मोबाइल या टेलीविजन स्क्रीन पर बिताया गया हर अतिरिक्त घंटा बच्चों और किशोरों में मायोपिया के खतरे को बढ़ा रहा है। माना जाता है कि बच्चों को दो घंटे ही स्क्रीन पर बिताने चाहिए। कोरियाई शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि प्रतिदिन स्क्रीन पर एक अतिरिक्त घंटा बिताने से मायोपिया होने की संभावना औसतन 21 अधिक होती है। शोध की मानें तो 2050 तक दुनिया भर में लगभग 40 बच्चे और किशोर इस स्थिति से पीड़ित हो सकते हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि छोटे बच्चों को डिवाइस का सीमित उपयोग करना चाहिए और ज्यादा समय बाहर बिताना चाहिए। यह अध्ययन जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित हुआ है। मायोपिया को निकट दृष्टि दोष भी कहा जाता है।
भारत में 5 से 15 वर्ष की आयु के शहरी बच्चों में मायोपिया की दर में बड़ी वृद्धि देखी गई।
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भारत में बढ़ता मायोपिया: एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या
परिचय
आज के डिजिटल युग में, आंखों की समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं, और उनमें से एक प्रमुख समस्या मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मायोपिया का प्रसार तेजी से बढ़ रहा है और यह भविष्य में और भी गंभीर रूप ले सकता है।
मायोपिया का प्रसार
रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में भारत में मायोपिया का प्रसार 21.15% था, जो 2030 तक बढ़कर 31.89% होने की संभावना है। 2040 तक यह 40.01% तक पहुंच सकता है, और 2050 तक लगभग 48.14% लोगों को मायोपिया प्रभावित कर सकता है। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि आने वाले वर्षों में यह समस्या और गंभीर हो सकती है।
क्या है मायोपिया?
मायोपिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को नजदीक की वस्तुएं स्पष्ट दिखती हैं, लेकिन दूर की चीजें धुंधली नजर आती हैं। यह आमतौर पर बचपन में शुरू होता है और उम्र के साथ बढ़ सकता है। इसका मुख्य कारण आंखों की अधिक तनावपूर्ण गतिविधियां, जैसे लगातार स्क्रीन देखना, कम रोशनी में पढ़ाई करना और बाहरी गतिविधियों की कमी माना जाता है।
स्वास्थ्य पर प्रभाव
मायोपिया केवल दृष्टि तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह कई अन्य समस्याओं को जन्म दे सकता है:
- दृष्टि दोष का खतरा: अधिक स्क्रीन समय से आंखों पर दबाव बढ़ता है, जिससे दृष्टि दोष की संभावना 21% अधिक हो जाती है।
- शारीरिक और मानसिक प्रभाव: लगातार स्क्रीन देखने से आंखों में थकान, सिरदर्द, अनिद्रा और एकाग्रता में कमी जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
- शिक्षा और कार्य पर प्रभाव: कमजोर दृष्टि से पढ़ाई और कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है, जिससे कार्यस्थल और स्कूल में प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है।
क्या कर सकते हैं उपाय?
- स्क्रीन समय कम करें: खासतौर पर बच्चों और किशोरों को स्क्रीन का अधिक उपयोग करने से बचाना चाहिए।
- आंखों की नियमित जांच कराएं: समय-समय पर नेत्र विशेषज्ञ से अपनी आंखों की जांच कराएं।
- प्राकृतिक रोशनी में समय बिताएं: बाहर की प्राकृतिक रोशनी में समय बिताने से आंखों की सेहत बेहतर बनी रहती है।
- 20-20-20 नियम अपनाएं: हर 20 मिनट बाद, 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें, जिससे आंखों को आराम मिले।
- संतुलित आहार लें: विटामिन A, C और E युक्त भोजन, जैसे गाजर, पालक, अंडे और नट्स का सेवन करें।
मायोपिया की बढ़ती दर को देखते हुए, समय रहते इस पर नियंत्रण करना जरूरी है। सरकार, शिक्षण संस्थानों और अभिभावकों को मिलकर इसके प्रति जागरूकता फैलानी होगी और निवारक उपाय अपनाने होंगे। वरना आने वाले वर्षों में भारत की एक बड़ी आबादी दृष्टि संबंधी समस्याओं से जूझ सकती है। आंखें हमारे जीवन का अनमोल हिस्सा हैं, इनका सही ख्याल रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।