03 September 2025

विस्तृत विधिक-संवैधानिक विश्लेषण — सुप्रीम कोर्ट के TET फैसले (1 सितम्बर 2025) के परिपेक्ष्य में* ⚖️📚

 

*विस्तृत विधिक-संवैधानिक विश्लेषण — सुप्रीम कोर्ट के TET फैसले (1 सितम्बर 2025) के परिपेक्ष्य में* ⚖️📚



*सार (संक्षेप)*  

सुप्रीम कोर्ट ने *TET* (Teacher Eligibility Test) को *नियुक्ति, सेवा-रहने* और *पदोन्नति* के लिए अनिवार्य किया; इन-सर्विस शिक्षकों (RTE लागू होने से पहले नियुक्त) को *2 वर्ष* का समय दिया गया है और जिनकी सेवा में *5 वर्ष से कम* शेष है उन्हें नियमित सेवा में बने रहने की छूट दी गई है (पर प्रमोशन हेतु वे भी TET पास करना होगा)। अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू करने के प्रश्न को *लार्जर बेंच* के समक्ष भेजा गया है। 0


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*1. फैसला क्या कहता है — बिंदुवार (तथ्यगत आधार)*  

- *TET आवश्यक*: क्लास 1–8 स्तर के शिक्षकों के लिए TET न्यूनतम योग्यता रहेगी; नियुक्ति/पदोन्नति/सेवा में बने रहने के लिए यह बाध्यकारी है। 1  

- *इन्-सर्विस शिक्षकों हेतु अवधि*: RTE/टेट लागू होने से पहले नियुक्त उन शिक्षकों को जिनकी सेवा में *5 वर्ष से अधिक* शेष है, *2 वर्षों* में TET पास करने का अवसर दिया गया; विफलता पर सेवा-समाप्ति/अनुसंगिक कार्रवाई हो सकेगी। जिनकी सेवा में *<5 वर्ष* शेष है, उन्हें नौकरी में बने रहने की अंतरिम छूट मिली है (पर प्रमोशन से वंचित रहेंगे यदि TET नहीं पास)। 2  

- *अल्पसंख्यक संस्थान*: अल्पसंख्यक-छूटा (Pramati-से जुड़े प्रश्न) बड़ी बेंच के समक्ष भेजे गए; तब तक कुछ अंतरिम स्थिति लागू है। 3


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*2. संवैधानिक मुद्दे — किन आधारों पर चुनौती संभव है (और कोर्ट इसमें कैसे सोचेगा)*


*2.1 अनुच्छेद 14 (समानता)*  

- *प्रश्न*: क्या पूर्व नियुक्त शिक्षकों पर बाद में TET थोपना *असमान/असमयिक वर्गीकरण* है?  

- *न्यायिक मानदण्ड*: अदालतें *Reasonable Classification* और *Intelligible Differentia* की कसौटी लगाती हैं — क्या लक्ष्य (बच्चों का शैक्षिक अधिकार, गुणवत्ता) वैध है और वर्गीकरण उससे संबंध रखता है? यदि हाँ, तो अनुच्छेद 14 चुनौती असफल रह सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने ताज़ा आदेश में यही विचार अपनाया — शिक्षा की गुणवत्ता सार्वजनिक हित है; इसलिए TET जैसी न्यूनतम योग्यता का अनिवार्यकरण *वैध* माना गया। 4


*2.2 अनुच्छेद 16 (सरकारी नौकरी में समान अवसर)*  

- *प्रश्न*: क्या पदोन्नति-मानदण्ड बदलना ‘न्यायसंगत’ है?  

- *निष्कर्ष*: यदि नया मानदण्ड *प्रोस्पेक्टिव* (आगे के लिए) लागू हो और पर्याप्त *संक्रमणकाल* दिया गया हो तो यह स्वीकार्य है; परन्तु अचानक, बिना तर्क या बिना पर्याप्त अवधि के बदलाव को कोर्ट रोक सकता है। इसी कारण कोर्ट ने *2 वर्ष* तथा *<5 वर्ष* की छूट जैसी संतुलनकारी व्यवस्थाएँ दीं — यह न्यायालय की ‘परोपेक्षता/विनियमन’ नीति का प्रमाण है। 5


