प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि जघन्य अपराधों में किशोर पर बालिग की तरह मुकदमा चलाने के लिए आईक्यू और ईक्यू टेस्ट कराया जाना अनिवार्य है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किशोर न्याय बोर्ड (जेजे बोर्ड) किसी बच्चे पर बालिग (वयस्क) की तरह मुकदमा चलाने के लिए आंतरिक भावना पर निर्भर नहीं रह सकता। उसका मानसिक-भावनात्मक परिपक्वता का वैज्ञानिक और कठोर मूल्यांकन आवश्यक है।
कोर्ट ने इसके लिए जेजे बोर्ड और बाल न्यायालयों के लिए 11 अनिवार्य दिशानिर्देशों का एक सेट तैयार किया है जिनका पालन तब तक किया जाएगा जब तक कि विधायिका इस संबंध में स्वयं कोई कानून नहीं बना लेती। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकल पीठ ने प्रयागराज निवासी किशोर की याचिका पर दिया है।
जॉर्जटाउन थाने में 2019 में किशोर पर हत्या सहित विभिन्न आरोपों में मुकदमा दर्ज किया गया था। अपराध
के समय किशोर की उम्र 17 साल छह महीने 27 दिन थी। जेजे बोर्ड ने उस पर पहले से दर्ज दो मुकदमों, जिला परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट, प्रारंभिक मूल्यांकन के आधार पर हत्या और अन्य अपराधों के परिणामों को समझने में सक्षम पाते हुए एक वयस्क की तरह मुकदमा चलाने का आदेश दिया था। अपीलीय न्यायालय ने भी जेजे बोर्ड के फैसले को बरकरार रखा। इन दोनों आदेशों को किशोर ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि किशोर न्याय बोर्ड, अपीलीय न्यायालय की ओर से उम्र निर्धारण के लिए किया गया प्रारंभिक मूल्यांकन कानून के अनुसार नहीं है और अविश्वसनीय है।
11 अनिवार्य बिंदुओं पर देना होगा ध्यान
बच्चों की उम्र का निर्धारण करने के लिए बौद्धिक क्षमता (आईक्यू) और भावनात्मक बुद्धिमत्ता (ईक्यू) का मनोवैज्ञानिक परीक्षण अनिवार्य रूप से किया जाए। परीक्षण के लिए मानकीकृत उपकरणों जैसे बिनेट कामत टेस्ट, विनलैंड सोशल मैच्योरिटी स्केल (वीएसएमएस), भाटिया बैटरी टेस्ट आदि का उपयोग किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में उपयोग की गई कार्यप्रणाली का उल्लेख होना चाहिए।
जघन्य अपराध करने की बच्चे की शारीरिक व मानसिक क्षमता और उसके परिणामों को समझने की क्षमता के संबंध में स्पष्ट निष्कर्ष दर्ज किए जाएंगे।
बोर्ड परिवीक्षा अधिकारी या बाल कल्याण अधिकारी को 15 दिन में सामाजिक जांच रिपोर्ट देने का निर्देश देगा।
बाल कल्याण पुलिस अधिकारी दो सप्ताह में बच्चे की और पारिवारिक पृष्ठभूमि पर रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
जघन्य अपराध के मामलों में, बाल कल्याण पुलिस अधिकारी एक महीने में गवाहों के बयान और जांच के अन्य दस्तावेज देगा।
बच्चे के किसी भी पिछले अपराध में संलिप्तता की संख्या और प्रकृति का विवरण देना होगा।
परिवीक्षा या सुधार केंद्रों में पूर्व प्रतिबद्धताओं का विवरण माना जाना चाहिए।
बोर्ड को जांचना होगा कि क्या कथित अपराध समान न्याय निर्णित अपराधों के दोहराए जाने वाले पैटर्न का हिस्सा है।
कानूनी हिरासत से बच्चे के भाग जाने का कोई भी इतिहास नोट किया जाना चाहिए।
बच्चे की बौद्धिक अक्षमता या मानसिक बीमारी की डिग्री, यदि कोई हो तो उसका आकलन किया जाना चाहिए।
बच्च्चे के स्कूल रिकॉर्ड और शिक्षा के इतिहास पर विचार किया जाना चाहिए।