वाराणसी,ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों के परिषदीय स्कूलों में भारी असमानता है। गांवों के स्कूलों में जहां सुविधाओं के साथ छात्रों और शिक्षकों की भरमार है। वहीं शहरी क्षेत्र के 99 में 34 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक पढ़ाई से लेकर अन्य गतिविधियों की जिम्मेदारी संभाले हैं। खास यह कि एकल विद्यालयों की संख्या पिछले साल से दो बढ़ गई है। पिछले साल नगरीय क्षेत्र में ऐसे कुल 32 स्कूल थे।
बेसिक शिक्षा विभाग के आंकड़े बताते हैं कि महज एक शिक्षक या शिक्षामित्र के भरोसे चल रहे शहरी क्षेत्र के 34 स्कूलों में कई ऐसे भी हैं जहां 100 या इससे ज्यादा बच्चे हैं। शिक्षकों के सामने सभी कक्षाओं में हर विषय का संचालन, विभागीय गतिविधियों का संचालन और मुख्यालय के अभियानों में भागीदारी बड़ी चुनौती है।
शहरी क्षेत्र के दर्जनभर स्कूल ऐसे भी हैं जहां बच्चों की संख्या काफी कम है। जबकि कई में यह संख्या 500 से ज्यादा है। प्राथमिक विद्यालय दुर्गाघाट में एक भी बच्चा नहीं है जबकि रमरेपुर में मात्र दो विद्यार्थी पंजीकृत हैं। तेलियाबाग में 15, भोजूबीर 1 और 2 में 23 व 25 और भगतपुर में 39 बच्चे हैं। जबकि कंपोजिट विद्यालय महमूरगंज में 501 और सुंदरपुर में 412 बच्चे पंजीकृत हैं।
ये है समस्या की जड़
बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों की भर्ती का मूल स्थान ग्रामीण क्षेत्र ही होता है। ऐसे में शहरी क्षेत्र में शासन के आदेश और शिक्षकों की सहमति से ट्रांसफर किए जाते हैं। यही वजह है कि शहरी स्कूल वर्षों से शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं।
कोट
शहरी क्षेत्र के स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर करने के प्रयास हो रहे हैं। यहां एकल विद्यालयों में भी शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया जाता। कई स्कूलों को स्मार्ट क्लास सहित अन्य व्यवस्थाओं से लैस कराया जा चुका है। न्यूनतम या शून्य पंजीकरण वाले स्कूलों के जर्जर होने से बच्चों को पास के दूसरे स्कूलों में शिफ्ट कराया गया है।
राकेश सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी