कोरोनाकाल से पहले जिन सेवारत प्रशिक्षण कार्यक्रमों में विभाग हजारों रूपए खर्च करता था, अब शिक्षकों के स्मार्टफोन की मदद से शिक्षकों के ही खर्च पर कराए जा रहे हैं। पिछले करीब दो साल की अवधि में परिषदीय शिक्षक आधा सैकड़ा से अधिक आनलाइन प्रशिक्षण हासिल कर चुके हैं। इसके साथ ही प्रेरणा पोर्टल व डीबीटी ऐप पर कई कार्य कर रहे हैं। इन्हें पूरा करने में उनके स्मार्टफोन घंटों संचालित किए जा रहे हैं जिसके चलते न केवल फोन बूढ़े हो रहे हैं बल्कि सैकड़ों जीबी डाटा भी खर्च हो गया।
एक के बाद एक नई आनलाइन ट्रेनिंग, यूट्यूब सेशन, गूगल मीट के बाद अब प्रेरणा पोर्टल व डीबीटी ऐप के चलते शिक्षकों के मोबाइल फोन का प्रयोग काफी अधिक बढ़ गया है। विभाग ने निष्ठा के 18 माड्यूल व कुछ अन्य ट्रेनिंग कार्यक्रमों को आनलाइन कराया। इसके बाद FLN के अन्तर्गत निष्ठा के एक और चरण को आनलाइन पूरा कराया गया। कुछ ऐसे प्रशिक्षण भी रहे जो 40 यूनिटों के थे।
‘स्मार्ट’ नहीं हैं सभी शिक्षकशिक्षक कहते हैं कि जो प्रत्येक शिक्षक तकनीकी रूप से सक्षम नहीं है। खासतौर से ऐसे शिक्षक जो 50 वर्ष की उम्र से ऊपर के हो चुके हैं। इन शिक्षकों को काफी कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। तमाम शिक्षक स्मार्टफोन सही ढंग से संचालित नहीं कर पाते हैं।
अब याद नहीं रहते ट्रेनिंग के सबकएक के बाद नए प्रशिक्षण सत्रों के चलते पिछले प्रशिक्षण से हासिल किए गए सबक भी शिक्षकों को भूलने लगे हैं। शिक्षक बताते हैं कि एक साथ कई ट्रेनिंग का शेड्यूल जारी होने से सबक की बजाए उन्हें पूरा करने में जोर रहता है।
ग्रामीणों के ताने अलग सुनतेशिक्षक कहते हैं कि मोबाइल फोन से अधिकतर काम होने के कारण गांव वाले कहते हैं कि जब देखों मास्टर जी मोबाइल पर डटे रहते हैं। सबको समझाना आसान नहीं है कि अब लगभग कर काम मोबाइल फोन के जरिए कराया जा रहा है।