#ऑनलाइन_अटेंडेंस :
बार - बार कहा जा रहा है कि यदि आप समय से स्कूल जाते हैं तो ऑनलाइन अटेंडेंस का विरोध क्यों ?
तो साथियों आप गलत समझ रहे हैं , हम ऑनलाइन अटेंडेंस का विरोध नही कर रहे हैं बल्कि हम तो चाहते हैं कि यह व्यवस्था अनिवार्य रूप से हर जगह लागू हो न कि केवल प्राथमिक विद्यालयों में , चाहे वह निदेशालय हों अथवा जिलाधिकारी कार्यालय , चाहे वह bsa ऑफिस हो या प्राथमिक विद्यालय ।
अब आपको समझना है कि यदि हम विरोध नही कर रहे हैं तो क्या कर रहे हैं ? हम केवल इतना कह रहे हैं कि हमारी सामान्य मानवीय मांगों को पूरा कर दीजिए , हम आपके हर कदम में जैसे आपके साथ कल भी थे , आज भी हैं , आगे भी रहेंगे ।
अब हमारी मानवीय मांगे हैं क्या - जैसे मान लीजिए , हम स्कूल में हैं हमारे बच्चे की तबियत अचानक खराब हो गयी और उसके स्कूल से या घर से कॉल आयी की तुरंत डॉक्टर को दिखाना है ......अब हम ऐसी स्थिति में हम क्या करेंगे ??
हमारे पास ऐसा कोई अवकाश है ही नही कि हम आधे दिन की छुट्टी लेकर अपने बच्चे के पास आ सकें । अब आप बताईये कि यदि आपको पता चल गया कि आपका बच्चा बुखार से तप रहा है तो क्या आप स्कूल में बच्चों को सर्वोत्तम देने की स्थिति में होंगे ?
दूसरी स्थिति में यदि हम विद्यालय जाने के लिए समय से निकले हों और अचानक रास्ते में किसी शिक्षक या आम आदमी को भी दुर्घटनाग्रस्त स्थिति में पाते हैं तो क्या हम अपने सामान्य मानवीय धर्म का परित्याग करते हुए , विद्यालय समय से पहुंचकर टैबलेट को अपना मुंह दिखाएंगे ? क्या अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को दबाते हुए समय से विद्यालय पहुंचकर बच्चों को उच्च नैतिक स्तर और उत्साह के साथ पढ़ा पाएंगे ।
और यदि हम ऐसा करने में सफल भी हो गए तो किस मुंह से बच्चों को यह शिक्षा दे पाएंगे कि यात्रा करते समय किसी दुर्घटना ग्रस्त व्यक्ति को देखने पर उसकी मदद करनी चाहिए ।
इन आकस्मिकताओं को दृष्टिगत रखते हुए हमारी छोटी सी मांग है कि भई , हमें 14 CL के साथ साथ 15 हाफ CL और दे दीजिये ।
अब यदि हम हिन्दू धर्म की बात करें तो माता पिता की मृत्यु के उपरांत त्रयोदश संस्कार (13 की अवधि में ) हमें घर मे ही रहना पड़ता है । बताईये , क्या हम अपना धर्म छोड़ दें ? यदि नही तो कैसे हम अपने धर्म का पालन कैसे करें क्योंकि हमारे पास तो अवकाश की कोई ऐसी उपलब्धता ही नही । हमें तो अपना खुद का शादी व्याह भी चिकित्सिकीय अवकाश लेकर करना पड़ता है । क्या यह विधि सम्मत है ? क्या इसका दुरुपयोग भविष्य में हमारे विरुद्ध नही किया जा सकता ? इन स्थितियों के लिए ही हम 30 EL की मांग कर रहे ।
हमारा यह भी कहना है कि हमें नही चाहिए गर्मी और ठंडी की छुट्टियां । देते भी कहाँ है आप । बस बदनाम हैं शिक्षक इन छुट्टियों की वजह से ।
इसी बार की गर्मी की छुट्टियों को ही ले लीजिये , 20 मई से छुट्टियां शुरू हुई , तबतक चुनाव की ट्रेनिंग करवाया , फिर चुनाव करवाया , उसके बाद वोट की काउंटिंग करवाई , रिजल्ट निकला शायद 4 जून को और अगले ही दिन यानि 5 जून से समर कैंप का आदेश आ गया .....ये कौन सी छुट्टी है भाई ?
आप अवकाश में भी हमें विद्यालय बुलाते हैं । चलो ठीक है , विद्यालय समय के बाद blo का कार्य / जनगणना करवाते हैं , जयंती / त्योहार मनवाते है , हम सब कुछ ख़ुशी ख़ुशी करते हैं । कोरोना के समय विद्यालय का एक घंटा समय बढ़ाया गया कि क्षतिपूर्ति के लिए हैं , उसपर कभी कोई बात नही हुई । हम हमेशा साथ देते हैं , चाहे प्रेरणा लक्ष्य की बात हो या निपुण भारत की । परिस्थितियों के विपरीत होने के बाद भी अपना शत प्रतिशत देते रहे हैं हम लेकिन कभी तो हमारे लिए सोचिए .......ये एकतरफा करवाई कबतक चलेगी ?
आप अवकाश में बुलाओ कोई बात नही लेकिन प्रतिकर अवकाश तो दो । मुझे याद है हम उत्तराखंड में थे और पिता जी शिक्षक थे GIC में , पल्स पोलियो की ड्यूटी यदि वह रविवार को करते तो सोमवार को अवकाश रहता था । हम भी मानव हैं घर परिवार और सामाजिक जिम्मेदारियां है कृपया हमें मानव ही रहने दें , महामानव न बनाएं ।
काम सबसे अधिक लेंगे , सुविधा बिल्कुल नही देंगे । न प्रमोशन , न समायोजन , न जनपद के अंदर ट्रांसफर । बेचारा हरैया का टीचर 75 किलोमीटर दूर तरवा में हैं , अतरौलिया का अजमतगढ़ हरैया में हैं , मेरी बहन रानी की सराय से 45 किलोमीटर ठेकमा जाती हैं , ठेकमा का अध्यापक हरैया आ जा रहा है बेचारा ।
क्या है ये ? हमारे पास राज्य कर्मचारी का दर्जा नही है , पेंशन छीन ही ली गयी है , चिकित्सा की कोई सुविधा नही है जबकि सबसे अधिक दूर दराजों में , विषम परिस्थितियों में हमारे भाई बन्धु कार्यरत हैं । चाहे सड़क टूटी हो , पेड़ गिरे हों , रेलवे फाटक बंद हो , नदी में बाढ़ आई हो , कोहरा गिर रहा हो या लू और चक्रवात हो ......आपको बस ऑनलाइन अटेंडेंस चाहिए ।
वातानुकूलित कमरों में बैठकर समस्त राजकीय /निगमित / अर्ध शासकीय अधिकारियों / कर्मचारियों को छोड़ते हुए मात्र परिषदीय शिक्षकों के लिए अटेंडेंस की यह नीति बनाते समय नीतिनियन्ता संभवतः यह भूल चुके हैं कि शिक्षक की गोद में सृजन और प्रलय दोनों पलता है । Copy/paste
प्रज्ञा धनञ्जय