*2.3 वैध-अपेक्षा (Legitimate Expectation) और Vested Rights*  

- पहले से नियुक्त व्यक्ति का दावा यह हो सकता है कि नियुक्ति के समय लागू नियम उनके लिये *वांछनीय अधिकार* (vested right) थे। पर सुप्रीम कोर्ट सामान्यतः कहता है: *यदि सार्वजनिक हित भारी है (बच्चों का अधिकार/गुणवत्ता), तो सीमित रीयल-विभिन्नियों के साथ नियम बदले जा सकते हैं*, बशर्ते नियमन *अनुपातिक* (disproportionate) न हो। इसलिए कोर्ट ने *पूर्ण-रिट्रोस्पेक्टिव* हटाने के बजाय *2 वर्ष का संक्रमण* और *<5 वर्ष छूट* दिया। 6


*2.4 अनुच्छेद 21A बनाम अनुच्छेद 30(1)* (शिक्षा का अधिकार बनाम अल्पसंख्यक संस्थाओं का अधिकार)  

- यह संवैधानिक द्वंद्व बड़ा नाजुक है। अदालत ने संकेत दिया कि *अनुच्छेद 21A* (बच्चों का शिक्षा-अधिकार) और *अनुच्छेद 30* (अल्पसंख्यक संस्थाओं का अधिकार) सहअस्तित्व कर सकते हैं; पर जहाँ बच्चों के मूल अधिकारों की हिफाजत का प्रश्न उठे, वहाँ *कुछ सामान्य गुणवत्ता मानक* लागू किए जा सकते हैं। इसलिए अल्पसंख्यक-छूट पर लार्जर बेंच को विचार भेजा गया। 7


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*3. क्या TET का यह अनुशासनिक/न्यायिक हस्तक्षेप ‘अन्य सेवाओं’ (जैसे NEET, PET, UPSC/PCS प्रमोशन आदि) के लिए मिसला बन सकता है?*


*3.1 सिद्धांततः — नहीं स्वतः:*  

- *प्रति-सेवा प्रकृति भिन्न*: शिक्षा एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ *शिक्षक-कुशलता* सीधे बच्चों के अधिकार-उत्पादन से जुड़ी है। चिकित्सा/पुलिस/प्रशासन में भी गुणवत्ता महत्त्वपूर्ण है, किन्तु वहाँ *पहचान की विशेषज्ञता, लाइसेंसिंग (medical registration)* और अलग नियमन पहले से मौजूद हैं। कोर्ट आम तौर पर *समान उपचार* तब तक लागू नहीं करता जब तक *समान सार्वजनिक जोखिम/विपत्ति* स्पष्ट न हो। इसलिए NEET-style या PET-style बाध्यता स्वतः पूरे प्रशासन पर लागू नहीं होगी। 8



*3.2 परन्तु सिद्धांतगत आधार मौजूद है — शर्तें कठिन होंगी:*  

- यदि कोई विभाग साबित कर दे कि *बिना नये योग्यता-मानक के सार्वजनिक सुरक्षा/जीवन/अधिकारों को भारी नुक़सान होगा*, तो न्यायालय अनुचित स्थितियों में *नए मानक* लागू करने का मार्ग स्वीकृत कर सकता है — पर न्यायालय संभावित प्रभाव, वैकल्पिक उपाय (training, re-skilling) और proportionality की कसौटी लगाकर ही आगे बढ़ेगा। यानी TET-type कदम का *कॉपिराइट* न सिर्फ़ उद्देश्य पर टिका होगा बल्कि *प्रभावों के संतुलन* पर भी। 9


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*4. संभावित चुनौतियाँ और उनकी सुदृढ़ता (विच्छेद)*


- *Article 14/16 चुनौतियाँ*: शिक्षक संघों की चुनौती का मुख्य आधार होगा *पूर्व नियुक्ति पर नई शर्त लगाना*—पर ऐसा चुनौती तभी सफल होगी जब कोर्ट मान ले कि संक्रमण/छूट पर्याप्त नहीं थे या नया मानदण्ड सार्वजनिक हित के संतुलन में असंगत है। ताज़ा आदेश में कोर्ट ने संक्रमण और छूट दी; इससे चुनौती की सफलता की सम्भावना घटती है। 10


- *प्रामाणिकता/प्रक्रियागत शुल्क*: यदि राज्य बिना नियम-परिवर्तन के सीधे प्रशासनिक आदेश से ‘आसान TET’ या व्यापक रियायत दे, तो वह NCTE-दिशानिर्देश/केन्द्रीय अधिसूचना के उलट होगा और शीर्ष न्यायालय में टिकेगा नहीं। यानी *विधायिक/केंद्रीय मान्यता* आवश्यक है; प्रशासनिक shortcuts जोखिम में पड़ेंगे। 11


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*5. प्रशासनिक व व्यवहारिक (policy) विकल्प — राज्य सरकारों के पास वैध और सुरक्षित रास्ते*  


