_*स्कूल मर्जर का सबसे ज्यादा असर लड़कियों पर पड़ेगा💥💯✅*_
**उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूल मर्जर: लड़कियों की शिक्षा पर मंडराता खतरा**
लखनऊ, 25 जून 2025: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा परिषदीय प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों के मर्जर की योजना ने शिक्षा क्षेत्र में एक नई बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों और अभिभावकों का मानना है कि इस नीति का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों की शिक्षा पर पड़ सकता है।
**मर्जर योजना का उद्देश्य और वास्तविकता**
उत्तर प्रदेश सरकार ने कम नामांकन वाले स्कूलों को बंद कर उन्हें नजदीकी बड़े स्कूलों में मर्ज करने का फैसला लिया है। सरकार का दावा है कि इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार आएगा। हालांकि, ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों की दूरी बढ़ने से कई परिवार, खासकर लड़कियों के लिए, अपने बच्चों को स्कूल भेजने में हिचकिचा रहे हैं।
**लड़कियों की शिक्षा पर असर**
शिक्षा विशेषज्ञ डॉ. रीमा सिंह के अनुसार, "ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से ही लड़कियों की स्कूल ड्रॉपआउट दर अधिक है। स्कूल मर्जर से स्कूलों की दूरी 2-5 किलोमीटर तक बढ़ सकती है, जिससे लड़कियों के लिए सुरक्षित आवागमन एक बड़ी चुनौती बन जाएगा।" सामाजिक रूढ़ियों और सुरक्षा चिंताओं के कारण कई परिवार लड़कियों को दूर के स्कूलों में भेजने से कतराते हैं।
उदाहरण के लिए, बाराबंकी जिले के एक गांव की रहने वाली 14 वर्षीय राधिका ने बताया, "मेरा स्कूल पहले गांव में ही था, लेकिन अब इसे 3 किलोमीटर दूर के स्कूल में मर्ज कर दिया गया है। मेरे माता-पिता मुझे अकेले इतनी दूर जाने की इजाजत नहीं देते।" राधिका जैसे कई छात्राओं की पढ़ाई बीच में ही छूटने का खतरा मंडरा रहा है।
**सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां**
मर्जर का असर न केवल शिक्षा पर, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी देखने को मिल सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा न केवल उन्हें आत्मनिर्भर बनाती है, बल्कि परिवार और समुदाय की प्रगति में भी योगदान देती है। शिक्षा से वंचित रहने वाली लड़कियों में बाल विवाह और शोषण का जोखिम भी बढ़ सकता है।
**सरकार का पक्ष**
बेसिक शिक्षा विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि सरकार मर्जर से प्रभावित छात्रों के लिए मुफ्त परिवहन सुविधा और मिड-डे मील जैसी योजनाओं को और प्रभावी करने की योजना बना रही है। हालांकि, इन योजनाओं के कार्यान्वयन पर अभी सवाल बने हुए हैं।
**आवाजें जो उठ रही हैं**
शिक्षक संघों और गैर-सरकारी संगठनों ने इस नीति पर पुनर्विचार की मांग की है। प्राथमिक शिक्षा निदेशक के कार्यालय के बाहर कई शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने कहा कि मर्जर से न केवल लड़कियों की शिक्षा प्रभावित होगी, बल्कि शिक्षकों की नौकरियां भी खतरे में पड़ सकती हैं।
**आगे की राह**
स्कूल मर्जर जैसी नीतियों को लागू करने से पहले स्थानीय समुदायों की जरूरतों और चुनौतियों को ध्यान में रखना जरूरी है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे लेकिन सुसज्जित स्कूलों को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि लड़कियों सहित सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।
लड़कियों की शिक्षा न केवल एक अधिकार है, बल्कि समाज के विकास की नींव भी है। ऐसे में, यह जरूरी है कि सरकार अपनी नीतियों को लागू करने से पहले उनके दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करे, ताकि कोई भी बच्चा, खासकर लड़कियां, शिक्षा के अवसर से वंचित न रहें।