ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा बढ़ाना समय की मांग
संसदीय समिति का सुझाव
2017 में 6.5 लाख से बढ़ाकर आठ लाख की गई थी क्रीमी लेयर की आय सीमा
नई दिल्ली, पेटूः अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कल्याण पर विचार कर रही एक संसदीय समिति ने कहा है कि क्रीमी लेयर की आय सीमा में संशोधन समय की मांग है। समिति का कहना है कि वर्तमान सीमा पात्र ओबीसी परिवारों के एक बड़े वर्ग को आरक्षण के लाभ और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं से वंचित कर रही है।
समिति ने शुक्रवार को संसद में पेश अपनी आठवीं रिपोर्ट में उल्लेख किया कि पिछली बार आय सीमा 6.5 लाख से बढ़ाकर आठ लाख रुपये प्रतिवर्ष 2017 में की गई थी। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के नियमों के अनुसार इस सीमा की समीक्षा हर तीन वर्ष में या आवश्यकता अनुसार उससे पहले की जानी चाहिए।
भाजपा सांसद गणेश सिंह की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा, वर्तमान सीमा कम है, जो ओबीसी के केवल एक छोटे हिस्से को ही कवर करती है। मुद्रास्फीति और निम्न आय वर्ग में भी बढ़ती आय के कारण इसमें वृद्धि समय की मांग बन गई है। लिहाजा समिति ओबीसी के अधिक से अधिक
वर्ष में बढ़ाने का है प्रविधान, इस सीमा के कारण बड़ा वर्ग आरक्षण सुविधा से वंचित
लोगों को शामिल करने के लिए वर्तमान क्रीमी लेयर सीमा की समीक्षा और तदनुसार संशोधन की सिफारिश दोहराती है। इससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को संतोषजनक स्तर तक बढ़ाने में मदद मिलेगी। हालांकि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने समिति को बताया कि क्रीमी लेयर की सीमा संशोधित करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है।
समिति की ओर से उठाया गया एक और अनसुलझा मुद्दा क्रीमी लेयर का दर्जा निर्धारित करने के लिए स्वायत्त निकायों और सरकारी पदों के बीच समानता के अभाव का है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तरह की समानता के अभाव के कारण योग्य ओबीसी उम्मीदवारों (यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा
उत्तीर्ण करने वाले उम्मीदवार भी शामिल) को सेवा आवंटन से वंचित कर दिया गया क्योंकि उनके माता-पिता के वेतन की गणना पद की समानता पर विचार किए बिना ही की गई थी। समिति ने मंत्रालय से इस मुद्दे को सुलझाने के लिए 2023 में डीओपीटी द्वारा गठित अंतर विभागीय समिति के साथ मिलकर काम में तेजी लाने का आग्रह किया। यद्यपि समिति की छठी रिपोर्ट की 12 में से 10 सिफारिशों को सरकार ने स्वीकार कर लिया, लेकिन क्रीमी लेयर संशोधन एवं समानता की दो सिफारिशों को दोहराया गया। समिति ने छात्रवृत्ति के लाभार्थियों में भारी गिरावट पर भी चिंता व्यक्त की। प्री-मैट्रिक योजना के तहत लाभार्थियों की संख्या 2021-22 में 58.6 लाख
से घटकर 2023-24 में 20.29 लाख रह गई, जबकि व्यय 218.29 करोड़ रुपये से घटकर 193.83 करोड़ रुपये रह गया। पोस्ट-मैट्रिक लाभार्थियों की संख्या 38.04 लाख से घटकर 27.51 लाख हो गई, जबकि इसी अवधि में व्यय 1,320 करोड़ रुपये से घटकर 988 करोड़ रुपये रह गया। इसके लिए राज्यों के अधूरे या विलंबित प्रस्ताव, पैसे का धीमी गति से उपयोग और आधार-आधारित डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर व आनलाइन पोर्टल में ट्रांजिशन संबंधी समस्याओं को प्रमुख कारण बताया गया। बजट आवंटन पर समिति ने कहा कि मंडल आयोग के अनुसार ओबीसी देश की जनसंख्या का 52 प्रतिशत हैं, फिर भी अनुसूचित जातियों की तुलना में उनके लिए केंद्रीय अनुदान बहुत कम है, जिनकी जनसंख्या लगभग 16.6 प्रतिशत है। समिति ने चेतावनी दी है कि समय पर नीतिगत सुधार व कुशल निष्पादन के बिना प्रक्रियात्मक देरी एवं पुराने पात्रता मानदंडों से शिक्षा, कौशल व सामाजिक कल्याण के जरिये पिछड़े वर्गों के उत्थान के सरकार के घोषित लक्ष्य कमजोर हो सकते हैं।