लखनऊ। दिल्ली और एनसीआर के साथ ही यूपी के तमाम शहर प्रदूषण की चपेट में हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों को देखें तो दिसंबर के 19 दिनों में से छह दिन राजधानी लखनऊ का एक्यूआई 200 से अधिक रहा। विडंबना यह है कि प्रदेश के चंद शहरों में ही हवा की गुणवत्ता का पता चल सकता है। कारण यह है कि यूपी के 75 फीसदी से अधिक जिलों में वायु प्रदूषण मापने के यंत्र यानि मॉनीटरिंग स्टेशन ही नहीं हैं। 75 जिलों वाले प्रदेश में महज 17 में ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मॉनीटरिंग स्टेशन स्थापित हैं।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की बात करें तो इसमें यूपी के आठ जिले शामिल हैं। यह जिले मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, मुजफ्फरनगर, बुलंदशहर, शामली, हापुड़, बागपत हैं। खास बात यह है कि इनमें से बागपत और शामली में तो हवा की गुणवत्ता मापने के स्टेशन ही नहीं हैं। एनसीआर से सटे जिलों के साथ ही प्रदेश के अन्य जिलों में भी प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ है। अस्पतालों में आने वाले मरीजों की बढ़ी हुई संख्या इसकी गवाही दे रही है। अस्पतालों की ओपीडी में इन दिनों 15 से 25 फीसदी तक मरीज बढ़ गए हैं। इसमें प्रदूषण जनित रोगों के मरीज भी शामिल हैं।
मॉनीटरिंग स्टेशन नाकाफी: खास बात यह है कि यह अधिकांश मॉनीटरिंग स्टेशन केवल शहरी क्षेत्रों में ही हैं। जो मशीनें लगी भी हैं, वो भी नाकाफी साबित हो रही हैं। फिरोजाबाद में सिर्फ दो जगह मशीनें लगी हैं जबकि वहां कांच और चूड़ी उद्योग के चलते तमाम कारखाने संचालित हैं। कानपुर को यूपी की औद्योगिक राजधानी कहा जाता था। बड़े आकार के चलते जिले को दो भागों में बांट दिया गया। मगर यहां प्रदूषण जांच के लिए महज तीन जगह ही मशीनें स्थापित हैं।
17 जिलों में हैं 49 स्टेशन
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों पर नजर डालें तो बोर्ड ने प्रदेश में कुल 49 मॉनीटरिंग स्टेशन (परिवेशीय वायुगुणता अनुश्रवण केंद्र) स्थापित हैं। यह केंद्र प्रदेश के 17 जिलों में लगे हैं। जल्द 18 मॉनीटरिंग स्टेशन स्थापित किए जाने हैं। अभी जहां स्टेशन हैं, उनमें आगरा-6, मेरठ-4, बरेली-2, बुलंदशहर-2, फिरोजाबाद-2, गाजियाबाद-4, हापुड़-1, गौतमबुद्धनगर-5, गोरखपुर-1, झांसी-1, कानपुर-3, लखनऊ-3, मुरादाबाद-6, मुजफ्फरनगर-1, प्रयागराज-3, वाराणसी-4 और मथुरा में एक स्टेशन है।

