उत्तर प्रदेश UP के बुलंदशहर bulandshahr जनपद के विकासखंड ऊंचागांव में स्कूल मर्जर merger को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। शकरपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय vidalaya के बच्चों को जब शिक्षक चठेरा गांव स्थित स्कूल School ले जाने लगे तो गांव के अभिभावकों और ग्रामीणों ने इसका कड़ा विरोध करते हुए शिक्षकों teacher को बंधक बना लिया।ग्रामीणों का कहना है कि उनके गांव में पहले से प्राथमिक विद्यालय vidalaya मौजूद है, ऐसे में बच्चों को दूसरे गांव के स्कूल में भेजने की कोई आवश्यकता नहीं है। अभिभावकों ने चिंता जताई कि छोटे बच्चों के लिए दूसरे गांव तक आना-जाना असुरक्षित और असुविधाजनक है। विरोध कर रहे लोगों ने आरोप लगाया कि न तो मर्जर से पहले उनकी सहमति ली गई और न ही उन्हें कोई जानकारी दी गई।
क्या है मामला?
शकरपुर गांव के स्कूल school को निकटवर्ती चठेरा गांव के स्कूल school में मर्ज Marge किया गया है। मर्जर merger के बाद शिक्षक teacher बच्चों को पढ़ाई के लिए चठेरा ले जा रहे थे। तभी रास्ते में ग्रामीणों ने उन्हें रोक लिया, विरोध किया और फिर स्कूल School परिसर में ही उन्हें बंधक बना लिया। स्थिति तनावपूर्ण होते देख थाना नरसेना की पुलिस व स्थानीय प्रशासन मौके पर पहुंचा और ग्रामीणों को समझा-बुझाकर शिक्षकों teacher को मुक्त कराया। प्रशासन ने आश्वासन दिया कि ग्रामीणों की शिकायतों पर ध्यान दिया जाएगा।
शिक्षा विभाग की मर्जर नीति
बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) लक्ष्मीकांत पांडे ने मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए बताया कि जिले में कुल 1862 सरकारी विद्यालय vidalaya में हैं, जिनमें से 509 स्कूलों में 50 से कम छात्र हैं। ऐसे स्कूलों को संसाधनों की बेहतर उपलब्धता और शिक्षण की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पास के मॉडर्न स्कूलों school में मर्ज Marge किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि अब तक जिले में 145 स्कूलों school का मर्जर सफलतापूर्वक किया जा चुका है, लेकिन शकरपुर में यह पहली बार है जब मर्जर merger के विरोध में बंधक जैसी घटना हुई है।
उठ रहे हैं सवाल
इस घटना के बाद शिक्षा विभाग shiksha vibhag की मर्जर merger प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं। अभिभावकों और स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि इस तरह की योजना yojna से पहले स्थानीय लोगों की सहमति, बच्चों की सुरक्षा और सुविधा पर विचार नहीं किया गया। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि स्कूल मर्जर merger को केवल प्रशासनिक निर्णय बनाकर लागू किया जा रहा है, जबकि इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित बच्चों और अभिभावकों की राय ली ही नहीं गई।