69000 भर्ती:- 15000 शिक्षक भर्ती में क्यों नहीं जुड़ सके 16448 पद


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#69000भर्ती

15000 शिक्षक भर्ती में क्यों नहीं जुड़ सके 16448 पद
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15000 शिक्षक भर्ती को गतिमान हुए लगभग 2 वर्ष बीत चुके थे। 16448 पदों को जोड़े जाने के लिए आंदोलन जोरों पर था। बेशक मैं पद बढ़ोत्तरी के विरुद्ध था परन्तु लक्ष्मण मेला मैदान में मैंने उन क्रांतिकारियों को देखा था जो पूरी ऊर्जा के साथ आंदोलनरत थे। ऐसी जिजीविषा मैंने आंदोलन में बेहद कम ही देखी थी।

उस दौरान 15000 भर्ती के आंदोलन का नेतृत्व मैं कर रहा था। अंतिम पड़ाव पर सहयोगी के रूप में मेरे साथी थे जो लखनऊ में निरन्तर मौजूद रहे या किसी न किसी रूप में सहयोगी रहे वे थे शिवम अग्रवाल(जुझारू प्रत्याशी),आवेश विक्रम सिंह, अंशुमान श्रीवास्तव, अनिल मौर्या, पीयूष द्विवेदी, रविन्द्र यादव, अंकित रावत, विमल मिश्रा,सुरजीत यादव,आशीष पटेल, रोहित द्विवेदी, विनव चौधरी, अमित गंगवार, घनश्याम यादव, विवेक सिंह लखीमपुर, अनूप चावला, राहुल सिंह पीलीभीत, शशांक द्विवेदी, विकास मिश्रा आजमगढ़,संजीव राठौर, आकाश गुप्ता, अमित पटेल, गौरव सिंह, भारतेंदु सिंह, महेंद्र सिंह, लावण्य मिश्र अन्य बहुत साथी 15000 भर्ती के शीघ्र पूर्ण किये जाने की जद्दोजहद में थे।

16448 पद जोड़े जाने को लेकर हम सब बहुत चिंतित थे। एक रोज जब मैं और घनश्याम, विवेक सिंह के रूम पर रुके थे तो घनश्याम ने मुझसे पूछा कि तुमको क्या लगता है पद जुड़ पाएंगे। मैंने बहुत सोचने के बात उत्तर दिया था कि इतना आसान नहीं होगा।

घनश्याम ने कहा," आंदोलन जोरों पर है, सुना है मुख्यमंत्री व्यक्तिगत रूप से अब रुचि ले रहें हैं। मुझे पूरी उम्मीद है जल्द पद बढ़ोत्तरी का आदेश आ जायेगा।"

इस दफे मैं मौन था..... मौन इसलिए नहीं कि मुझे उत्तर नहीं पता था। मैं मौन इसलिए था क्योंकि मुझे भी चिंता हो रही थी कि यदि पुनः पद बढ़े तो आवेदन पुनः लिए जाएंगे और भर्ती पुनः 1 वर्ष आगे टल जाएगी। पुनः तमाम केस से जूझना होगा। भर्ती को पुनः पूर्ण करा पाना सम्भव नहीं होगा।

थोड़ी देर तक हम सब रूम पर आराम करने लगें थे। शाम 6 बजे सूचना मिली थी 16448 भर्ती आंदोलन के साथी विकास दुबे की हालत आंदोलन के दौरान बहुत बिगड़ गयी है। उनको सहारा हॉस्पिटल में भर्ती किया जा रहा है। मैंने कुछ साथियों से वस्तुस्थिति की जानकारी ली तो बताया गया कि हालत गंभीर है और विकास को विवेकानंद हॉस्पिटल से सहारा रेफर किया जा रहा है। मैंने घनश्याम और अनिल मौर्य से बात की थी उस दौरान कि हमे इस मुश्किल वक़्त में विकास से मिलने जाना चाहिए। अनिल मौर्य उन दिनों इलाहाबाद के केस की पैरवी के लिए इलाहाबाद में जमे थे। अनिल मौर्य और अंशुमान से बात के होने के उपरांत मैं, घनश्याम और विवेक सिंह विवेकानंद हॉस्पिटल की ओर निकल पड़े थे ।

रास्ते के दौरान अनिल मौर्य से बातचीत जारी थी उन्होंने मुझसे कहा था," तुम्हारा पास कुछ रुपये है?"
"हां, है।" मैंने कहा
"अगर भाई उन लोगों को रुपये की जरूरत हो तो दे देना, किसी की ज़िंदगी से बढ़कर नहीं है नौकरी।" अनिल मौर्य ने कहा।

"बिल्कुल भाई, मैंने और घनश्याम ने 50 हज़ार रुपये की व्यवस्था कर ली है। मुद्दों पर मतभेद हो सकते हैं परन्तु मनभेद नहीं है। हम उनके साथ मजबूती से खड़े हैं।" मैंने अनिल से कहा

विवेकानंद हॉस्पिटल पहुँचे ही थे कि विकास को लेकर सहारा जाया जा रहा था। अरशद भाई, गरिमा सिंह राजपूत, जिज्ञासा शुक्ला, अम्बरीष भाई वहाँ मौजूद थे। उस दौरान के मन मुटाव में किसी से बात किया जाना मुनासिब नहीं लग रहा था फिर भी वहां एक साथी से पूछा,"कैसी तबियत है?"

