08 September 2025

आईटीआर दाखिल करते वक्त बदल सकते हैं कर व्यवस्था

आयकर रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि नजदीक आ गई है। इस बार आईटीआर फॉर्म में कई बड़े बदलाव होने की वजह से आयकर विभाग ने समय सीमा को 31 जुलाई 2025 से बढ़ाकर 15 सितंबर 2025 कर दिया था। करदाता वित्त वर्ष 2024-25 (आकलन वर्ष 2025) के लिए नई और पुरानी कर व्यवस्था के तहत इस तिथि तक रिटर्न दाखिल कर सकते हैं। हालांकि, जो करदाता इस दौरान कर व्यवस्था बदलना चाहते हैं, उसके पास भी यह मौका है। आयकर नियमों के तहत रिटर्न दाखिल करते वक्त भी कर व्यवस्था बदलने की छूट दी गई है। यहां कर व्यवस्था बदलने का तरीका बताया जा रहा है...

● आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 115बीएसी(6) नई कर व्यवस्था से संबंधित है। यह धारा आयकर रिटर्न दाखिल करते समय प्रत्येक वित्तीय वर्ष में कर व्यवस्था चुनने की अनुमति देती है।

● आयकर विभाग ने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आयकर रिटर्न फॉर्म अधिसूचित कर दिए हैं। विभाग के पोर्टल पर आईटीआर फॉर्म दाखिल करते वक्त पूछा जाएगा कि क्या आप नई कर व्यवस्था से बाहर निकलने चाहते हैं?

● डिफॉल्ट के तौर पर नहीं का विकल्प होगा। करदाता को इसे बदलकर हां करना होगा।

● यदि विकल्प ‘नहीं’ चुना जाता है, तो आयकर रिटर्न फॉर्म नई कर स्लैब के अनुसार गणना करेगा।

● यदि हाँ चुनता है, तो देय आयकर की गणना पुरानी कर व्यवस्था में आयकर स्लैब के आधार पर होगी।

● करदाता को सिर्फ दो कटौती का फायदा मिलेगा। एक तो वेतन या पेंशन से 50 हजार रुपये की मानक कटौती और दूसरे, एनपीएस के टियर-1 खाते में नियोक्ता की तरफ से किया गया योगदान

● चूंकि ये दोनों छूट पुरानी व्यवस्था में भी मौजूद हैं, इसलिए अगर करदाता ने यह व्यवस्था चुनी थी तो इनका जिक्र फॉर्म-16 में होना चाहिए। ऐसे में रिटर्न भरते वक्त कोई दिक्कत नहीं आएगी

● विशेषज्ञों के अुनसार, करदाताओं को दोनों कर व्यवस्था की अच्छी तरह तुलना करनी चाहिए और जो उनके लिए सबसे अधिक फायदेमंद हो, उसका चुनाव करना चाहिए।

● अगर नई से पुरानी व्यवस्था को चुन रहे हैं तो

● नियोक्ता ने जो फॉर्म-16 और टीडीएस सर्टिफिकेट दिए हैं, उनमें कर कटौती नई व्यवस्था के हिसाब से होनी चाहिए।

● इसका मतलब ये है कि 31 मार्च तक कर बचत के लिए होम लोन के मूलधन और ब्याज के भुगतान और 80C के तहत निवेश समेत जो भी उपाय किए होंगे, उनका जिक्र फॉर्म-16 में नहीं होगा।

● ऐसे में करदाता को रिटर्न में इन सभी का ब्योरा अलग से भरना होगा।

● इसके साथ ही करदाता जो भी कर छूट का दावा करेंगे, उसके सबूत सुरक्षित रखने होंगे ताकि जरूरत पड़ने पर आयकर विभाग को दिखाए जा सकें।

● कर विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर करदाता आयकर की धारा 80सी या 80डी के तहत निवेश करते हैं या होम लोन है या बच्चे स्कूल/कॉलेज में पढ़ते हैं तो पुरानी कर व्यवस्था के अनुसार रिटर्न दाखिल करना चाहिए।

