देश भर में शिक्षा मित्र, अनुदेशक, पंचायत सहायक सहित अन्य संविदा कर्मियों का वेतन ₹6,000 से ₹10,000 प्रति माह के बीच है, जो परिवार के जीवन यापन के लिए पूरी तरह अपर्याप्त माना जा रहा है। इनमें एक सामान्य परिवार जिसमें 4-5 सदस्य होते हैं, उनके लिए न तो पेट भरना आसान होता है, न बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाना, और न ही स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना।
अर्थशास्त्रियों और नीति नियंताओं के लिए यह सवाल भी गंभीर है कि इतनी अल्प राशि में कोई कैसे अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतों को पूरा कर सकता है। यह केवल आंकड़ों का विषय नहीं है, बल्कि हजारों संविदा कर्मियों की रोज़मर्रा की जंग है जहाँ ज़रूरतें बढ़ती जा रही हैं और सपनों को दफनाया जा रहा है।
सर्वसामान्य की यह दिहाड़ी-मज़दूरी जैसी स्थिति आगे चल कर परिवारों की आर्थिक बदहाली और सामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकती है। इसलिए सरकार से यह अपेक्षा की जा रही है कि संविदा कर्मियों के वेतन पर गंभीरता से विचार करते हुए तत्काल प्रभाव से सुधार किया जाए।
सम्मानजनक वेतन कोई केवल अधिकार नहीं बल्कि मानव सम्मान और गरिमा का मूल आधार भी है। यदि संविदा कर्मियों की इस वेतन समस्या को नजरअंदाज किया गया तो आने वाले समय में शिक्षा, पंचायत और अन्य क्षेत्रीय सेवाओं में गुणवत्ता और प्रेरणा पर बुरा असर पड़ेगा।
अब समय आ गया है कि इस गंभीर समस्या को प्राथमिकता दी जाए और संविदा कर्मियों को सम्मानजनक और वेतनमान जीवन प्रदान किया जाए, ताकि वे अपने कर्तव्य को समर्पित होकर प्रभावी ढंग से निभा सकें।
यह केवल निवेदन नहीं, बल्कि देश की सामाजिक और आर्थिक मजबूती का प्रश्न है। सरकार से उम्मीद है कि वे इस मुद्दे को तत्काल गंभीरता से उठाएंगे और प्रभावी समाधान प्रदान करेंगे।