प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि विभागों में लंबित मामलों को एक समय सीमा में तय करने के लिए राज्य सरकार नीति निर्धारित करे। कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारियों के समय से छोटे-छोटे मामलों में फैसला न लेने की वजह से अदालतों में मुकदमों का बोझ बढ़ रहा है। ऐसे में अब यह जरूरी है कि राज्य एक रूपरेखा तय करें ताकि लंबित मामलों का जल्द निपटारा हो सके।
ग्रेच्युटी भुगतान को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर 20 अगस्त 2025 तक गेच्युटी के ब्याज मामले में निर्देश प्राप्त नहीं होता है तो शिक्षा निदेशक बेसिक व जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बलिया न्यायालय में उपस्थित रहेंगे। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने सुनैना सिंह की याचिका पर अधिवक्ता अनुराग शुक्ल की दलीलों को सुनकर दिया।
याची सुनैना के पति उच्च प्राथमिक विद्यालय मालीपुर, विकासखंड नगरा में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। सेवा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। विभाग ने सभी देय का भुगतान कर दिया लेकिन ग्रेच्युटी के ब्याज का भुगतान नहीं किया। याची ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
इससे पूर्व 22 जुलाई को सुनवाई के दौरान बेसिक शिक्षा अधिकारी ने कोर्ट को बताया था कि 1,40,571 रुपये ब्याज के भुगतान का प्रस्ताव सक्षम प्राधिकारी को भेज दिया गया है । सोमवार को सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कोर्ट को बताया कि संबंधित अधिकारियों को सूचना देने के बावजूद उनकी ओर से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है। कोर्ट ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि राज्य के अधिकारी अक्सर अपने वकीलों को समय पर निर्देश देने में विफल रहते हैं। इससे अदालत का कीमती समय बर्बाद होता है और न्याय मिलने में देरी होती है।
कोर्ट ने कहा कि राज्य के अधिकारियों को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन लगन और प्रतिबद्धता के साथ करना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि न्याय के हित में आज कोई प्रतिकूल आदेश पारित नहीं किया जा रहा है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि अगली तारीख तक निर्देश प्राप्त नहीं होते हैं तो निदेशक, शिक्षा (बेसिक), उत्तर प्रदेश, लखनऊ और जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, बलिया को अदालत के समक्ष उपस्थित रहना होगा। मामले की अगली सुनवाई 20 अगस्त, 2025 को होगी।