08 August 2025

'शिक्षक का बदला स्वरूप: हमारी पुरानी सोच और नई हकीकत'

 

दरअसल हम अभ्यस्त हो गए हैं अध्यापक का जो टिपीकल प्रारूप सन, 60,70, के दशक में गढ़ा गया, के रूप में देखने का वह यह था कि अध्यापक समाज का सबसे निरीह प्राणी है जो टूटी साइकिल से स्कूल में पढ़ाने आ रहा हो, जिसके पास फटा हुआ छाता हो, जो अपनी सैलरी से सिर्फ दो लोगों का जीवन निर्वाह कर सकता हो, जिसे बच्चा पैदे होने पर वो अपने बच्चों की परवरिश खुद न कर पाये और उनकी परवरिश के लिए अपने बच्चे को ननिहाल भेजने पर विवश हो, उसके अपने बच्चों की परवरिश ननिहाल में हो, उसको अध्यापक कहा जाता था, ठीक है क्या हुआ जो एक अध्यापक इन सब दुसवारियों से निकल कर आधुनिक हुआ है उसने अपना घर बना लिया।




 उसके कपड़े पहनने का अंदाज बदल गया, अब वो कभी कभी जींस टी शर्ट भी पहन लेता है बुलेट से भी चलता है उसने कार भी ले ली है, आंखों में काला चश्मा भी लगाता है, ये सब बातें हमें फंस नहीं रही हैं क्योंकि हमें आदत है उसके संसत्तावन का अध्यापक देखने की हमें जलन है। हमें चिढ़ है उसने अपने आपको इतना कैसे बदल लिया, कितनी सैलरी आ गई, लेकिन आपने एक बार भी उसकी मेहनत की तरफ देखने का प्रयास नहीं किया, यदि आप देखते तो आपकी रूह काँप जाती इसका मतलब ये नहीं कि सन् 57 वाले नजरिए से ही हम अध्यापक को देखें, ओ भी एक इंसान है और मानव रूप में अवतरित होकर के इस जीवन के संसाधनों का उपयोग उपभोग करना सबका अधिकार है तो एक अध्यापक का भी ये ही अधिकार है उसको समाज से आप अलग क्यों करते हैं, केवल अध्यापक पे तोहमत लगाना ये उचित बात नहीं, आज पूरा समाज संक्रमण के दौर से गुजरा रहा है परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, अध्यापक ने भी अपनी आर्थिक उन्नति की है लेकिन अध्यापक की आंखों में काला चश्मा, जींस, टीशर्ट गाड़ियों से चलना कुछ लोगों को रास नहीं आ रहा है, जिनको रास नहीं आ रहा है वही कहते हैं कि अध्यापक स्कूल नहीं जाता, पढ़ाता नहीं, कुछ करता नहीं, जबकि हकीकत ये है कभी आपने देखा है कि प्राइमरी स्कूल में पढ़ने वाले किसी बच्चे के लिए ट्यूटर लगे हों नहीं न, जो ट्यूटर पढ़ाता है उसकी भी पढ़ाई प्लस अपनी भी पढ़ाई हमारा शिक्षक अकेले ही इस अपने सरकारी स्कूल में करा देता है, लेकिन यदि आपने प्राइवेट स्कूल में आपने बच्चे का नामांकन कराया है, वो चाहे कितना भी नामचीन शहर का सबसे महंगा स्कूल हो, कितने बड़े शहर का हो, लेकिन यदि बच्चे के लिए आपने 1, 2 ट्विटर नहीं रखे तो फिर उसका बेड़ा राम ही पार करेंगे, उसका क्या होगा, कोई नहीं जानता, इसलिए मेरा आप सभी से अनुरोध है कि इन सरकारी स्कूल के शिक्षकों की महत्ता को पहचानिए वो अच्छे से जीवन जीना चाह रहे हैं उनको जीवन जीने दीजिए, उनके लिए और बेहतर संसाधन हम सभी को देना है, ताकि समाज को एक सुशिक्षित मानव संसाधन हमारे अध्यापक दे सके, जय हिंद जय भारत, जय शिक्षक, राकेश सिंह जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अलीगढ़ 7/8/25