मिड डे मील रसोइयों को हाईकोर्ट से मिली बड़ी राहत, सभी को न्यूनतम वेतन देने का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी व अर्द्ध सरकारी प्राइमरी स्कूलों मे मिड-डे मील बनाने वाले रसोइयों को बड़ी राहत देते हुए न्यूनतम वेतन का भुगतान करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने 2005 से वेतन का अंतर जोड़कर सभी रसोइयों को देने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि मिड-डे मील रसोइयों को न्यूनतम से भी कम मात्र एक हजार रुपये वेतन देना बंधुआ मजदूरी है। जो संविधान के अनुच्छेद 23 में प्रतिबंधित किया गया है।



कोर्ट ने कहा है कि हर नागरिक को मूल अधिकार के हनन पर कोर्ट आने का अधिकार है वही सरकार का भी संविधानिक दायित्व है कि किसी के मूल अधिकार का हनन न होने पाए। सरकार न्यूनतम वेतन से कम वेतन नहीं दे सकती। कोर्ट ने केन्द्र व राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि मिड-डे मील बनाने वाले प्रदेश के सभी रसोइयों को न्यूनतम वेतन अधिनियम के तहत निर्धारित न्यूनतम वेतन का भुगतान सुनिश्चित करे।

कोर्ट ने सभी जिलाधिकारियों को इस आदेश पर अमल करते हुए सभी रसोइयों को न्यूनतम वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया है और केन्द्र व राज्य सरकार को चार माह के भीतर न्यूनतम वेतन तय कर 2005 से अब तक सभी रसोइयों को  वेतन अंतर के बकाए का निर्धारण करने का आदेश दिया है।
यह  फैसला न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने बेसिक प्राइमरी स्कूल पिनसार बस्ती की मिड-डे मील रसोइया चंद्रावती देवी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची को एकअगस्त 19 रसोइया के काम से हटा दिया गया था। जिसे चुनौती दी गई थी। 

याची का कहना था कि उसने एक हजार रुपये मासिक वेतन पर पिछले 14 साल सेवा की है। अब नए शासनादेश से स्कूल में जिसके बच्चे पढ़ रहे हों उसे रसोइया नियुक्ति में वरीयता देने का नियम लागू किया गया है। याची का कोई बच्चा प्राइमरी स्कूल में पढ़ने लायक नहीं है। उसे हटाकर दूसरे को रखा जा रहा है। अब वेतन भी 1500 रुपये कर दिया गया है। वह खाना बनाने को तैयार है। कोर्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्ति शक्तिशाली नियोजक के विरूद्ध कानूनी लड़ाई नहीं लड़ सकता और न ही वह मोलभाव करने की स्थिति में होता है।

कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 23 बंधुआ मजदूरी को प्रतिबंधित करता है। एक हजार वेतन बंधुआ मजदूरी ही है। याची 14 साल से शोषण सहने को मजबूर है। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने अपनी स्थिति का दुरूपयोग किया है। न्यूनतम वेतन से कम वेतन देना मूल अधिकार का हनन है। कोर्ट ने आदेश का पालन करने के लिए प्रति मुख्य सचिव व सभी जिलाधिकारियों को भेजे जाने का निर्देश दिया है।

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