15 May 2025

बच्चों को परिवार-दोस्तों से दूर कर रहा मोबाइ👉 रिपोर्ट में खुलासा, नींद और खुशी छीन रहा बढ़ता स्क्रीन टाइम

 

बच्चों को परिवार-दोस्तों से दूर कर रहा मोबाइल

रिपोर्ट में खुलासा, नींद और खुशी छीन रहा बढ़ता स्क्रीन टाइम



बर्लिन, एजेंसी। आज के डिजिटल युग में स्मार्टफोन बच्चों और किशोरों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। स्मार्टफोन का बढ़ता इस्तेमाल बच्चों को केवल डिजिटल दुनिया में सीमित कर रहा है, जिससे वे अपने रिश्तों को नजरअंदाज कर रहे हैं।


प्रतिष्ठित विज्ञान पत्रिका प्लस वन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, बढ़ता स्क्रीन टाइम बच्चों की जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है।


बच्चे अपने परिवारों और दोस्तों से दूर हो रहे हैं। यह अध्ययन 2018 से 2024 के बीच जर्मनी में ‘लाइफ चाइल्ड स्टडी’ योजना के तहत किया गया, जिसमें दुनियाभर के बच्चों को शामिल किया गया। इसमें कहा गया है कि मोबाइल स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताने से उनमें हताशा, गुस्सा, अवसाद और चिंता की स्थिति देखी गई। अध्ययन के अनुसार, स्मार्टफोन के अधिक उपयोग से बच्चों के जीवन में न केवल शारीरिक समस्याएं बढ़ रही हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य में भी गिरावट आई है। खासकर लड़कियों में यह समस्या अधिक गंभीर रूप से सामने आ रही है।


सामान्य गतिविधियों में व्यवधान : अध्ययन में कहा गया है, बच्चों में प्रॉब्लेमेटिक स्मार्टफोन उपयोग (पीएसयू) की स्थिति देखी जाने लगी है। यह तब होता है जब स्मार्टफोन का उपयोग इतना बढ़ जाता है कि यह बच्चों के पढ़ाई, नींद और पारिवारिक रिश्तों में बाधा डालने लगता है।


भारत में स्थिति : जेएमआईआर रिसर्च प्रोटोकॉल पत्रिका (2024) की रिपोर्ट से पता चला है कि 10–19 वर्ष के 16,292 प्रतिभागियों में स्क्रीन टाइम सप्ताह के दिनों में 3.8 घंटे और सप्ताहांत में 3.9 घंटे पाया गया। यहां भी बच्चों में नींद की परेशानी देखी गई।


पीएसयू के लक्षण


● स्मार्टफोन को बार-बार चेक करना


● पढ़ाई या नींद में बाधा आना


● बिना फोन के गुस्से या चिड़चिड़ापन का अनुभव


बढ़ा फोन का उपयोग


● 2012 में बच्चों में स्मार्टफोन रखने वालों की संख्या 62 फीसदी थी


● 2021 तक यह आंकड़ा 94 फीसदी तक पहुंच गया


● 2018 में 37 फीसदी बच्चे सप्ताहांत पर तीन घंटे उपयोग करते थे फोन


● 2024 तक यह आंकड़ा 73 फीसदी तक पहुंच गया⚠️


पीएसयू में वृद्धि


● 23 फीसदी थी 2019 में बच्चों में पीएसयू की संभावना


● 30 फीसदी हो गई कोरोना महामारी के दौरान यह बढ़कर


● लड़कियों में पीएसयू स्कोर लड़कों की तुलना में ज्यादा


● जिन बच्चों का पीएसयू स्कोर ज्यादा था, उनकी जीवन गुणवत्ता खराब