इलाहाबाद हाईकोर्ट ने देरी के आधार पर निरस्त किए गए अनुकंपा नियुक्ति के मामले में कहा कि नाबालिग के मामले में विभाग को तकनीकी (देरी) आधार पर अनुकंपा नियुक्ति से इनकार नहीं करना चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति मंजूरानी चौहान ने वैभव कुमार यादव की याचिका पर उसके अधिवक्ता गोपालजी खरे को सुनकर दिया है।
कोर्ट ने मामले की पहली ही सुनवाई में राहत देते हुए विद्युत वितरण खंड शिकोहाबाद के कार्यकारी अभियंता का आदेश रद्द कर दिया। साथ ही याची वैभव कुमार यादव के आवेदन पर चार सप्ताह के भीतर पुनः विचार करते हुए सकारण आदेश करने का निर्देश दिया। एडवोकेट गोपाल जी खरे ने कोर्ट को बताया कि याची के पिता बिजली विभाग में कुशल श्रमिक के पद पर कार्यरत थे। सेवा के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई। उस समय वैभव मात्र 11 वर्ष और उसका छोटा भाई पांच वर्ष से भी कम उम्र का था। दोनों की मां का निधन पहले ही हो चुका था। ऐसे में दोनों बच्चों का पालन-पोषण उनकी दादी ने किया। वैभव ने वयस्क होने पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया लेकिन विभाग ने यह कहते हुए आवेदन निरस्त कर दिया कि यह कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से पांच वर्ष बाद दिया गया है जो नियमों के विरुद्ध है।
अधिवक्ता गोपाल जी खरे ने अपनी दलील में कहा कि यह आदेश पूर्णतः असंवेदनशील है क्योंकि याची उस समय नाबालिग था और परिवार की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। उन्होंने गणेश शंकर शुक्ल के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई आश्रित संतान नाबालिग हो, तब देरी को तकनीकी आधार बनाकर न्याय से वंचित नहीं किया जा सकता। अधिवक्ता ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को तत्काल आर्थिक सहायता प्रदान करना है न कि उन्हें कानूनी औपचारिकताओं में उलझाकर निराश करना।
सरकारी एवं विभागीय वकीलों ने तथ्यों का विरोध नहीं किया और माना कि प्रकरण सुप्रीम कोर्ट के उक्त निर्णय से आच्छादित है। इस पर कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए याची की अनुकंपा नियुक्ति के मामले में विद्युत वितरण खंड शिकोहाबाद के कार्यकारी अभियंता का आदेश रद्द कर दिया और उन्हें उक्त आवेदन पर सकारण आदेश करने का निर्देश दिया।