● अगर किसी भी प्रकार का निवेश या बचत नहीं करते हैं तो नई व्यवस्था के अनुसार रिटर्न दाखिल कर सकते हैं। नई व्यवस्था में इस तरह की कोई छूट नहीं मिलती। आय 10 लाख रुपये से ज्यादा है तो निवेश शुरू कर दें ताकि आयकर बचाया जा सके।

इनके पास मौका

सरकार ने नई कर व्यवस्था को पूरी तरह से डिफॉल्ट बना दिया है। इसका मतलब है कि अगर करदाता कोई कर व्यवस्था नहीं चुनता है तो उसका रिटर्न नई कर व्यवस्था के तहत अपने आप दाखिल हो जाएगा। कर गणना भी इसी के अनुरूप होगी। लेकिन आयकर नियमों के अनुसार, वेतनभोगी व्यक्तियों और व्यावसायिक पेशेवरों को हर साल पुरानी और नई कर व्यवस्थाओं के बीच स्विच करने का अवसर भी दिया जाता है।

भले ही किसी करदाता को वित्त वर्ष की शुरुआत में डिफॉल्ट के तौर पर नई कर व्यवस्था में डाल दिया गया हो या उसने खुद कोई भी व्यवस्था चुनी हो। रिटर्न भरते समय कर इसे बदलने का मौका मिलता है। इसका मतलब यह है कि अगर करदाता ने भूलवश भी कोई व्यवस्था चुन ली है तो रिटर्न भरते समय वह गलती को सुधार सकता है।

किन परिस्थितियों में बदलना सही

कर विशेषज्ञों के अनुसार, अगर करदाता को लगता है कि नई अथवा पुरानी व्यवस्था में उसे अधिक फायदा पहुंच रहा तो है तो आयकर रिटर्न दाखिल करते समय इसे बदल सकता है। खासकर उन मामलों में जहां करदाता का वेतन अधिक है और साथ ही वह अधिक बचत भी कर सकता है। उदाहरण के तौर पर कई कर्मचारियों के वेतन से टीडीएस कटौती नई व्यवस्था के आधार पर हुई होगी, जिनकी कर देनदारी नई व्यवस्था में अधिक निकलती है।

यह उनके लिए घाटे का सौदा होगा। अगर उन्होंने पीपीएफ, ईपीएफ और अन्य मदों में निवेश किया है, जहां वे कर कटौती के लाभ उठा सकते हैं तो उनके लिए अब भी पुरानी कर व्यवस्था को अपनाकर आईटीआर दाखिल करने का विकल्प है।

यह फॉर्म भरना होगा

आयकर विभाग हाल ही में संशोधित रिटर्न फॉर्म जारी किए। इनमें कर छूट दावों के लिए विवरण फॉर्म के साथ ही फॉर्म-10-आईईए शामिल है। जो करदाता नई से पुरानी कर व्यवस्था में आना चाहता है, उसे यह फॉर्म भरना होगा। ऐसा नहीं करने पर यह माना जाएगा कि करदाता ने नई व्यवस्था को अपनाया है और कर की गणना भी उसी के मुताबिक होगी। जो लोग पुरानी कर व्यवस्था में वापस जाना चाहते हैं, उन्हें नए 10-आईईए फॉर्म में कई तरह की जानकारियों को भरना होगा। इसके तहत पैन नंबर, कर भुगतान का पूरा विवरण आदि शामिल हैं। इसके अलावा इसके अतिरिक्त, फॉर्म में दोनों कर व्यवस्था के बदलाव करने के बारे में भी पूछा जाएगा।

समय पर आईटीआर दाखिल करना जरूरी

यदि आप इस वर्ष आयकर रिटर्न दाखिल करते समय पुरानी कर व्यवस्था का विकल्प चुन रहे हैं तो यह भी सुनिश्चित कर लें कि आईटीआर 15 सितंबर तक की समय सीमा तक जरूर दाखिल कर दें। ऐसा इसलिए है क्योंकि आयकर नियम किसी व्यक्ति को पुरानी कर व्यवस्था का विकल्प चुनने की अनुमति केवल तभी देते हैं, जब आईटीआर समय पर दाखिल किया जाता है। यदि कोई व्यक्ति 15 सितंबर के बाद विलंबित आईटीआर (31 दिसंबर तक) दाखिल करता है तो कर देनदारी की गणना नई कर व्यवस्था के आधार पर ही की जाएगी।

