टेन्स ऑफ एजुकेशन' व अन्य भाषणों से लिए गए हैं।