"सहारा रेफर किया है, वही देखते है डॉ क्या कहते हैं।" उसने कहा

हम लोग भी सहारा पहुँच चुके थे। वहां पहुँचकर विकास को मैंने एक बिस्तर पर बेसुध देखा था तब मैंने विवेक से कहा था कि यह हालात सरकारी व्यवस्था की देन है जिसने हमें कहां लाकर खड़ा कर दिया। वहां मैंने बहुत से लोगों से बात करने का प्रयास किया था पर सब हमको विरोधी के दृष्टिकोण से देख रहे थे, जिस कारण कोई बात करने को तैयार नहीं था। मैंने सहयोग हेतु एक साथी(नाम लिखना उचित नहीं) से कहा भी पर उन्होंने सहयोग लेने से भी मना कर दिया था।

कुछ दिनों बाद खबर मिली थी कि विकास को लेकर उसके माता पिता घर लेकर चले गए हैं।

उस दौरान आंदोलन चरम पर था। निरन्तर शासन स्तर से उनकी टीम की वार्ता गतिमान थी। एक रोज खबर मिली थी पद बढ़ोत्तरी को लेकर प्रस्ताव तत्कालीन मुख्यमंत्री ने शासन से तैयार किये जाने के निर्देश दे दिए है। दो दफे पद बढ़ोत्तरी आंदोलन में शरीक साथियों की मुलाकात तत्कालीन मुख्यमंत्री से हो चुकी है। मैं बेहद चिंतित था। आवेश विक्रम सिंह और पीयूष पांडेय निशातगंज कार्यालय पर अपनी नज़र गड़ाये हुए थे। वही मैं,रविन्द्र यादव, अंकित रावत, विवेक सिंह और घनश्याम सचिवालय की ओर निकल पड़े थे।सचिवालय में तत्कालीन अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह जी से भेंट हुई थी।

उनसे 15000 भर्ती को लेकर जब बातचीत हुई तो उन्होंने कहा," 15000 भर्ती अभी कर पाना सम्भव नहीं दिखाई दे रहा है। मुख्यमंत्री जी का निर्देश है कि 16448 पद जोड़ते हुए भर्ती पूर्ण की जाए। मुख्यमंत्री जी को परसों इस संदर्भ में पूरी फ़ाइल पद बढ़ाते हुए सौंपनी है। वे स्वयं इसकी घोषणा करेंगे।"

मैंने कहा," सर, पद बढ़ाया जाना पूरी तरह नियम विरुद्ध है।"
अपर मुख्य सचिव- मुझे न बताइये क्या नियम विरुद्ध है क्या नहीं! ज्यादा समस्या हो कोर्ट में चैलेंज कर देना।

मैंने कहा - जब कोर्ट जाना होगा तब तो जाएंगे ही सर परन्तु मुझे आपको यह बताना है कि यदि पद बढ़ोत्तरी की गई तो यह सीधे तौर पर माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों की अवहेलना है। जिसका दोषी आप ही समझे जाएंगे और न्यायालय में जवाब आपको ही देना होगा। वही दूसरी ओर तमाम अन्य भर्तियों में शासनादेश में स्पष्ट उल्लेखित होता है कि पदों की संख्या आवश्यकतानुसार घटाई अथवा बढ़ाई जा सकती है परन्तु बेसिक शिक्षा विभाग की किसी भर्ती में आज तक यह कॉलम उल्लेखित नहीं है। जिसके संदर्भ में मा0 उच्चतम न्यायालय के आदेश हमारे पास मौजूद है।

अपर मुख्य सचिव - इस संबंध में मुझे पूरी फाइल साक्ष्य सहित मुझे उपलब्ध करा सकते हो, कल 2 बजे तक?
मैं - बिल्कुल सर, मैं उपलब्ध कराता हूं।

