बड़ा सवाल : शिक्षकों को टैबलेट देने से क्या हो पाएगा स्कूली शिक्षा में सुधार?


यूपी सरकार ने प्रदेश के लगभग तीन लाख प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों को टैबलेट देने की तैयारी कर रही है. सरकार की मंशा है कि डिजिटल लर्निंग और तकनीकी दक्षता से जरिए शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जा सकता है. हालांकि इसके पहले किए गए प्रयासों के परिणाम ज्यादा अच्छे नहीं रहे हैं. पढ़ें यूपी ईटीवी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी की कलम से निकला विश्लेषण.


लखनऊ : प्रदेश सरकार ने लगभग तीन लाख प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षकों को टैबलेट देने की घोषणा की है. सरकार का उद्देश्य है कि स्कूलों में पठन-पाठन का माहौल बने. साथ ही बच्चों में डिजिटल लर्निंग और तकनीकी दक्षता का रुझान बढ़े. सरकार का इरादा और इच्छाशक्ति निश्चित रूप से अच्छे हैं, लेकिन इसके परिणाम कितने सकारात्मक होंगे, अभी से यह कहना कठिन है. हालांकि अब तक के अनुभव बताते हैं कि यह काम उतना आसान नहीं है, जितना सरकार समझ रही है.

प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने और शिक्षा के लिए अनुकूल माहौल बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं. सरकार ने इन विद्यालयों में आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए ऑपरेशन कायाकल्प चलाया था. जिसके तहत प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों के बैठने के लिए फर्नीचर आदि की व्यवस्था करने के साथ ही अन्य सुविधाओं की ओर ध्यान दिया था. इन क्षेत्रों में काफी काम हुआ भी है. हालांकि अब भी बहुत कुछ किया जाना शेष है. सरकार ने प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में टैबलेट वितरण की घोषणा के साथ ही ऑपरेशन कायाकल्प के दूसरे चरण की शुरुआत भी कर दी है. सवाल यह उठता है कि शिक्षा में गुणवत्ता और जवाबदेही की ओर सरकार का ध्यान कब जाएगा. कम संसाधनों वाले निजी स्कूलों में बच्चे सरकारी विद्यालयों से अधिक सीख लेते हैं. आखिर ऐसा क्यों है? सरकारी तंत्र का ध्यान अभी तक इस ओर नहीं गया है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घोषणा के अनुसार दो लाख 93 हजार शिक्षकों को टैबलेट दिए जाएंगे. सरकार बच्चों को नई और तकनीकी विधा से न सिर्फ अवगत कराना चाहती है, बल्कि इस ओर बच्चों का रुझान बढ़े सरकार की यह भी मंशा है. स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर करने के लिए भी आवश्यक कदम उठाते हुए सरकार ने विगत छह साल में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में एक लाख 64 हजार से अधिक शिक्षकों की भर्ती की है. वहीं 11 हजार करोड़ रुपये से प्राशमिक विद्यालयों के संसाधनों के लिए खर्च किए गए हैं. प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या एक करोड़ चौंतीस लाख से बढ़कर एक करोड़ 91 लाख हो गई है. बावजूद इसके बच्चों की शिक्षा के स्तर में कोई भी सुधार दिखाई नहीं देता. प्राइमरी स्कूलों में नौकरी के लिए सबसे ज्यादा होड़ इसीलिए रहती है कि अन्य नौकरियों की तरह यहां कोई जवाबदेही नहीं है. यह जरूर है कि शिक्षकों को टैबलेट देने से डिजिटल लर्निंग और तकनीकी ज्ञान में की दिशा में बच्चों को लाभ होगा।

शिक्षा क्षेत्र से जुड़े डॉ. देवेंद्र सिंह चौहान कहते हैं प्राथमिक शिक्षा में सुधार इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि पढ़ाई को लेकर न शिक्षक गंभीर हैं और न ही अभिभावक. मैंने गांवों में देखा है कि अभिभावक खाद्यान्न और यूनिफॉर्म के पैसों के लिए पूछताछ करने स्कूल चले आते हैं, पर बिरले ही कोई अभिभावक बच्चे की पढ़ाई को लेकर आवाज उठाता होगा. डॉ. चौहान कहते हैं यदि पांचवीं कक्षा तक के बच्चे हिंदी तक सही से लिखना नहीं जानते तो इसमें केवल शिक्षकों का ही दोष नहीं है. अभिभावकों को भी इसकी शिकायत करनी चाहिए. हां, बड़ी तादाद में शिक्षक भी अपनी जवाबदेही नहीं समझते. तमाम टीचर स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने की बजाय मोबाइल या आपसी चर्चा में लगे रहते हैं. यदि बच्चों की योग्यता को शिक्षकों के प्रदर्शन से जोड़ दिया जाए तो चमत्कारी परिणाम हो सकते हैं. यह भी सही है कि हालात पहले की अपेक्षा काफी सुधरे हैं और अब भी बहुत काम करना बाकी है. अच्छा होगा कि टैबलेट से ही स्कूली शिक्षा में बदलाव की बयार बहे.

✍️ लेखक : आलोक त्रिपाठी

ब्यूरो चीफ, ईटीवी भारत