टीचर TET अपडेट: सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक नई अर्जी में यह तर्क दिया गया है कि *टीईटी (Teacher Eligibility Test)* शिक्षा के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है, क्योंकि इससे योग्य और सक्षम शिक्षकों का चयन सुनिश्चित होता है। अर्जी में कहा गया है कि अल्पसंख्यक स्कूलों को टीईटी से छूट देना बच्चों के शिक्षा के अधिकार के साथ अन्याय है। इन स्कूलों को आरटीई (Right to Education Act) के दायरे से बाहर रखना या शिक्षकों को टीईटी से मुक्त करना गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन माना जाएगा।
याचिकाकर्ता की ओर से मांग की गई है कि उन्हें इस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति दी जाए ताकि यह स्पष्ट हो सके कि टीईटी शिक्षा के अधिकार की मूल भावना से जुड़ा है और इसका उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को योग्य शिक्षक से शिक्षा दिलाना है।
याचिकाकर्ता की ओर से मांग की गई है कि उन्हें इस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति दी जाए ताकि यह स्पष्ट हो सके कि टीईटी शिक्षा के अधिकार की मूल भावना से जुड़ा है और इसका उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को योग्य शिक्षक से शिक्षा दिलाना है।
बड़ी पीठ को भेजा गया मामला
सुप्रीम कोर्ट पहले ही यह स्पष्ट कर चुका है कि कक्षा 1 से 8 तक अध्यापन करने वाले शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य है। हालांकि, इस फैसले में फिलहाल अल्पसंख्यक स्कूलों को अस्थायी राहत दी गई है। अब यह मामला बड़ी पीठ को भेजा गया है। यह स्थिति तब बनी जब दो जजों की पीठ ने *पर्मति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट* केस से जुड़े पांच जजों के पुराने फैसले पर पुनर्विचार की आवश्यकता जताई। पुराने निर्णय में अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई कानून से बाहर रखा गया था। अब यह पूरा मामला *चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया* के पास जाएगा, जो इस पर सुनवाई के लिए बड़ी पीठ का गठन करेंगे। यह नई अर्जी डॉ. खेम सिंह भाटी द्वारा दाखिल की गई है।
आरटीई की मंशा पर सवाल
अर्जी में यह भी कहा गया है कि पर्मति मामले में अदालत आरटीई कानून की वास्तविक भावना को ठीक से नहीं समझ पाई। यह कानून सभी बच्चों को समान, गुणवत्तापूर्ण और पूर्ण शिक्षा देने के लिए बनाया गया था। इसलिए अल्पसंख्यक स्कूलों को इसके दायरे से बाहर रखना इस उद्देश्य को कमजोर करता है। ऐसे संस्थानों में पढ़ने वाले बच्चों को भी प्रशिक्षित और योग्य शिक्षकों से शिक्षा पाने का समान अधिकार मिलना चाहिए।
टीईटी की अनिवार्यता पर जोर
टीईटी को शिक्षा व्यवस्था की गुणवत्ता बनाए रखने का अहम माध्यम माना गया है। इस परीक्षा से यह सुनिश्चित होता है कि शिक्षक न केवल प्रशिक्षित हों बल्कि वे बच्चों को प्रभावी ढंग से पढ़ाने में सक्षम भी हों। अल्पसंख्यक संस्थानों को इस नियम से मुक्त रखना शिक्षा में असमानता और गुणवत्ता में कमी ला सकता है। इसलिए याचिकाकर्ता ने मांग की है कि टीईटी को सभी स्कूलों में समान रूप से लागू किया जाए।
संवैधानिक संतुलन की आवश्यकता
संविधान का अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यक संस्थानों को अपने प्रबंधन के अधिकार देता है, जबकि अनुच्छेद 21A हर बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन दोनों संवैधानिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाना जरूरी है, ताकि शिक्षा का अधिकार कमजोर न पड़े और अल्पसंख्यक संस्थानों की स्वायत्तता भी सुरक्षित रहे। न्यायपालिका से इस मुद्दे पर एक दूरगामी और संतुलित फैसले की उम्मीद की जा रही है।