अफसरों का प्रमादी रवैया नहीं होगा नजरअंदाज: हाईकोर्ट

 राज्य सरकार की ओर से काफी विलंब के बाद दाखिल की जा रही अपीलों पर नाराजगी जताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एकल पीठ के फैसले के पांच महीने बाद अधिकारियों ने आदेश के अनुपालन या चुनौती संबंधी निर्णय लिया। उसके बाद शासन स्तर के अधिकारियों ने मार्च 2022 तक अपील दाखिल करने की अनुमति को भी लंबित रखा। शासन की अनुमति मिलने के बाद स्थायी अधिवक्ता ने भी अपील दाखिल करने में एक महीने का समय लगाया। कोर्ट ने कहा कि इससे पहले भी सरकार की ओर से दाखिल कालबाधित अपीलों में विलंब माफी का प्रकरण निरंतर आता रहा है। कोर्ट भी अधिकारियों के प्रमादी रवैये को नजरअंदाज करती रही है लेकिन अधिकारी समय रहते अपील दाखिल करने में नियमित रूप से अकर्मण्यता एवं शिथिलता दिखा रहे हैं। ऐसे में कोर्ट भी अब अपने उदारवादी दृष्टिकोण की समीक्षा आवश्यक समझती है। कोर्ट ने 2012 में पोस्टमास्टर जनरल केस में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि तकनीकी के इस जमाने में भी अधिकारियों की ओर से भारी विलंब के साथ अपील दाखिल की जा रही है। साथ ही अपील खारिज करते हुए सिंचाई विभाग के प्रमुख सचिव को अपील में देरी के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए। कोर्ट ने कहा कि अपील से स्पष्ट है कि राज्य सरकार एकल पीठ के फैसले को विधि विपरीत मानती है। ऐसी स्थिति में अपील खारिज होने के बाद कर्मचारी की जन्म तिथि में परिवर्तन करना होगा, जिससे सरकारी खजाने पर अतिरिक्त भार पड़ना निश्चित है। ऐसी स्थिति में वेतन भुगतान के लिए राजकोष पर भार डालने के स्थान पर अपील में विलंब के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से वसूली की जाए।


यह है मामला : फिरोजाबाद में सिंचाई विभाग में सीताराम को 1977 में बेलदार नियुक्त किया गया था। कर्मचारी की हाईस्कूल मार्कशीट में जन्म का वर्ष 1957 दर्ज है लेकिन अधिकारियों ने देवनागरी लिपि में लिखे 1957 के अंक 7 को भूलवश 6 मानते हुए सेवा पंजिका में जन्म के वर्ष को 1956 लिख दिया था। इस कारण उसे एक वर्ष पूर्व सेवानिवृत्त कर दिया गया। कर्मचारी ने हाईकोर्ट में याचिका की थी। कोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर याची के जन्म का वर्ष 1957 माना था। साथ ही विभाग को एक वर्ष के वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया था। राज्य सरकार ने अपील में इसी आदेश को चुनौती दी है।