19 June 2025

मर्ज की ये कैसी मर्जी✍️

 

*मर्ज की ये कैसी मर्जी*


शहरों की चकाचौंध में, गाँवों में अँधेरा है,

शिक्षा की लौ बुझाने का, कैसा ये सवेरा है!


सरकारी स्कूलों पर क्यों, तलवार लटक रही भारी,

ज्ञान के मंदिरों को देखो, बंदी की तैयारी!


कहते हो साधन कम हैं, बच्चे भी थोड़े हैं,

पर क्या शिक्षा से बढ़कर, कोई लाभ जोड़े हैं?


छोटा ही सही मंदिर, पर ज्ञान का वो धाम है,

नन्हे कदमों की पहुँच में, हर सुबह हर शाम है।


सुधार का वादा कर, उजाड़ रहे बस्तियाँ,

दूरी के डर से सहमी, अबलाओं की हँसतियाँ।


कोसों दूर स्कूल, कैसे बच्ची पढ़ने जाए?

दरवाज़े बंद हुए तो, बचपन कहाँ मुस्काए?


कहते गुणवत्ता बढ़ेगी, सुविधाएँ बढ़ जाएँगी,

पर खाली कमरों में क्या, शिक्षा की ज्योत जलाएँगी?


शिक्षक कम, सुविधाएँ कम, ये पहले क्यों न देखा था?

अब बंदी की आड़ में, क्यों भविष्य को फेंका था?


गरीबों का ये आसरा, वंचितों का ये सहारा,

छीन रहे हो क्यों उनसे, शिक्षा का ये किनारा?


अधिकार है ये सबका, जो संविधान ने दिया है,

ज्ञान से वंचित करने का ,ये कैसा फरमान दिया है?


बंद करो ये नीतियाँ, जो शिक्षा को हरती हैं,

ज्ञान की गंगा सूखी, तो आँखें भी भरती हैं।


पुनर्विचार करो अब, ये जनता की पुकार है,

बंद नहीं हों स्कूल, यही सबका अधिकार है!

    

  *मृत्युंजय त्रिपाठी "मलंग"*

      *मंडल अध्यक्ष AINPSEF* 

      *वाराणसी*

       *9005233446*