#दोटूक
इंचार्ज को समान वेतन देने के प्रकरण में मामला जब माननीय उच्चतम न्यायालय में गया तो लोगों ने तरह-तरह की व्याख्याएं की यह हो सकता है, वह हो सकता है इस क्वेश्चन ऑफ लॉ की व्याख्या होगी उस क्वेश्चन ऑफ लॉ की व्याख्या होगी लेकिन माननीय उच्चतम न्यायालय ने दो लाइन का आदेश पारित करते हुए कहा की कोई अच्छा कारण नहीं है कि हम उच्च न्यायालय के निर्णय में दखल दें तद्नुसार सरकार की स्पेशल लीव पिटीशन खारिज कर दी गई ।
अब फिर व्याख्या कारों का कहना है कि ऐसा हो सकता है वैसा हो सकता है सरकार यह कर सकती है सरकार वह कर सकती है या सरकारी यह करेगी या सरकार क्या करेगी।
मैं स्पष्ट करना चाहूंगा की बात सिर्फ इतनी ही होनी है कि जितने लोग हाई कोर्ट के द्वारा तय किए गए क्राइटेरिया के अंतर्गत इंचार्ज का काम किए हैं उनको हाई कोर्ट के आदेश के अनुरूप एरियर सहित वेतन देना ही देना है ।इसमें कोई दो राय नहीं है ।भले कल प्रमोशन हो जाए सारे इंचार्ज हटा करके रेगुलर प्रधानाध्यापक रखे जाएं वह एक अलग बात है लेकिन जितने लोगों ने काम किया है बतौर इंचार्ज प्रधानाध्यापक और हाईकोर्ट द्वारा तय किए गए क्राइटेरिया को फुलफिल करते हैं उनको एरियर और प्रधानाध्यापक का वेतनमान देना ही देना है तब तक जब तक कि वह इंचार्ज के पद पर हैं ।हाँ यह जरूर है कि इस आदेश के दूरगामी परिणाम होंगे । यही इस आदेश का मूल सार है इस प्रकरण का मूल तत्व है ।
सधन्यवाद
आपका
#एसकेपाठक