विलय के खिलाफ कानूनी लड़ाई: सही समय और रणनीति का महत्व
सम्मानित साथियों जो लोग मर्जर को लेकर कोर्ट गए उनकी नियत पर कोई प्रश्न चिह्न नहीं है क्योंकि उनके द्वारा मा हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के वरिष्ठतम अधिवक्ता की फीस चुकाने के लिये अथक प्रयास करके ही आर्थिक सहयोग प्राप्त किया होगा ।इसलिए जिन साथियों ने भी आर्थिक सहयोग किया और जो साथी पैरवी कर रहे थे उनका कार्य सराहनीय है ।सभी का लक्ष्य इस जनविरोधी एवं शिक्षा विरोधी आदेश पर रोक लगवाने का है
लेकिन सबाल टाइमिंग पर अवश्य खड़े होंगे क्योंकि आज वो दौर नहीं है कि आप याचिका दायर करें और तुरन्त आपके ही पक्ष में निर्णय आ जाये क्योंकि वर्तमान सरकार अहम् ब्रह्मस्मी की भावना से ओत प्रोत है और अपने किसी भी निर्णय को सही साबित करने के लिये सबकुछ कर सकती है ।
इसलिए यह आवश्यक है कि जब कोई विकल्प न रहे तो अंतिम विकल्प के रूप में मा न्यायालय की तरफ़ जाना चाहिए ।
तमाम उदाहरण हैं कि जल्दबाजी में कोर्ट जाकर नुकसान उठाना पड़ा है जैसे
१- एक कुछ लोग प्रशिक्षण मुक्ति को लेकर कोर्ट गए थे लेकिन नतीजा उल्टा रहा ।बल्कि एक निर्णय में कहा गया कि अप्रशिक्षित को नियुक्ति न दी जाए ।
२- ग्रेड वेतन ४६०० पर न्यूनतम वेतन को १७१४० को लेकर सैकड़ों याचिकायें दाखिल हुई लेकिन नतीजा शून्य रहा ।जब संघ ने लखनऊ में जोर दार रैली की तो श्री अखिलेश यादव की सरकार ने १ जनवरी २००६ से लेकर दिसंबर २००८ तक के शिक्षकों को पुन: विकल्प चुनने का अवसर प्रदान किया जिससे ६० हज़ार शिक्षकों को लाभ मिला ।
३- वर्ष २००५ में नियुक्त विशिष्ट बीटीसी शिक्षकों को पुरानी पेंशन दिलाने के लिए कुछ लोग कोर्ट गये
लेकिन वो हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट दोनों में हार गए ।गतवर्ष जब हमने महानिदेशक के समक्ष धरना प्रदर्शन किया तो वर्ष २००५ बैच के शिक्षकों को ओपीएस देने वाली फाइल चली और शासनादेश जारी हुआ जिससे अन्य विभागों के कर्मचारी इसका लाभ ले चुके लेकिन शिक्षकों को मा सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला देकर लटका दिया ।लेकिन हम आज भी पैरवी कर रहे हैं और शीघ्र ही कामयाब होंगे ।
४-समविलियन के समय भी जब हमने इको गार्डन में रैली की तो सबसे अनुरोध किया कि कोई भी इस सम्बन्ध में कोर्ट न जाए लेकिन फिर वो ही भावना कि कोर्ट जायेंगे और अपने पक्ष में निर्णय ले लेंगे,वाले साथी कोर्ट गए और निर्णय उल्टा रहा ।
गत वर्ष भी फेस रिकॉग्नाइज़ अटेंडेंस के विरुद्ध यदि कोई कोर्ट जाता तो आज तो सब उसी पद्धति से हाज़िरी दे रहे होते ।
इसलिए मेरा सुझाव है कि किसी प्रकरण में अंतिम विकल्प के रूप में ही कोर्ट जाया जाये
हमारा संगठन तो संघर्ष और संवाद के रास्ते से समाधान चाहता है लेकिन फिर भी कोई इस निर्णय के विरुद्ध डबल बेंच या सुप्रीम कोर्ट तक लेकर जाना चाहता है तो हम उसके भी सहयोग को तैयार हैं ।
DrDinesh Chandra Sharma