19 November 2025

69,000 सहायक शिक्षक भतीं की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू: सामान्य वर्ग की दलील, कम अंकों का लाभ लेने के बाद सामान्य में नहीं जा सकता आरक्षित वर्ग

 

उत्तर प्रदेश में 69,000 सहायक शिक्षक भर्ती मामले में सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को शुरू हुई। सामान्य वर्ग के याचियों ने कहा कि एक बार कम कटआफ अंकों का लाभले चुके आरक्षित वर्ग को बाद में अधिक अंकों के आधार पर सामान्य श्रेणी का नहीं माना जा सकता। जस्टिस दीपांकर दत्ता व जस्टिस एजी मसीह की पीठ अब 16 दिसंबर को सुनवाई करेगी।



उत्तर प्रदेश में 2018 में हुई 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की खंडपीठ ने 13 अगस्त, 2024 को मेरिट लिस्ट रद कर दी थी और तीन महीने में नई मेरिट लिस्ट बनाने का आदेश दिया था। इस फैसले को सामान्य वर्ग के नौकरी ज्वाइन कर चुके अभ्यर्थियों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने शुरुआती सुनवाई में याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। हालांकि आरक्षित वर्ग ने भी हस्तक्षेप अर्जियां दाखिल की हैं और हाई कोर्ट के आदेश का समर्थन करते हुए अंतरिम रोक के आदेश का विरोध किया है।


मंगलवार को मामले की नियमित सुनवाई शुरू हुई। सामान्य वर्ग के याचियों की ओर से बहस शुरू करते हुए वरिष्ठ


वकील मनीष सिंघवी ने कहा कि हाई कोर्ट की खंडपीठ के आदेश से उनकी नौकरी पर संकट आ गया है। यहां मुद्दा आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को सामान्य श्रेणी में गिने जाने का है। हाई कोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए कहा कि आरक्षित वर्ग को टीईटी में उम्र आदि चीजों में छूट मिली थी। टीईटी पात्रता परीक्षा है इसलिए उस पर उन्हें कोई एतराज नहीं है, लेकिन शिक्षकों की सीधी भर्ती के लिए एसोसिएट टीचर रिक्रूटमेंट एग्जामिनेशन (एटीआरई) होता है जो खुली प्रतिस्पर्धा है।


में सामान्य वर्ग के लिए 65 प्रतिशत और आरक्षित वर्ग के लिए 60 प्रतिशत अंकों की कटआफ थी। 40 प्रतिशत अंक हाई स्कूल, इंटरमीडिएट एवं बीटीसी की परीक्षा के औसत से लिए गए थे। ऐसे में आरक्षित वर्ग के जिन अभ्यर्थियों के कुल अंक सामान्य वर्ग की मेरिट सूची में शामिल अभ्यर्थियों से अधिक हो गए थे, उन्हें सामान्यवर्ग की श्रेणी में गिने जाने की मांग की गई थी। हाई कोर्ट ने ये दलीलें स्वीकार कर ली थीं।


सिंघवी ने कहा कि जब आरक्षित वर्ग ने एटीआरई में कम अंक की छूट ले ली है तो उसे बाद में सामान्य श्रेणी में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता। याचियों ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट में वे पक्षकार नहीं थे, उन्हें सुने बगैर आदेश दिया गया। इस पर प्रतिवादी आरक्षित वर्ग के वकील निधेश गुप्ता ने कहा कि हाई कोर्ट में सामान्य वर्ग के अभ्यर्थी भी पक्षकार थे। सार्वजनिक नोटिस भी छपा था। मनीष सिंघवी ने कई पूर्व फैसलों का हवाला देकर कहा कि अगर कोई उम्र या फीस आदि में छूट लेता है तो वह मेरिट में आने पर बाद में सामान्य वर्ग में स्थानांतरित हो सकता है, लेकिन कोई परीक्षा में अंकों की छूट लेता है तो वह बाद में अधिक अंकों की दलील देकर सामान्य श्रेणी में गिने जाने का दावा नहीं कर सकता।