कर्मचारी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन वापस लेने का अधिकार
चंडीगढ़ः पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने एक फैसले में हरियाणा पुलिस के एक कांस्टेबल की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की कार्यवाही को अवैध ठहराते हुए उसे सेवा में बहाल करने का आदेश दिया। जस्टिस सुदीप्ति शर्मा की एकल पीठ ने यह फैसला प्रीतपाल द्वारा दायर याचिका पर सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी सरकारी कर्मचारी द्वारा स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का आवेदन तब तक प्रभावी नहीं होता, जब तक उसे स्वीकार न किया गया हो और कर्मचारी को यह अधिकार है कि वह इसे स्वीकार किए जाने से पहले वापस ले सके।
याचिका के अनुसार नारनौल निवासी प्रीतपाल वर्ष 1989 में हरियाणा पुलिस विभाग में कांस्टेबल नियुक्त हुए थे। नौ सितम्बर 2013 को उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए आवेदन दिया, जिसे 12 सितम्बर 2013 को ही व्यक्तिगत कारणों से वापस लेने का अनुरोध भी कर दिया था। संबंधित पुलिस अधीक्षक ने यह वापसी आवेदन 19 सितम्बर 2013 को आइजी को भेजा। इसके बावजूद विभाग ने उनकी मूल सेवानिवृत्ति अर्जी को स्वीकार करते हुए 30 सितम्बर 2013 को उन्हें सेवानिवृत्त घोषित कर दिया। इस आदेश को चुनौती
देते हुए प्रीतपाल ने नारनौल सिविल कोर्ट में याचिका दायर की जहां 16 जनवरी 2015 को अतिरिक्त सिविल जज, नारनौल ने उनके पक्ष में राहत दी। इसके बाद दोनों पक्षों ने जिला जज नारनौल के समक्ष अपील दायर की। जिला जज ने पांच फरवरी 2016 को राज्य की अपील स्वीकार कर ली और प्रीतपाल की अपील खारिज कर दी। आदेश को प्रीतपाल ने हाई कोर्ट में चुनौती दी।
मात्र तीन दिन में वापस लिया गया था आवेदन हाई कोर्ट ने पाया कि प्रीतपाल का सेवानिवृत्ति आवेदन मात्र तीन दिन बाद ही वापस ले लिया गया और विभाग ने बिना उस वापसी अर्जी पर निर्णय किए ही सेवानिवृत्ति आदेश जारी कर दिया। जस्टिस सुदीप्ति शर्मा ने कहा कि यह प्रक्रिया कानून के स्थापित
सिद्धांतों के विपरीत है और उस आदेश को टिकाऊ नहीं माना जा सकता। हाई कोर्ट ने जिला जज नारनौल के पांच फरवरी 2016 के आदेश को रद करते हुए निचली अदालत के 16 जनवरी 2015 के निर्णय को बहाल कर दिया। अदालत ने प्रीतपाल को तत्काल प्रभाव से सेवा में पुनर्नियुक्ति करने का निर्देश दिया।

