सरकारी स्कूल के शिक्षक का काम है पढ़ाना न कि मिड डे मील की व्यवस्था करना: कोर्ट ने खारिज की केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका


सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले टीचर्स के लिए मुंबई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए केंद्र सरकार की उस पुनर्विचार याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षकों की जिम्मेदारी में मिड डे मील नहीं आता अर्थात शिक्षण कार्य करने वाले शिक्षकों को मिड डे मील की जिम्मेदारी नहीं दिया सकती।

हाईकोर्ट ने अपने दिए गए फैसले में कहा कि शिक्षा के अधिकार कानून में स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को शिक्षण कार्य के अलावा कोई दूसरी ड्यूटी देने का प्रावधान नहीं दिया गया है। बता दे कक्षा 1 से 8 तक के विद्यार्थियों के लिए स्कूलों में मिड डे मील योजना केंद्र सरकार ने 1995 में शुरू की थी।

सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले टीचर्स को मिड डे मील योजना लागू करने की जिम्मेदारी नहीं दी जा सकती बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा यह आदेश देते हुए केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया गया। हाई कोर्ट ने 27 फरवरी, 2014 एक आदेश में कहा था कि ‘मिड-डे मील’ के तहत दिए जाने वाले भोजन को टेस्ट करने व उसका रिकॉर्ड रखने का काम शिक्षकों को न दिया जाए। केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी कि हाई कोर्ट अपने इस आदेश पर दोबारा विचार करे।
बता दें कि जस्टिस एस़ बी़ शुक्रे व जस्टिस राजेश पाटील की बेंच के सामने केंद्र की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान बेंच ने कहा कि यदि एक बार हाई कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला है कि ‘मिड-डे मील’ का कार्यान्वयन शिक्षकों की ड्यूटी का हिस्सा नहीं है, तो हम इस पर पुनर्विचार नहीं कर सकते हैं, क्योंकि हम अपील कोर्ट नहीं हैं। वैसे भी, हमारे सामने संतोषजनक कारण नहीं है, जिसके आधार पर पुराने आदेश पर पुनर्विचार किया जा सके।

कोर्ट द्वारा अपना मत व्यक्त करते हुए कहा कि इसलिए केंद्र सरकार की याचिका पर विचार नहीं किया जा सकता है। ‘मिड-डे मील’ योजना लागू करने के लिए राज्य सरकार की ओर से नियम तैयार किए गए हैं, जिसके खिलाफ महिला बचत गट ने भी कोर्ट में याचिका दायर की है।

सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8 तक पढ़ने वाले विद्यार्थियों के लिए केंद्र ने 1995 में ‘मिड-डे मील’ योजना शुरू की थी। राज्य सरकार ने इस योजना के अमल को लेकर जून, 2009 और फरवरी, 2011 में निर्णय लिया था। सरकार के निर्णय के मुताबिक तय शर्तों को पूरा करने के बाद महिला बचत गट को ‘मिड-डे मील’ का ठेका दिया जाता है।

मिड डे मील योजना में 75 प्रतिशत हिस्सेदारी केंद्र सरकार की है, जबकि 25 प्रतिशत राज्य सरकार की हिस्सेदारी की है। 22 जुलाई, 2013 में केंद्र सरकार ने योजना को लेकर नए सिरे से नियमावली जारी की। इस नियम के तहत छात्रों को भोजन देने से पहले शिक्षक उसे जांचे और उसका रिकॉर्ड रखें।

हाई कोर्ट ने वर्ष 2014 के अपने पूर्व आदेश में कहा था कि मिड डे मील से जुड़ा कोई भी कार्य शिक्षकों को नहीं दिया जा सकता। स्कूल में बनने वाले विद्यार्थियों के लिए मिड डे मील की गुणवत्ता व स्वच्छता से संबंधित अन्य क्षेत्र के विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाए।कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि शिक्षा अधिकार कानून की धारा 27 के तहत शिक्षकों को शैक्षणिक कार्य के अलावा कोई दूसरा काम नहीं दिया जा सकता है।

वहीं दूसरी ओर पीएम पोषण योजना के तहत प्रदेश में विद्यालय में दिए जाने वाले बच्चों के मिड डे मील राशि में वृद्धि करने के बाद अब मेन्यू में बदलाव किया गया है।स्कूलों में मिड डे मील खाने वाले बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अब मेन्यू में श्रीअन्न (बाजरा) को शामिल किया गया है। अब हर दिन सब्जी और हफ्ते में चार दिन दालयुक्त भोजन देने का निर्णय लिया गया है।

स्कूलों में बनने वाले मिड डे मील के संशोधित मेन्यू के अनुसार अब सोमवार को रोटी, सोयाबीन युक्त मौसमी सब्जी व मौसमी फल, मंगलवार को चावल, सब्जी, दाल, बुधवार को मौसमी सब्जी, सोयाबीन की बड़ी युक्त तहरी व दूध दिया जाएगा।


गुरुवार को रोटी, सब्जी, दाल, शुक्रवार को मौसमी सब्जी, सोयाबीन की बड़ी युक्त तहरी या मूंग की दाल व मौसमी सब्जी के साथ बाजरा की खिचड़ी, शनिवार को चावल, सब्जी और दालयुक्त भोजन बच्चों को दिया जाएगा।