आंगनबाड़ी केंद्र होने पर भी कुपोषित बच्चों का झाड़-फूंक से हो रहा इलाज


प्रयागराज। बाबू जी हमरे बेटवा के पैदा होवे के छह दिन बाद उल्टी आए लगी रही। जेहिके बाद हमका लगा कि कौऊनो ऊपरी बला हवे। 20 दिना तक झाड़-फूंक करवाया मगर कऊनो फायदा नाही हुआ।



यह कहना है प्रतापगढ़ के सिंगाही गांव की एक महिला का, जो कि कई दिनों से चिल्ड्रेन अस्पताल में 14 माह के अतिकुपोषित बच्चे का इलाज करवा रही है। प्रयागराज मंडल में 9 हजार 944 आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से कुपोषित बच्चों की देखभाल की जा रही है। इसमें तीन हजार 252 आंगनबाड़ी केंद्र प्रतापगढ़ में सक्रीय हैं।

सवाल यह उठता है कि इतने केंद्र सक्रीय होने के बाद भी माता-पिता को क्यों नहीं पता चलता कि उनका बच्चा कुपोषण का शिकार है। किसी अन्य बीमारी की चपेट में आने के बाद उसे चिल्ड्रेन अस्पताल लाया जाता है। तब सक्रीनिंग


चलता है कि बच्चा कुपोषित नहीं बल्कि अतिकुपोषित है।

पिछले छह महीने में प्रयागराज के सरोजनी नायडू बाल चिकित्सालय (चिल्ड्रेन) अस्पताल में अति कुपोषण का शिकार 112 बच्चे भर्ती हुए हैं। वर्तमान में दस बेड के अतिकुपोषित वार्ड में छह बच्चे भर्ती हैं। आंगनबाड़ी केंद्र का काम शून्य से पांच वर्ष तक के बच्चों में पोषण की कमी को पूरा करना और समय पर उनकी स्क्रीनिंग करके इस बात का पता लगाना है, कि कहीं वह कुपोषण का शिकार तो नहीं हो रहे। अगर बच्चों की समय पर स्क्रीनिंग हो रही होती तो समय रहते पता चल जाता कि वह कुपोषण का शिकार हैं या नहीं। समय रहते उनका उपचार भी शुरू हो जाता।

मगर ऐसा नहीं हो रहा है। अधिकतर केंद्र काम के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं। खेलता- कूदता बच्चा जब किसी अन्य बीमारी की चपेट में आ जाता है, तब उसे चिल्ड्रेन अस्पताल लाया जाता है और जानकारी होती है कि वह कुपोषित है। ऐसे में माता-पिता अज्ञानता में अपने बच्चों को झोलाछाप और तांत्रिक के पास ले जाते हैं। इससे हालात और भी बदतर हो जाती है।

कैसे करें बचाव

• समय पर टीकाकरण

• शून्य से दो साल तक बच्चों को सिर्फ मां का दूध ही पिलाएं।

• छह महीने बाद ठोस आहार देना

• दाल का पानी नहीं दाल देना चाहिए

• समय-समय पर स्क्रीनिंग करांए

• गर्भवती महिला की भी जांच होनी चाहिए

• बच्चों में कम से कम तीन साल का अंतर हो 
• साफ-सफाई का ध्यान रखें।