कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि जिस मांग को लेकर कर्मचारियों ने दिल्ली में इतना बड़ा प्रदर्शन किया, वह तो कांग्रेस शासित राज्यों में पहले से ही लागू है। इसलिए इन कर्मचारियों का गुस्सा भाजपा सरकार पर निकल रहा है...
जिस तरीके से एक अक्तूबर को पुरानी पेंशन बहाली के लिए देश के अलग-अलग राज्यों से आए कर्मचारियों ने दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन किया, वह I.N.D.I.A गठबंधन के लिए बड़ा गेम चेंजर साबित हो सकती है। हालांकि इस शक्ति प्रदर्शन में I.N.D.I.A गठबंधन का सीधे तौर पर तो कोई सरोकार नहीं था, लेकिन रविवार को जुटी भीड़ में जिस तरह गठबंधन के नेताओं ने पुरानी पेंशन बहाली का समर्थन किया, उससे इस बात का अंदाजा लग रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनावों और विधानसभा चुनावों में एक बार फिर से पुरानी पेंशन बहाली बहुत बड़ा मुद्दा बनने वाला है। वहीं कांग्रेस शासित राज्यों में लागू की गई पुरानी पेंशन बहाली योजना को देश के सभी राज्यों में विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिहाज से सभी कर्मचारी तक इसको पहुंचने का पूरा सियासी खाका खींच लिया गया है।
कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं का कहना है कि जिस मांग को लेकर कर्मचारियों ने दिल्ली में इतना बड़ा प्रदर्शन किया, वह तो कांग्रेस शासित राज्यों में पहले से ही लागू है। इसलिए इन कर्मचारियों का गुस्सा भाजपा सरकार पर निकल रहा है। फिलहाल कांग्रेस पार्टी अपने ब्लॉक स्तर के पदाधिकारियों के माध्यम से कर्मचारियों से सीधे मिलकर पार्टी की योजनाओं के बारे में अवगत कराने की तैयारी में जुट गई है।
दिल्ली में अलग-अलग राज्यों से आई कर्मचारियों की भारी भीड़ के बाद पार्टी ने इसको सियासी रूप से अपने पाले में करने की बड़ी रणनीतियां बनानी शुरू कर दी हैं। सियासी जानकारी का कहना है जिस तरीके से INDIA गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों ने कर्मचारियों की इस मुहिम और आंदोलन को समर्थन दिया है, उससे आने वाले चुनावों में सियासी मुद्दे का पता चल रहा है। समाजवादी पार्टी से लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से लेकर इस संगठन में शामिल अन्य दलों ने रविवार को अपना समर्थन दिया है, उससे यह पता चलता है कि विपक्षी दल किस तरीके से केंद्र सरकार को पुरानी पेंशन के मामले पर घेरने की रणनीति बना रहा है।
कांग्रेस पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता बताते हैं कि अक्तूबर के दूसरे सप्ताह से देश के अलग-अलग राज्यों में ब्लॉक कांग्रेस और नगर कांग्रेस के पदाधिकारी के माध्यम से गांव-गांव में रहने वाले कर्मचारियों को पुरानी पेंशन बहाली के मुद्दे पर न सिर्फ जागरूक किया जाएगा, बल्कि अपने कांग्रेस शासित राज्यों में पुरानी पेंशन की हुई बहाली के बारे में भी बताया जाएगा। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता बताते हैं हालांकि अभी इसको लेकर कोई तारीख तो नहीं घोषित हुई है, लेकिन अनुमान है कि अक्तूबर के दूसरे सप्ताह से एक बड़े अभियान के तौर पर इसको आगे बढ़ने का जरूर बना है।
कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं का मानना है कि दिल्ली में आयोजित हुई कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली की मांग न सिर्फ जायज है बल्कि केंद्र सरकार को लागू करना भी चाहिए। कांग्रेस के नेता दीपेंद्र हुड्डा कहते हैं कि उनका पूरा समर्थन रामलीला मैदान में जुटे अलग-अलग राज्यों से आए इन कर्मचारियों और उनके संगठनों को है, जो लगातार पुरानी पेंशन बहाली की मांग करते आ रहे हैं। दीपेंद्र हुड्डा कहते हैं कि जो कर्मचारी का हक है, उसे केंद्र सरकार को तत्काल प्रभाव से देना चाहिए। जिस तरीके से कांग्रेस की सरकारी लगातार पुरानी पेंशन बहाली को अपने राज्य में लागू कर रही है, वहीं केंद्र सरकार को करना चाहिए। पार्टी के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि राज्य में और केंद्र में कांग्रेस की सरकार आने पर पुरानी पेंशन बहाली को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाएगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ओपीएस एक बड़ा मुद्दा तो है ही। ओपीएस को लेकर लंबे समय से संघर्ष करने वाली संस्था ऑल टीचर्स एंप्लॉई वेलफेयर एसोसिएशन (अटेवा) पेंशन बचाओ मंच के कर्मचारी नेता सुशील श्रीवास्तव कहते हैं कि जो पार्टी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाएगी और उनकी समस्याओं को दूर करेगी, जाहिर सी बात है कर्मचारी उनके साथ जुड़ेगा ही। राजनीतिक विश्लेषक आरएन शर्मा बताते हैं कि जिस तरीके से कांग्रेस ने इस मुद्दे को उठाया और मुद्दे के साथ उनको सफलता मिली, वह निश्चित तौर पर अगले चुनावों में कांग्रेस के लिए गेम चेंजर साबित हो सकती है। कांग्रेस पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता बताते हैं कि जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, वहां पर इस योजना को लागू किया जा चुका है। यही वजह है कि जिन राज्यों में चुनाव हो रहे हैं वहां पर जनता इस मुद्दे के साथ कांग्रेस में भरोसा जता रही है।
सियासी जानकारों का कहना है कि कर्मचारियों के इस मुद्दे के साथ राजनीतिक पार्टियां चुनावी आगाज तो कर ही रही हैं। राजनीतिक विश्लेषक सुनील जागलान कहते हैं कि लेकिन यह जरूरी नहीं है कि ओपीएस के मुद्दे पर सभी राज्यों में राजनीतिक दलों को जनता का इतना ही समर्थन मिले। जागलान बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी ने भी विधानसभा के चुनावों में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। उत्तर प्रदेश की जनता और कर्मचारियों ने इस मुद्दे में समाजवादी पार्टी का साथ नहीं दिया। नतीजतन समाजवादी पार्टी को इस मुद्दे का कोई लाभ नहीं हुआ। वह कहते हैं कि सिर्फ यही मुद्दा उठा कर कोई भी राजनीतिक पार्टी सरकार बनाने का सपना नहीं देख सकती। हालांकि सियासी जानकार कहते हैं कि ओपीएस मुद्दा बहुत बड़ा होता जा रहा है। जिस तरह से एक अक्तूबर को दिल्ली के रामलीला मैदान पर अलग-अलग राज्यों से आए कर्मचारियों ने अपनी शक्ति प्रदर्शन कर मांग को जायज ठहराते हुए पुरानी पेंशन बहाली की बात कही, वह निश्चित तौर पर आने वाले लोकसभा चुनाव में एक बहुत बड़ा मुद्दा बनने वाला है।
आर्थिक मामलों से जुड़े विशेषज्ञ आरएस वैद्य कहते हैं कि 2003 में जब इस स्कीम को बंद किया गया, तो आर्थिक स्थिति की बात कही गई थी। उसके बाद बहुत से राज्यों ने इस योजना की बहाली भी थी। वैद्य कहते हैं कि कांग्रेस ने अपने शासन वाले राज्यों में उसकी बहाली कर दी है। उनका कहना है कि हिमाचल चुनाव इस बड़े मुद्दे के साथ ही कांग्रेस पार्टी ने जीता है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि निश्चित तौर पर उनकी पार्टी जिस तरह राज्यों में पुरानी पेंशन बहाल कर रही है, वह केंद्र सरकार में आने पर पूरी तरीके से व्यवस्था को लागू कर देगी।