आईटीआर-3 और आईटीआर-4

अगर करदाता आईटीआर-3 या आईटीआर-4 दाखिल कर रहा है तो सिर्फ एक बार ही कर व्यवस्था में बदलाव कर सकते हैं। इसके बाद पुरानी कर व्यवस्था में वापस नहीं जा सकते हैं। नए रिजीम में जाने के लिए फॉर्म 10-आईईए भरना होगा। यह फॉर्म उन लोगों के लिए जरूरी है, जिनकी आय व्यापार या किसी पेशे से है।

आईटीआर-1 और आईटीआर-2

अगर आप आईटीआर-1 और आईटीआर-2 दाखिल कर रहे हैं और आपकी व्यवसाय/पेश से आय नहीं है, तो कर व्यवस्था बदल सकते हैं। आईटीआर फॉर्म भरते समय एक सवाल पूछा जाता है कि क्या आप नई कर व्यवस्था से बाहर निकलना चाहते हैं, उस दौरान हां का बटन दबाना होगा। इसके बाद पुरानी कर व्यवस्था के आधार पर गणना की जाएगी।

अगर पुरानी से नई व्यवस्था में बदलाव कर रहे हैं तो

कर व्यवस्था में छूट और कटौती का लाभ

कटौती या छूट पुरानी व्यवस्था नई व्यवस्था

मानक कटौती हां हां

एचआरए हां नहीं

होम लोन इंटरेस्ट हां नहीं

निवेश (80सी) हां नहीं

मेडिकल इंश्योरेंस हां नहीं

एजुकेशन लोन इंटरेस्ट हां नहीं

लीव ट्रैवल अलाउंस हां नहीं

एनपीएस (80सीसीडी02) हां नहीं

एनपीएस (80सीसीडी-1बी) हां नहीं

● सूचना : पुरानी कर व्यवस्था में 2.5 लाख रुपये की कर छूट मिलती है। इसमें 80सी के तहत 1.5 की कर छूट, 50 हजार की मानक कटौती और 50 हजार रुपये एनपीएस में योगदान के शामिल हैं। वहीं, नई व्यवस्था में केवल 50 हजार की मानक कटौती का ही लाभ मिलता है।

कौन-सी व्यवस्था सही

नई व्यवस्था का कर स्लैब

आय कर

0-3 लाख रुपये 0%

3-6 लाख रुपये 5%

6-9 लाख रुपये 10%

9-12 लाख रुपये 15%

12-15 लाख रुपये 20%

15 लाख रुपये से अधिक 30%

पुराना कर स्लैब

0-2.5 लाख रुपये 0%

2.5- 5 लाख रुपये 5%

5-10 लाख रुपये 20%

10 लाख रुपये से अधिक 30%

यदि कोई करदाता अपने नियोक्ता को सूचित करने में विफल रहता है, तब भी आयकर रिटर्न दाखिल करते समय कर व्यवस्था को बदल सकता है। बशर्ते यह नियत तारीख के भीतर किया गया हो। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि हर साल कर व्यवस्था बदलने की यह सुविधा सिर्फ वेतनभोगियों के लिए है। कारोबारी या व्यापारी सिर्फ एक बार ही बदल सकते हैं, हर साल नहीं।

कर छूट और कटौतियों में बड़ा अंतर

पुरानी और नई आयकर व्यवस्था के बीच मुख्य अंतर इनके तहत प्राप्त कर छूट और कटौतियां हैं। पुरानी व्यवस्था के तहत करदाता पर्याप्त कटौती का दावा कर सकते हैं, जिसमें मानक कटौती के साथ धारा 80सी, धारा 80डी और धारा 80टीटीए में निर्दिष्ट कर छूट शामिल हैं। पुरानी कर व्यवस्था में एक वेतनभोगी व्यक्ति कुल 2.5 लाख रुपये की कटौती का दावा कर सकता है। इसके विपरीत नई व्यवस्था चुनने वाले करदाता को केवल 50 हजार की मानक कटौती का ही लाभ मिलेगा।