प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बिना किसी ठोस सबूत के सिर्फ संदेह के आधार पर अभ्यर्थियों का भविष्य नहीं बर्बाद कर सकते।
इस टिप्पणी संग कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सिविल पुलिस और प्लाटून कमांडर पीएसी भर्ती 2020-21 में अनुचित साधनों का प्रयोग करने के आरोप में अभ्यर्थियों को शारीरिक दक्षता परीक्षा (पीइटी) में बैठने से रोक लगाने वाले आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने परमादेश जारी कर कहा, याचिकाकर्ताओं व उनके समान मामले वाले सभी अभ्यर्थियों की तीन महीने के अंदर पीइटी कराया जाए। साथ ही अन्य शेष प्रक्रियाएं भी पूरी की जाएं। यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने विभिन्न याचिकाओं पर दिया है।
उत्तर प्रदेश सिविल पुलिस और प्लाटून कमांडेंट पीएसी भर्ती 2020-21 में कुल 9534 रिक्तियां थीं। लिखित परीक्षा के बाद कुछ अभ्यर्थियों को दस्तावेज सत्यापन और शारीरिक मानक परीक्षण के लिए बुलाया गया था जिसे उन्होंने पूरा कर लिया था। हालांकि, पीईटी के दौरान बोर्ड ने अनुचित साधनों के इस्तेमाल का आरोप लगाते हुए उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी और उन पर एफआईआर भी दर्ज करा दी। इस फैसले को सैकड़ों अभ्यर्थियों ने
हाईकोर्ट में चुनौती दी।
कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पाया कि पुलिस भर्ती बोर्ड ने अभ्यर्थियों की परीक्षा के दौरान रिकॉर्ड किए गए वीडियो का विश्लेषण कर यह अनुमान लगाया था कि कुछ ने बहुत ही कम समय में प्रश्न पत्र हल कर लिया था। इसी आधार पर उनकी उम्मीदवारी रद्द कर दी गई। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को मनगढ़ंत और अनुमान पर आधारित मानते हुए कहा कि उम्मीदवारों को अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया जो कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है.
इन जिलों के अभ्यर्थियों ने दाखिल की थी याचिका: मेरठ, बरेली, फिरोजाबाद,
आगरा, गोरखपुर, गौतमबुद्ध नगर, कानपुर नगर, वाराणसी, मुजफ्फरनगर, झांसी, मिर्जापुर, बस्ती, अलीगढ़, फतेहपुर एवं प्रयागराज के सैकड़ों दरोगा पद के अभ्यर्थियों ने यचिका दाखिल की थी।