लखनऊ |
महाविद्यालयों में प्रोफेसर पदनाम देने की बहुप्रतीक्षित मांग पूरी होने के बाद भी शिक्षक संगठनों की नाराजगी दूर नहीं हो पाई है। यह नाराजगी पदनाम देने में वरिष्ठता की अनदेखी कर दिए जाने से है। शासनादेश संशोधित कराने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के साथ ही वे विपक्षी दलों से भी संपर्क साध रहे हैं। चुनाव नजदीक होने से खुद विपक्षी दल भी उन पर डोरे डाल रहे हैं।
महाविद्यालयों में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर कार्यरत वरिष्ठ शिक्षकों ने विभिन्न माध्यमों से प्रदेश सरकार को अपनी इस प्रतिक्रिया से अवगत करा दिया है कि महाविद्यालयों के शिक्षकों को प्रोफेसर पद पर प्रोन्नति देने का शासनादेश पढ़कर आश्चर्य एवं दु:ख हुआ। उनका कहना है कि इस शासनादेश से वरिष्ठ शिक्षकों का काफी नुकसान हुआ है, क्योंकि उनकी सेवानिवृत्ति आयु निकट है। शासनादेश की तिथि से प्रोफेसर पदनाम मिलने पर वे महज दो या तीन साल की वरिष्ठता वाले प्रोफेसर के रूप में सेवानिवृत्त हो जाएंगे, जबकि उनकी अर्हता तिथि 10 साल या उससे ज्यादा पहले की है। अर्हता तिथि से पदनाम मिलने पर वे प्रोफेसर के रूप में 10 साल से अधिक की वरिष्ठता के साथ सेवानिवृत्त होते। इस तरह वे कुलपति पद के लिए आवेदन की अर्हता प्राप्त कर लेते। कुछ संगठन उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा से मुलाकात करके शासनादेश संशोधित कराने की मांग भी कर चुके हैं। उनका कहना है कि कोई वित्तीय व्यय भार न आने के बावजूद अर्हता तिथि से प्रोफेसर पदनाम देने की मांग की अनदेखी कर दी गई।
संशोधित शासनादेश जारी करने का अनुरोध
लखनऊ विश्वविद्यालय संबद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (लुआक्टा) के अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार पांडेय ने कहते हैं कि प्रोन्नति के शासनादेश से शिक्षकों में बहुत नाराजगी है। यह नौकरशाही के दबाव में लिया गया फैसला है। इस मामले में मुख्यमंत्री से अनुरोध किया गया है कि वह हस्तक्षेप करके शिक्षकों के हित में संशोधित शासनादेश जारी कराएं।