12 July 2025

मन कई दिनों से परेशान सा है मर्जर और बंद होते विद्यालय, इधर उधर बिखरते शिक्षक।। परेशान बच्चे।। आखिर जिम्मेदार कौन है???? शायद हम सभी हैं।।

मन कई दिनों से परेशान सा है

मर्जर और बंद होते विद्यालय, इधर उधर बिखरते शिक्षक।।

परेशान बच्चे।।

आखिर जिम्मेदार कौन है???? 

शायद हम सभी हैं।।

हम सभी में शिक्षक, विभाग, अभिभावक ।।



नामांकन और उपस्थिति

एक विद्यालय की सबसे बड़ी शक्ति है।।

पर यह शक्ति कमजोर होती जा रही है। सरकारी मास्टर तो वैसे ही सबको खटकता ही है।पर हम सबने मिलकर इन विद्यालयों को यहां लाकर खड़ा कर दिया है।।


दिन पर दिन दाखिले के लिए जटिल होती प्रक्रिया  से अभिभावक परेशान

परिणाम=वो दाखिला कराने ही नहीं आता या किसी छोटे मोटे प्राइवेट में कराता है।।


जिन बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र नहीं आधार नहीं उन प्रधानाध्यापक पर कार्यवाही होगी

वेतन रुकेगा, शीघ्रता से बनवाओ जैसे आदेशों से प्रधानाध्यापक परेशान 


परिणाम=केवल उन्हीं के दाखिले करता है जिनके दस्तावेज पूरे हैं।।।


दाखिले की अंतिम तिथि 30 सितंबर

निपुण एसेसमेंट नवंबर दिसंबर में शुरू

कौन सी घुट्टी पिलाई जाए कि बच्चा 3 महीने में निपुण हो

शिक्षक परेशान

परिणाम=पढ़ने में अच्छे बच्चों का ही दाखिला


Udise,prerna,dbt आदि में बार बार एक ही डाटा फीड करना अधिक बच्चे अधिक pressure कोई अतिरिक्त स्टाफ नहीं अर्थात् विद्यालय परेशान

परिणाम =कम बच्चे कम तनाव


विभाग द्वारा इतने नवाचार एक साथ लागू किए गए कि शिक्षक खुद कन्फ्यूज किसको लागू करें।।। नवाचार सभी बेहतरीन थे पर उनके रोज होते बदलावों ने शिक्षकों को परेशान कर दिया।।

पर विभाग डाटा डाटा का खेल खेलता रहा।।

परिणाम=शिक्षक हर्ट अटैक, स्ट्रेस, एक्सीडेंट आदि का शिकार हुए।।


निपुण करने के लिए शिक्षकों ने एक ही assessment इतने बार पढ़वाया की छात्र 

बिना देखे कहानी पढ़ दे।।।

छात्रों की बौद्धिक क्षमता को एक ही सांचे में ढाला गया।।।


ये कुछ वैसे हुआ की जंगल के सभी जानवरों को केवल तैरने की परीक्षा में पास होने पर ही निपुण माना जाए बाकी सब योग्यताओं को अनिपुण कह दिया जाए।।।

हम सबको ये समझना चाहिए सबकी अपनी क्षमताएं होती हैं।।।


फिर भी जैसे तैसे शिक्षकों ने छात्रों को अपना बेहतर देने का प्रयास किया बच्चे होशियार हुए, अभिभावक गदगद हुए, अरमान जागे, और बच्चे को लेकर प्राइवेट भागे।।

इस चाह में कि प्राइवेट में हमारे बच्चे को बेहतर शिक्षा मिलेगी।।

परिणाम= नामांकन घटा गुणवत्ता घटी, शिक्षक हतोत्साहित हुआ।।।


मुझे चिंता है बेटियों की जिनकी शिक्षा का एक मात्र सहारा ये सरकारी स्कूल होते हैं।। गांव में कई परिवार आज भी बेटियों की शिक्षा को गंभीरता से नहीं लेते हैं।।

उनकी कमर पर बैठा होता है एक बचपन, हाथों में सजी होती है झाड़ू।।

और अपने छोटे छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी निभाते निभाते वो आधी मां हो जाती है।।।।

उसकी शिक्षा अब कैसे होगी?????


नामांकन नहीं तो विद्यालय खत्म

विद्यालय खत्म नै भर्ती खत्म

Dled,b.ed,m.ed आदि छात्रों का भविष्य क्या होगा????

साभार सोशल मीडिया