17 December 2025

नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज

लखनऊ। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष वर्ष 2017 में ही एक जनहित याचिका दाखिल करते हुए, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के नियुक्ति को चुनौती दी गई थी। याचिका में तब दोनों के लोकसभा सदस्य रहते हुए, मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री पद धारण करने को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि दोनों नियुक्तियां संविधान के पूर्णतः अनुरूप थी।



यह निर्णय न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने संजय शर्मा की याचिका पर दिया है। याचिका में तर्क दिया गया था कि 19 मार्च 2017 को शपथ ग्रहण के समय योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य दोनों संसद सदस्य थे, इसलिए वे एक साथ दो संवैधानिक पद नहीं संभाल सकते थे। याची ने इसे शक्तियों के पृथक्करण और ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के सिद्धांत के विरुद्ध बताया था।


अपने विस्तृत निर्णय में हाईकोर्ट ने सभी दलीलों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि संविधान में ऐसा कोई स्पष्ट या निहित प्रावधान नहीं है, जो किसी सांसद को मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री बनने से रोकता हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सांसद का पद कोई “संवैधानिक पद” नहीं बल्कि एक निर्वाचित पद है, जबकि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 164 के तहत की जाती है। न्यायालय ने यह भी कहा कि संविधान स्वयं यह अनुमति देता है कि कोई व्यक्ति, जो राज्य विधान मंडल का सदस्य नहीं है, वह छह माह की अवधि तक मुख्यमंत्री या मंत्री रह सकता है। इस अवधि के भीतर योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा भी दे दिया था। ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मुद्दे पर कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 102(1)(a) के स्पष्टीकरण में स्पष्ट रूप से मंत्रियों को इस अयोग्यता से बाहर रखा गया है। न्यायालय ने कहा कि याचिका में कोई संवैधानिक या विधिक आधार नहीं है।