मैं सचिवालय से निकलकर सीधे घर की ओर निकल पड़ा था। शाहजहाँपुर पहुँचते पहुँचते मुझे 10 बज गए थे। वही दूसरी ओर एक विधिवत पत्र तमाम कोर्ट आदेश को नज़ीर बनाते हुए बनाने की ज़िम्मेदारी शिवम अग्रवाल (जुझारू प्रत्याशी) को दे दी गयी थी। उनसे कहा गया था रात 12 बजे तक मुझे यह सब मेल पर चाहिए होगा। वही दूसरी ओर मैंने अन्य जरूरी कागजात, तमाम भर्तियों के शासनादेश एकत्रित कर लिए थे। मेल प्राप्त होते ही मैंने प्रिंट निकालकर, तमाम कोर्ट आदेश की प्रति निकालकर फाइल तैयार कर ली थी। रात के 2 बज चुका था, मेरे साथ अमित पटेल भाई और संजीव राठौर मौजूद थे।

वो 87 पन्ने आख़िर क्या थे?
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अगले दिन हम सचिवालय पहुँच गए थे समय से 1घण्टे पूर्व। कार्यालय के बाहर पड़ी कुर्सियों पर मैं बैठा था। आधा खुले दरवाज़े से सचिव साहब ने मुझे देख लिया था और घण्टी बजाते हुए कार्यालय के कर्मचारी से मुझे अंदर आने के लिए कहा।

मैं अंदर गया,उन्होंने मुझे बैठने के लिए कहा और फाइल मांगी। मैंने फ़ाइल को पॉइंट बाइज़ कर लिया था जिसको मैंने उन्हें समझाना प्रारंभ कर दिया था। 1 घण्टे के करीब समझाने के बाद उन्होंने अनुभाग के सभी कर्मचारियों को बुलवाया साथ ही न्यायिक विभाग की टीम को भी बुलाने हेतु कहा। 15 मिनट बाद सभी अधिकारी आ चुके थे। मुझे विस्तार से हर विषय को रखने हेतु कहा गया। तदोपरांत यह निष्कर्ष निकाल लिया गया कि पद बढ़ोत्तरी उचित कदम नहीं है। बेहतर है एक नई भर्ती निकाल दी जाए। बैठक में निष्कर्ष निकाला गया कि मुख्यमंत्री को 15000 भर्ती के नियुक्ति पत्र वितरण की जानकारी दी जाए और 16448 नवीन भर्ती के सम्बंध में शासनादेश ज़ारी किये जाने के सम्बंध में सूचित कर दिया जाए।

उक्त निष्कर्ष के उपरांत रविन्द्र यादव द्वारा फ़ाइल तत्कालीन निदेशक डी बी शर्मा जी के कार्यालय में रिसीव करा दिया गया। वही दूसरी ओर अनिल मौर्य के द्वारा सचिव इलाहाबाद को उक्त फाइल रिसीव करा दी गई। सच कहूं तो मैंने उस फ़ाइल के पन्नो को गिना भी नहीं था। मुझे तो जानकारी एक भाई की पोस्ट से हुई जिसमें उन्होंने मजाकिया लहज़े में लिखा था कि बीटीसी के चयनित 87 पन्नो का ज्ञापन पद बढ़ाने के विरोध में दे आएं है।

अंततः संघर्ष और प्रयास रंग लाया और काउंसलिंग व नियुक्ति पत्र वितरण आदेश 6 जून 2016 को निर्गत कर दिया गया। उसके ठीक 10 दिन बाद 16 जून 2016 को 16448 भर्ती का शासनादेश ज़ारी कर दिया गया।

69000 में पद बढ़ोत्तरी सम्भव या नहीं
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15000 भर्ती से सीख लेते हुए सरकार ने एक काम अवश्य यह किया कि उसने अपने शासनादेश में एक पंक्ति का समावेश किया जाना प्रारंभ कर दिया कि पदों की संख्या आवश्यकतानुसार घटाई व बढ़ाई जा सकती है। उन नियम और शर्तों के आधार पर देखा जाए तो सरकार को पद बढ़ोत्तरी से कोई नहीं रोक सकता। इस संदर्भ में तमाम न्यायालय आदेश भी मौजूद है जो सरकार के पक्ष में जाते हैं।

बाकी मैं कोई न्यायाधीश नहीं हूं। जो न्याय की पीठ पर बैठे है, वे बेहतर रूप से वर्णित व परिभाषित करेंगे। मैंने उन विषयों को ऊपरी रूप से लिखा है जो मेरे आंखों के सामने से गुजरे हैं। किसी को मेरे लिखे कथन से आपत्ति हो तो वह स्वतंत्र है अपने अलग विचार रखें जाने हेतु।

मैं सभी आंदोलन क्रांतिकारियों को नमन करता हूं जो 15000 व 16448 में रहे। सत्ता के गिरेबां में हाथ डालकर नौकरी कैसे ली जाती है उसके प्रमाण है यह क्रांतिकारी।।

- अंकुर त्रिपाठी 'विमुक्त'