“गए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास”
जुलाई माह में हुए समायोजन से प्रदेश के कई सारे विद्यालय सिंगल टीचर स्कूल के श्रेणी में चले गए। जब हम लोग यह मामला लखनऊ हाईकोर्ट के डबल बेंच के समक्ष रखे तो कई सारे बीएसए ने समायोजन के फलस्वरूप एकल शिक्षक हो चुके विद्यालयों से किये गए समायोजन को निरस्त कर अन्य विद्यालयों में समायोजित शिक्षकों के वापसी संबंधित आदेश निर्गत करना शुरू कर दिया। परंतु ऐसे समायोजित शिक्षक अपने विद्यालय वापस नहीं जाना चाहते थे तो उन्होंने बीएसए द्वारा निर्गत वापसी आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चैलेंज कर दिया। हाईकोर्ट ने इस मामले को समझा और दो मुख्य आदेश किए:-
1. याची (समायोजित शिक्षक) यदि बीएसए द्वारा निर्गत आदेश के अनुरूप अपने पूर्ववर्ती विद्यालय में वापस जाते है तो ही उनकों वेतन निर्गत किया जाये, यदि नहीं जाते तो वेतन नहीं मिलेगा, यद्यपि बकाया एरियर भुगतान पर याचिका के फाइनल डिस्पोजल के समय विचार किया जाएगा।
2. समायोजन प्रक्रिया में संबंधित अधिकारियों द्वारा इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि समायोजन के फलस्वरूप कई सारे विद्यालय एकल शिक्षक विद्यालय की श्रेणी में चले जाएँगे, जिस पर कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की और भविष्य में इस तरह की पुनरावृत्ति होने पर भ्रष्टाचार (निरोधक) अधिनियम के तहत संबंधित अधिकारियों/कर्मचारियों की जाँच कराने की भी बात कही है।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि यदि अब भी यह समायोजित शिक्षक अपने मूल विद्यालय में वापस नहीं जाते तो इनका वेतन आहरण न्यायालय की अवमानना की श्रेणी में आयेगा। बेहतर होगा कि एकल शिक्षक हो चुके विद्यालयों से समायोजित शिक्षक स्वतः ही घर वापसी कर लें। सचिव साहब का आदेश कल-परसों में आ जाएगा। याचिका के याचीगण ख़ुद का तो वेतन रुकवा ही बैठे बल्कि अधिकारियों पर भी जाँच की तलवार लटकवा दी।

