आश्रित कोटे में अविवाहित पुत्री को शामिल करना भेदभाव नहीं

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आवश्यक वस्तु अधिनियम में परिवार में अविवाहित पुत्री को शामिल करने को संवैधानिक करार दिया है। कहा है कि यह मनमाना और विवाहिता पुत्री से विभेदकारी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि कंट्रोल आर्डर 2016 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकार राशन बंटवाती है। सस्ते गल्ले के दुकानदार सरकार के एजेंट होते हैं और इनके लिए स्थानीय निवासी होना जरूरी है।


कोर्ट ने कहा कि याची विवाहिता पुत्री है और दूर दूसरे गांव की रहने वाली है इसलिए वह मृतक आश्रित कोटे में राशन की दुकान का लाइसेंस पाने के योग्य नहीं है। मृतक आश्रित सेवा नियमावली राशन वितरण के मामले में लागू नहीं होगी। कोर्ट ने एकलपीठ के अविवाहित पुत्री को परिवार में शामिल करने को वैध करार देने के फैसले को सही माना और हस्तक्षेप से इन्कार कर दिया है। यह फैसला न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने कुसुम लता की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है। याची अपीलार्थी का कहना था कि उसके पिता नेकराम इटावा के नेवादी खुर्द गांव में सस्ते गल्ले के दुकानदार थे। उनकी मौत के बाद विधवा पत्नी सुमन देवी ने स्वयं को असमर्थ बताते हुए अपनी विवाहिता पुत्री के नाम आवंटन अर्जी दी। एसडीएम की अध्यक्षता में गठित समिति ने अर्जी खारिज कर दी। याची ने यह कहते हुए याचिका दायर की कि पांच अगस्त,19 के शासनादेश के खंड 4(10) को असंवैधानिक घोषित किया जाए क्योंकि परिवार में अविवाहित पुत्री को ही शामिल करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। विमला श्रीवास्तव केस के हवाले से कहा कि पुत्री में विवाहित व अविवाहित में भेद नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी जिसे विशेष अपील में चुनौती दी गई थी। खंडपीठ ने कहा याची विवाहिता पुत्री है जिसे परिवार में शामिल नहीं किया गया है। वह तहसील चकरपुर के राजपुर गांव की निवासी है। दोनों कारणों से वह आश्रित कोटे में दुकान का लाइसेंस पाने के योग्य नहीं है।

विवाहिता पुत्री को कोटे में राशन की दुकान नहीं दी जा सकती, हाई कोर्ट ने कहा- राशन दुकानदार सरकार का एजेंट, स्थानीय निवासी होना जरूरी