सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया, जिसमें प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में प्रभारी प्रधानाध्याकों को इस पद (प्रधानाध्यापक) को मिलने वाला वेतन और भत्ता देने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत के इस फैसले से राज्यों के उन हजारों शिक्षकों को लाभमिलेगा, जो स्कूलों में प्रभारी हेडमास्टर के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
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जस्टिस संजय कुमार और एस.सी. शर्मा की पीठ ने 30 अप्रैल को पारित हाईकोर्ट के फैसले को तर्कसंगत बताते हुए, इसमें दखल देने से इनकार कर दिया। पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार की अपील को सिरे से खारिज कर दिया है।
दरअसल, त्रिपुरारी दुबे की ओर से दाखिल याचिका पर हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल, 2025 को अपना फैसला दिया था। इस फैसले में हाईकोर्ट ने कहा था कि कार्य के अनुरूप वेतन मिलना चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा था कि यदि कोई शिक्षक प्रधानाध्याक की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहा है तो उन्हें प्रधानाध्यापक के पद का वेतन और भत्ता देने का आदेश दिया था। इसके साथ ही, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को प्रभारी प्रधानाध्याक की जिम्मेदारी संभाल रहे शिक्षकों को प्रधानाध्यापक के पद का वेतन व भत्ता
देने के साथ ही, इस मद का पिछला बकाया भी देने को कहा था। इस फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी।
सरकार ने कहा कि किसी भी शिक्षक को प्रशासनिक आदेश से प्रधानाध्यापक का पद नहीं दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि हम हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने के इच्छुक नहीं हैं। पीठ ने कहा कि यदि आप प्रभारी प्रधानाध्यापक को इस पद का वेतन व भत्ता नहीं देना चाहते हैं तो फिर नियमित प्रधानाध्यापक की नियुक्ति क्यों नहीं करते हैं। यूपी सरकार द्वारा अपील दाखिल किए जाने के मद्देनजर शिक्षकों की ओर से अधिवक्ता संदीप सिंह व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर आग्रह किया था कि मामले में सरकार की अपील पर शिक्षकों का पक्ष सुने बगैर कोई आदेश पारित नहीं किया जाए।