, प्रयागराज : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ग्राम विकास अधिकारी (वीडीओ), ग्राम पंचायत अधिकारी व समाज कल्याण सुपरवाइजर भर्ती परीक्षा निरस्त करने के फैसले को सही करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि दो बार परिणाम घोषित हुआ और दोनों बार भारी खामियां निकलकर सामने आईं। ऐसा ही जारी रहा तो अभ्यर्थियों का भर्ती प्रक्रिया से विश्वास खत्म हो जाएगा। कोर्ट ने कहा कि उप्र लोक सेवा आयोग या चयन बोर्ड की भर्ती प्रक्रिया की शुचिता पर अभ्यर्थियों का भरोसा होना जरूरी है। कोर्ट ने एकलपीठ के आयोग द्वारा चयन प्रक्रिया निरस्त करने के खिलाफ याचिका खारिज करने के फैसले पर हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया है। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल तथा न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने विकास तिवारी व अन्य की विशेष अपील को खारिज करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा, केवल दागी और सही अभ्यर्थियों को अलग कर चयन प्रक्रिया पूरी करने का सवाल नहीं है। भर्ती निरस्त करने से कुछ लोगों को परेशानी हो सकती है, किंतु इससे प्रक्रिया की शुचिता पर आम लोगों का विश्वास दृढ़ होता है। खामियों को दुरुस्त करने के बजाय पूरा चयन निरस्त करना सही कदम है। चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता कायम रखने के लिए नौ लाख अभ्यर्थियों में से सही गलत छांटने के बजाय विश्वास बनाए रखना जरूरी है। दरअसल, उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने 24 मार्च, 2021 को भर्ती निरस्त कर दी। भर्ती परीक्षा टाटा कंसल्टेंसी सर्विस कंपनी के माध्यम से कराई गई। जिन लोगों ने ओएमआर सीट खाली जमा की थी, उन्हें सफल घोषित कर दिया गया। 1952 में से 136 और 1533 में से 393 अभ्यर्थियों की सीट से छेड़छाड़ किए जाने के कारण परिणाम रोक लिया गया।
11 लाख आवेदकों में से नौ लाख ने परीक्षा दी, परिणाम घोषित हुआ तो घपला खुला। इस पर प्रक्रिया निरस्त कर नए सिरे से कराने का फैसला लिया गया। इसकी जांच चल रही है। प्रारंभिक जांच में जिन्हें पकड़ा गया उनको दो साल तक प्रतिबंधित किया गया है। अभी जांच का परिणाम आना बाकी है। कोर्ट ने रिकार्ड देखा और फैसले को सही मानते हुए कहा कि यह भर्ती प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखने के लिए जरूरी है।
’>>इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उप्र अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के भर्तियों को रद करने के फैसले को सही करार दिया
’>>कहा, व्यापक गड़बड़ी पकड़े जाने पर भर्ती निरस्त करना सही कदम
प्राथमिकी दर्ज करा हाथ धोकर नहीं बैठ सकता मजिस्ट्रेट: हाई कोर्ट
प्रयागराज: अपराध की एफआइआर (प्राथमिकी) दर्ज कराने के बाद मजिस्ट्रेट हाथ धोकर नहीं बैठ सकता है। सही और निष्पक्ष विवेचना भी उसका विधिक दायित्व है। मथुरा के सीजेएम को जांच का निर्देश देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी की। देखें 2