स्पेशल रिपोर्ट :- सुधार की होड़ बढ़ी तो बदलने लगी स्कूलों की सूरत,अगले साल बदलेंगे संकेत


नई शिक्षा नीति में देश की स्कूली शिक्षा की जैसी कल्पना की गई है, उसकी तरफ राज्य बढ़ते नजर आ रहे हैं। राज्यों में शिक्षा की तस्वीर के मूल्यांकन को लेकर शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट कई सकारात्मक संकेत देने वाली है। राज्यों में सुधार की प्रतिस्पर्धा भी बढ़ी है और वे जरूरी सुविधाओं और संसाधनों की निगरानी भी कर रहे हैं। शिक्षक-छात्र अनुपात भी बेहतर हो रहा है और शिक्षा के स्तर को लेकर राज्यों के बीच अंतर कम हो रहा है।



परफार्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स की रिपोर्ट
राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों में स्कूली शिक्षा पर शिक्षा मंत्रालय ने 'परफार्मेंस ग्रेडिंग इंडेक्स' (पीजीआइ) नाम से रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने से लेकर ड्रापआउट पर अंकुश लगाने तक राज्यों में नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों को पूरा करने की होड़ है। शिक्षा तक पहुंच बढ़ाने यानी विद्यार्थियों के पंजीकरण, उन्हें स्कूल में बनाए रखने और ऊंची कक्षाओं तक उनके पहुंचने के मामले में बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, लद्दाख, आंध्र प्रदेश, बंगाल, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, गुजरात, झारखंड और दिल्ली ने पिछले साल के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया है।


कई राज्यों ने बनाए रखा है स्तर
असम, हरियाणा, केरल, महाराष्ट्र, पंजाब और सिक्किम ने पिछले साल का स्तर बनाए रखा है, जबकि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों का प्रदर्शन गिरा है। जहां तक स्कूलों में बुनियादी ढांचा और सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात है तो दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु और पुडुचेरी समेत केवल चार राज्यों और केंद्र शासित क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी ने पिछले साल के मुकाबले सुधार दिखाया है। हालांकि दिल्ली समग्र रूप से 11 अन्य राज्यों के साथ लेवल थ्री पर रही है। तीसरे लेवल में वे राज्य हैं जिन्होंने एक हजार में से 851 से 900 तक अंक प्राप्त किए हैं। स्कूलों में शौचालय, स्वच्छ पेयजल, साफ-सफाई, बिजली, कंप्यूटर, इंटरनेट, पुस्तकालय और खेल से संबंधित सुविधाएं उपलब्ध कराकर पठन पाठन का माहौल बेहतर बनाने के मामले में कई राज्यों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। घट रही असमानता रिपोर्ट का एक अन्य उल्लेखनीय पहलू यह है कि राज्यों में स्कूली शिक्षा के ढांचे में असमानता का पहले जो स्तर होता था, वह अब घट रहा है। 2021-22 के सत्र में सबसे अधिक अंक (928) पाने वाले राज्य और सबसे कम अंक (669) पाने वाले राज्य के बीच 259 अंकों या 33 प्रतिशत का फासला है। 2017-18 के सत्र में यह अंतर 51 प्रतिशत था।


अगले साल बदलेंगे संकेत
शिक्षा मंत्रालय के स्कूली शिक्षा विभाग ने अब तक तीन पीजीआइ रिपोर्ट जारी की हैं। यह समग्र रूप से एक हजार अंकों के पूर्णांक पर राज्यों की ग्रेडिंग करती है। इसमें कुल 70 संकेत का सहारा लिया गया है, जिन्हें दो ग्रुपों में रखा गया है- प्रदर्शन और प्रशासन-प्रबंधन। शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि वह अगले साल से राज्यों के आकलन के लिए डिजिटल एजुकेशन समेत कुछ नए संकेतक शामिल करेगा। हालांकि, ग्रेडिंग के कुल अंक एक हजार ही रहेंगे।