06 July 2025

✍️ बिना TET समायोजन: न्याय के विरुद्ध प्रयोग

 

"बिना TET समायोजन: न्याय के विरुद्ध प्रयोग"



(लेखक: राहुल पांडे 'अविचल')


माननीय सर्वोच्च न्यायालय में स्टेट ऑफ तमिलनाडु एवं अन्य बनाम आर. वरुण एवं अन्य की विशेष अनुज्ञा याचिका में इंटरवेंशन एप्लीकेशन दाखिल करने के बाद मैंने सोचा था कि शायद अब संघर्ष को विराम मिल जाएगा। इससे पूर्व लखनऊ में तीन रिट याचिकाएं और इलाहाबाद में एक विशेष अपील दाखिल कर चुका था।


परंतु माननीय सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आने में विलंब होने के कारण अब यह देखने को मिल रहा है कि प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक का समायोजन उच्च प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के पद पर हो रहा है। जबकि यदि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय पहले आ जाता तो उसी की रोशनी में इन प्रधानाध्यापकों को उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक के पद पर पदोन्नति मिल सकती थी।


इसीलिए नैतिक रूप से मुझे एक बार फिर इलाहाबाद और लखनऊ में रिट दाखिल करनी पड़ रही है। सत्य यह है कि अब मैं स्वयं को इन तमाम मामलों से अलग करना चाहता हूँ, परंतु परिस्थितियाँ बार-बार मुझे रोक लेती हैं।


जिस संघर्ष की शुरुआत करूं, उसका न्यायपूर्ण और संतुलित समापन करना मेरे लिए केवल कानूनी नहीं बल्कि नैतिक जिम्मेदारी बन जाती है।


बहुतों ने देखा कि स्कूल मर्जर के मुद्दे पर मैं बिल्कुल निष्क्रिय रहा। इसका मुख्य कारण यह था कि यह मसला बच्चों और अभिभावकों से सीधा जुड़ा हुआ था, और मुझमें इतने सामर्थ्य की कमी है कि मैं मुकदमा माफियाओं से टकरा सकूं।


हाल ही में अल्पसंख्यक विद्यालयों में RTE एक्ट को लागू कराने को लेकर जो मामला माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चला, उसमें देश के सर्वश्रेष्ठ अधिवक्ताओं में एक — भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल ने कई दिन तक अपनी दलीलें दीं। मैं भी उस मामले से जुड़ी एक विशेष अनुज्ञा याचिका में इंटरवेनर था। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21(A) और 24 की अद्वितीय और प्रभावशाली व्याख्या की। उनके एक-एक शब्द आज भी मेरे मन में गूंज रहे हैं।


सत्य तो यह है कि जिन प्राथमिक विद्यालयों की दूरी 1 किलोमीटर और उच्च प्राथमिक विद्यालयों की दूरी 3 किलोमीटर से कम है, वे विद्यालय भी चाहें तो बंद होने से बचाए जा सकते हैं। परंतु जब कोई बच्चा या अभिभावक मुझसे संपर्क ही नहीं करता, तो मैं स्वयं पहल करने की स्थिति में नहीं रह पाता।


अब जहां तक समायोजन का सवाल है, मेरा एक ही सीधा प्रश्न है —

माननीय मद्रास उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया था कि उच्च प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक या प्रधानाध्यापक के पद पर सीधी भर्ती, पदोन्नति या स्थानांतरण — किसी भी माध्यम से यदि कोई व्यक्ति नियुक्त हो रहा है, तो उसके लिए उच्च प्राथमिक स्तर की TET उत्तीर्ण होना अनिवार्य है।


तमिलनाडु राज्य सरकार ने इस निर्णय को माननीय सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी। परंतु सर्वोच्च न्यायालय ने उस फैसले पर कोई स्टे नहीं दिया और विस्तृत सुनवाई के बाद अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है।


जब सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक निर्णय सुनाया ही नहीं था, उस समय मैंने मद्रास उच्च न्यायालय के निर्णय के आधार पर पदोन्नति पर स्टे आदेश प्राप्त किया था।


अब मेरा प्रश्न यह है कि जब उस आदेश से पदोन्नति रुक सकती है, तो फिर समायोजन या स्थानांतरण क्यों किया जा रहा है?


क्या यह उचित नहीं होगा कि जब उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बिना TET उत्तीर्ण व्यक्ति को उच्च प्राथमिक विद्यालय में नियुक्त नहीं किया जा सकता, तो यह नियम स्थानांतरण और समायोजन दोनों पर समान रूप से लागू होना चाहिए?


मेरी एकल पीठ की याचिका पर जो स्टे आदेश मिला था, उसे डिवीजन बेंच ने केवल इतना मॉडिफाई किया कि TET उत्तीर्ण व्यक्ति की पदोन्नति की जा सकती है।

इस प्रकार बिना TET उत्तीर्ण व्यक्ति की पदोन्नति पर अब भी मेरी रिट में स्टे जारी है।


डिवीजन बेंच के इस आदेश के चलते अब TET उत्तीर्ण व्यक्तियों का समायोजन भी संभव हो गया है, जिससे पदोन्नति के लिए जो रिक्तियाँ थीं, वे भी भरती जा रही हैं।


इसी डिवीजन बेंच के आदेश का हवाला देते हुए एक याची ने कंपोजिट विद्यालय में प्राथमिक विद्यालय के हेडमास्टर के कैडर को बदलकर उच्च प्राथमिक विद्यालय का सहायक अध्यापक किए जाने को लेकर अवमानना वाद दाखिल किया — जो कि खारिज भी हो गया। उन्हें रिट की अनुमति तो मिली पर उन्होंने रिट दाखिल नहीं की।


अतः, माननीय सर्वोच्च न्यायालय का सुरक्षित निर्णय और मद्रास उच्च न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के आलोक में बिना TET उत्तीर्ण प्रधानाध्यापकों का समायोजन मुझे अस्वीकार्य है, और मुझे बाध्य होकर पुनः याचिका दाखिल करनी पड़ रही है।