नई दिल्ली
बच्चे की स्थायी कस्टडी की मांग वाली पिता की याचिका पर हाई कोर्ट ने कहा कि बाल संरक्षण के मामलों में माता पिता के व्यक्तिगत अधिकार के बजाय नाबालिग का कल्याण सर्वोपरि है। इसमें इस बात का समग्र मूल्यांकन होना चाहिए कि कौन सी व्यवस्था बच्चे के शारीरिक, भावनात्मक, नैतिक और शैक्षिक कल्याण के लिए सर्वोत्तम होगी। अदालत ने याचिकाकर्ता की अपने नाबालिग बेटे की स्थायी कस्टडी की मांग वाली याचिका को खारिज करते हुए की।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल व न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने कहा कि जहां एक कम उम्र का बच्चा एक बेहतर वातावरण में रहता हुआ पाया जाता है, वहां केवल दूसरे माता-पिता की वित्तीय या भौतिक श्रेष्ठता के आधार पर ऐसी व्यवस्था को बाधित करना बच्चे के हित में नहीं होगा। पीठ ने कहा कि पारिवारिक न्यायालय ने कस्टडी के दावे पर निर्णय देते समय, बच्चे के कल्याण
बच्चे की स्थायी कस्टडी की मांग वाली पिता की याचिका खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने की टिप्पणी
पर उचित विचार किया था और बच्चे के साथ बातचीत करने के बाद निष्कर्ष निकाला था कि वह मां की देखभाल और संगति में सहज है।
याचिकाकर्ता ने बच्चे की चिकित्सा आवश्यकताओं और समग्र कल्याण की चिंता का हवाला देते हुए दावा किया कि वह और उसका परिवार उसे बेहतर और सुरक्षित पालन-पोषण प्रदान करने के लिए बेहतर स्थिति में हैं। हालांकि, इन तर्कों से असहमति जताते हुए पीठ ने कहा कि यह दोहराया जाना चाहिए कि कस्टडी के मामलों में नाबालिग बच्चे का कल्याण ही सर्वोपरि है। इसकी कसौटी प्रतिवादी माता-पिता के व्यक्तिगत अधिकार या प्राथमिकताएं नहीं हैं। हालांकि, माता-पिता की वित्तीय क्षमता या बेहतर देखभाल एक प्रासंगिक विचार हो सकता है, लेकिन यह अकेले बच्चे के कल्याण की व्यापक जांच को आधार नहीं हो सकता।