17 June 2025

बेसिक शिक्षा पर चला शासन का चाबुक


लखनऊ। उत्तर प्रदेश शासन ने सोमवार को एक ऐसा आदेश जारी किया है, जिसने ग्रामीण शिक्षा की जड़ों को झकझोर दिया है। अपर मुख्य सचिव (बेसिक शिक्षा) दीपक कुमार द्वारा जारी इस आदेश के अनुसार अब राज्य भर के उन सरकारी विद्यालयों को बंद या मर्ज कर दिया जाएगा, जहां छात्रों की संख्या 'अपर्याप्त' मानी जाएगी। इन विद्यालयों को नजदीकी 'मुख्यमंत्री कंपोजिट विद्यालयों' में समायोजित किया जाएगा, ताकि संसाधनों का समेकित और समुचित उपयोग हो सके। सरकार इसे 'मुख्यमंत्री माडल कंपोजिट स्कूल' योजना का सशक्त क्रियान्वयन बता रही है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि यह फैसला लाखों ग्रामीण छात्रों के भविष्य पर सीधा हमला है।



सरकार ने संवाद नहीं किया, बस आदेश जारी कर दिया

आदेश में सुझाव दिया गया है कि युग्मन से पहले अभिभावकों, समुदाय और शिक्षकों से संवाद किया जाए। लेकिन कई जिलों से खबर है कि स्कूल बंद करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और स्थानीय समुदाय को अब तक जानकारी भी नहीं दी गई। 

क्या सरकार गांव के बच्चों को छोड़ देना चाहती है?:

राज्य सरकार का तर्क है कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए यह जरूरी है। लेकिन ग्रामीण भारत में शिक्षा केवल कक्षा और किताब तक सीमित नहीं होती, वह वहां तक पहुंचने और टिके रहने की लड़ाई होती है। सरकार ने यह मूल्यांकन किया है कि इससे कितने बच्चे स्कूल छोड़ देंगे? 


संसाधनों के नाम पर जमीन हकीकत की अनदेखी


आदेश में आईसीटी लैब, स्मार्ट क्लास, फॉर्मेटिव असेसमेंट, शिक्षक क्षमता विकास जैसे सकारात्मक उद्देश्यों का उल्लेख है। लेकिन जब तक बच्चा स्कूल पहुंचेगा ही नहीं, तब तक ये सब कागजी बातें रह जाएंगी। गांवों में इंटरनेट कनेक्टिविटी, बिजली की आपूर्ति और डिजिटल साक्षरता जैसी मूलभूत चीजें आज भी अधूरी हैं। एक महिला अभिभावक ने कहा, 'हमारे बच्चे बस इसलिए स्कूल जाते हैं कि वह पास है। अब 2 किलोमीटर दूर भेजेंगे, तो हम नहीं भेजेंगे। लड़की को तो बिलकुल नहीं भेजेंगे।

नामांकन घटेगा, ड्रॉपआउट बढ़ेगा


शासन के आदेश में दावा किया गया है कि युग्मित विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या बढ़ेगी, जिससे उपस्थिति भी बेहतर होगी। लेकिन शिक्षक संघों और शिक्षाविदों का कहना है कि होगा ठीक उल्टा। प्राथमिक शिक्षक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी व कोषाध्यक्ष मनोज कुमार मौर्य ने कहा, 'यह आदेश बच्चों के हित में नहीं है। ग्रामीण परिवेश में यह बदलाव ड्रॉपआउट रेट को और अधिक बढ़ाएगा। गांव के बच्चे पहले ही स्कूल से कट रहे हैं, और अब स्कूल ही दूर हो जाएगा। यह तो शिक्षा से वंचित करने वाला फैसला है।'


विद्यालय बंद होने से शिक्षा पर पड़ेगा असर


उत्तर प्रदेश के हजारों गाँवों में ऐसे प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं, जहां नामांकन संख्या 20, 30 या अधिकतम 50 तक होती है। ऐसे में प्रशासन ने निर्णय लिया है कि इन विद्यालयों को नजदीकी स्कूलों के साथ युग्मित किया जाएगा, यानी छात्रों को दो से तीन किलोमीटर दूर दूसरे स्कूलों में भेजा जाएगा। एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, 'क्या सरकार कार ने ये सोचा है कि एक सात साल का बच्चा रोज़ तीन किलोमीटर कैसे जाएगा? हमारे गांव की बच्चियां अब तक पास के स्कूल में आती थीं, लेकिन अब उन्हें दूसरे गांव भेजा जाएगा। कई अभिभावक तो मना कर देंगे। खासकर बेटियों की पढ़ाई तो वहीं रुक जाएगी।


 ** इस आदेश से हजारों इस गांवों में शिक्षा के अधिकार पर सीधा प्रहार होगा। सरकार को चाहिए कि वह जमीनी हकीकत पर दोबारा विचार करे। जब तक हर गांव तक पक्की सड़क, परिवहन सुविधा और सामाजिक सुरक्षा नहीं होगी, तब तक स्कूलों का युग्मन ग्रामीण भारत की शिक्षा के लिए आत्मघाती होगा। क्या यह आदेश आने वाली पीढ़ियों के भविष्य पर एक 'अनुशासनात्मक वार' है? या फिर डिजिटल भारत के नाम पर ग्रामीण भारत से दूरी बनाने की शुरुआत? इस सवाल का जवाब अब शासन को देना होगा।


हरिशंकर राठौर, मीडिया प्रभारी, प्राथमिक शिक्षक संघ, उ०प्र०।