आजादी के बाद पहली बार होगी जातिवार गणना, अगले वर्ष से हो सकती है आरंभ
जातिवार गणना को लेकर पिछले कुछ वर्षों से तेज हुई राजनीति के बीच अब केंद्र सरकार ने भी इसकी घोषणा कर दी है। बुधवार को राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने जनगणना के साथ जातिवार गणना को हरी झंडी दे दी यानी अगले साल संभावित जनगणना के साथ ही जातिवार गणना भी होगी। यह आजादी के बाद पहली बार होगा जब जातिवार गणना की जाएगी, क्योंकि इससे पहले कई बार जाति सर्वेक्षण हुए हैं, लेकिन पूरी गणना नहीं की गई। सरकार की ओर से लिए गए इस फैसले की घोषणा के साथ फिर से राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है। कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल जहां इसे अपनी जीत बता रहे हैं, वहीं भाजपा की और इतिहास स्पष्ट किया गया कि कांग्रेस की सरकारों ने ही जातिगत गणना का विरोध और कहा गया कि अब पहली बार
जातिवार गणना होने जा रही है।
इस फैसले के बाद एकबारगी जहां देश का ध्यान पाकिस्तान से हटकर घरेलू राजनीति पर आया, वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक झटके में विपक्ष का बड़ा चुनावी मुद्दा भी छीन लिया। बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले चुनावों में विपक्षी महागठबंधन इसे प्रमुख मुद्दा बनाने की तैयारी कर रहा था। अब इसे लेकर चुनाव में श्रेय की होड़ छिड़ेगी, जहां राजग यह बताएगा कि आजादी के बाद पहली बार जातिवार गणना हो रही है।
सूचना और प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले की जानकारी देते हुए विभिन्न राज्यों में जातिगत गणना के नाम पर चल रहे जाति सर्वेक्षणों पर सवाल उठाए। उन्होंने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास है, इसलिए राज्यों को जातिवार गणना कराने का अधिकार नहीं है। वैष्णव ने कहा कि कई राज्यों ने सर्वेक्षण के माध्यम से जातियों की जनगणना का दावा किया है, लेकिन उन पर राजनीतिक लाभके लिए गैर-पारदर्शी तरीके से सर्वेक्षण कराने के आरोप लगे हैं। जाहिर है इस प्रकार के जातीय सर्वे ने समाज में भ्रांति फैलाने का काम किया। मनमोहन सिंह सरकार ने भी जातिवार गणना कराने की घोषणा की थी लेकिन सर्वे ही कराया।
उसका नाम एसईसीसी था। अश्विनी वैष्णव के अनुसार, देश के सामाजिक ताने-बाने को राजनीतिक दबाव से दूर रखने के
लिए कैबिनेट ने राज्यों के सर्वे की जगह जातियों की गणना को मूल जनगणना में शामिल करने का फैसला किया। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने 2019 में गरीब वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था. जिसे समाज के सभी वर्गों ने स्वीकार किया था।
अश्विनी वैष्णव ने जातिवार गणना को प्रमुख राजनीतिक मुद्दा बनाने वाली कांग्रेस को आड़े हाथ लिया। उन्होंने कहा कि हकीकत यह है कि कांग्रेस की सरकारों ने ही आज तक जातिवार गणना का विरोध किया है। इसका प्रमाण है कि आजादी के बाद सभी जनगणनाओं में जाति की गणना की ही नहीं गई। उन्होंने कहा कि जातिवार गणना के मुद्दे को कांग्रेस व आइएनडीआइए, के दल सिर्फ राजनीतिक लाभ के
लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मनमोहन सिंह सरकार ने 2010 में संसद में आश्वासन देने के बावजूद जातिवार गणना नहीं कराई। मंत्रिमंडल समूह की संस्तुति के बावजूद मनमोहन सरकार ने सामाजिक, आर्थिक, जातीय जनगणना के नाम पर सिर्फ सर्वे कराया। ध्यान देने की बात है कि जातिवार गणना 1931 में जनगणना के साथ हुई थी। इसी गणना के आंकड़ों के आधार पर ओबीसी आरक्षण के लिए मंडल कमीशन ने 1980 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
स्वरूप तय करने को बन सकती है सर्वदलीय समिति
2011 के सामाजिक, आर्थिक और जातिवार गणना (एसईसीसी) के सर्वे से सीख लेते हुए सरकार इसका स्वरूप तय करने के लिए सर्वदलीय समिति का गठन कर सकती है। 2011 की एसईसीसी में 1931 की 4,147 जातियों की तुलना में 46.80 लाख जातियां दर्ज की गई थीं। इस बार सरकार जनगणना के साथ-साथ जातिवार गणना कराने का फुलप्रूफ माडल तैयार करना चाहती है। मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार इस पर आम राय बनाने की कोशिश कर सकती है और उसका सबसे अच्छा तरीका सर्वदलीय समिति का गठन है। इसकी अनुशंसाओं के अनुरूप जातिवार गणना कराई जाएगी।
आगामी जनगणना में जातिवार गणना कराने का निर्णय ऐतिहासिक है। नरेन्द्र मोदी सरकार सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध है। कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने सत्ता में रहते हुए दशकों तक जातिवार गणना का विरोध किया और विपक्ष में रहते हुए इस पर राजनीति की। यह निर्णय आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाएगा, समावेशिता को बढ़ावा देगा और वंचितों की प्रगति के लिए नए रास्ते खोलेगा।
अमित शाह, गृह मंत्री।