1. *अधिक परीक्षा अवसर* (frequency): साल में अधिक बार TET/विकल्पीय सत्र आयोजित कराना — ताकि इन्-सर्विस शिक्षक दो वर्षों में पास कर सकें। 12  

2. *तैयारी सहायता*: नि:शुल्क कोचिंग, मॉक-टेस्ट, study leave, फीस प्रति-रिइम्बर्समेंट — विधिक रूप से सुरक्षित और सामाजिक रूप से न्यायसंगत। 13  

3. *प्रोफ़ेशनल डेवलपमेंट* (on-job training) — समयबद्ध मॉड्यूल जिसमें कम नंबरों को सुधारने की व्यवस्था; पर फाइनल-क्वालिफाइंग TET अनिवार्य रखा जाए। 14  

4. *केंद्रीय छूट का औपचारिक अनुरोध* (धारा 23(2) की परिस्थिति) — जहाँ राज्य डेटा दिखा दे कि विशेष कमी या परिस्थितिजन्य कारण हैं; पर यह विकल्प सीमित और अस्थायी रहेगा। 15


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*6. व्यावहारिक प्रभाव — किसे क्या करना चाहिए (अकुशल/सेवारत शिक्षकों के लिए सुझाव)*


- *तुरन्त चरण*: अपने रिकॉर्ड-केस, सेवा-समय की गणना और यह जाँचें कि आप *<5 वर्ष* के अंतर्गत आते हैं या नहीं (यदि हाँ तो फिलहाल छूट है पर प्रमोशन नहीं)। 16  

- *तैयारी योजना*: 2-वर्ष की समयसीमा को देखते हुए अभी से TET की तैयारी चालू कर दें — राज्य/सी.बी.एस.ई. के मॉक पेपर और NCTE गाइडलाइंस के अनुसार। 17  

- *संयुक्त रणनीति*: शिक्षक संगठन सामूहिक मांगें लगा सकते हैं — *अधिक परीक्षा सत्र, नि:शुल्क प्रशिक्षण, और व्यवहारिक शेड्यूल* — ये प्रशासनिक अनुरोध न्यायालयिक रूप से भी स्वीकार्य और व्यवहारिक हैं। 18


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*7. निष्कर्ष (समेकित विचार)*  

- सुप्रीम कोर्ट का *TET-निर्णय* शिक्षा के क्षेत्र में *गुणवत्ता-उन्मुख* एक निर्णायक कदम है—यह संविधान की *बच्चों के शिक्षा-अधिकार (Article 21A)* की सुरक्षा के दृष्टिकोण से समझा जाना चाहिए। 19  

- *कानूनी रूप से*, चुनौती के ठोस आधार होंगे पर कोर्ट ने संक्रमणकालीन व्यवस्थाएँ और छूट दी हैं—इसलिए *पूर्ण रूप से सफल/त्वरित प्रत्याहार* की संभावना सीमित है। 20  

- *नीतिगत तौर* पर राज्य सरकारों के लिए सबसे व्यवहारिक तथा संवैधानिक सुरक्षित मार्ग है: *अधिक परीक्षा-अवसर, तैयारी सहायक उपाय, और आवश्यकतानुसार केंद्र के समक्ष औपचारिक अनुरोध* — न कि एकतरफ़ा 'आसान/रियायती TET' लागू करना, जो न्यायिक चुनौती में टिकेगा नहीं। 21


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*प्रमुख संदर्भ (चयनित वेब-स्रोत)*  

1. *LiveLaw* — Supreme Court Mandates TET Qualification … (1 Sep 2025). 22  

2. *NDTV* — Teachers must clear TET to remain in service — SC. 23  

3. *Indian Express* — 'Must qualify TET, else no right for appointment & promotion consideration,' clarifies SC. 24  

4. *NCTE TET Guidelines (11 Feb 2011)* — आधिकारिक दिशा-निर्देश और न्यूनतम योग्यता। 25  

5. *India Today / New Indian Express / Shiksha* — summarised reporting on 2-year window and <5 year exemption. 26


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*अंतिम टिप्पणी (नैतिक-व्यवहारिक)*  

यह फैसला *कठोर* अवश्य है पर उसका उद्देश्य *लाखों बच्चों के गुणवत्तापूर्ण शिक्षा-अधिकार* की रक्षा है। संवैधानिक सिद्धांतों के भीतर अदालत ने संक्रमण/छूट के माध्यम से न्यायोचित स्थिरता और सुधार के बीच संतुलन रखा है। इसलिए वास्तविक प्रहार आज प्रशासनिक-नीतिगत (training, frequency) और शिक्षक-तैयारी पर होना चाहिए — यही दीर्घकालीन उपाय है। ✍️🙏