प्रयागराज। उत्तर प्रदेश में 69 हजार सहायक अध्यापकों की भर्ती में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को आरक्षण नहीं मिलेगा। हालांकि कोर्ट ने माना है कि सरकार को इस भर्ती प्रक्रिया में ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू करना चाहिए था। कोर्ट ने कहा कि अब सभी 69 हजार पदों पर नियुक्तियां हो चुकी हैं, और चयनित उम्मीदवार वर्षों से काम कर रहे हैं।
ऐसे में ईडब्ल्यूएस आरक्षण के तहत नयी सूची बनाकर पहले से नियुक्त अभ्यर्थियों को हटाना व्यावहारिक और न्यायसंगत नहीं होगा। यही नहीं चयनित अभ्यर्थियों
की नियुक्ति को चुनौती भी नहीं दी गई। न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा व न्यायमूर्ति पीके गिरि की खंडपीठ ने शिवम पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल विशेष अपील को उक्त टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया।
मामला ऐसे याचियों से जुड़ा है, जिन्होंने एकल पीठ के समक्ष ईडब्ल्यूएस के तहत आरक्षण लागू करने की मांग की थी। इसे एकल पीठ ने खारिज कर दिया था। इसके खिलाफ याचियों ने खंडपीठ का रुख किया।
याचियों ने दावा किया कि वर्ष 2020 में शिक्षक भर्ती विज्ञापन के समय ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू हो चुका था। उन्होंने कहा कि केंद्र की ओर से 103वां संविधान संशोधन 12 जनवरी 2019 को पारित किया गया और राज्य सरकार ने 18 फरवरी 2019 को शासनादेश जारी कर इसे लागू कर दिया था। इसके बावजूद चयन प्रक्रिया में इसका लाभ नहीं दिया गया, जो असंवैधानिक है।
राज्य सरकार के अधिवक्ता ने दलील दी कि भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत एक दिसंबर 2018 को उस शासनादेश से हुई थी जिसमें 69 हजार पदों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा आयोजित करने का
निर्णय लिया गया था। उनके अनुसार, यह प्रक्रिया ईडब्ल्यूएस आरक्षण लागू होने से पहले आरंभहो चुकी थी, इसलिए इसका लाभनहीं दिया जा सकता।
खंडपीठ ने पक्षों को सुनने के बाद कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण की शुरुआत 18 फरवरी 2019 से मानी जाएगी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि विज्ञापन जारी होने की तिथि (17 मई 2020) ही भर्ती प्रक्रिया की वैध शुरुआत मानी जाएगी।
दूसरी ओर याची के अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी का कहना है कि आदेश के खिलाफ वो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।