कोटे में कोटा का सुप्रीम कोर्ट में किया समर्थन

हरियाणा सरकार ने कोटे में कोटा देने वाले कानून-हरियाणा अनुसूचित जाति (सरकारी शिक्षण संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण) अधिनियम, 2020 की सुप्रीम कोर्ट में तरफदारी की है। राज्य सरकार ने कहा कि आरक्षण का लाभ सभी तक पहुंचाने के लिए अनुसूचित जाति वर्ग के भीतर उप श्रेणी बनाने का उसको अधिकार है। प्रत्येक अनुसूचित जाति वर्ग की आवश्यकता के अनुसार आरक्षण का लाभ वितरित करना सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। अगर कमजोर वर्ग के उत्थान के लिए अनुसूचित जाति वर्ग में विशेष वर्गीकरण किया जाता है तो उसमें कुछ भी गैरकानूनी नहीं है। सरकार ने कानून को चुनौती देने वाली याचिका के औचित्य पर सवाल उठाते हुए कोर्ट से याचिका खारिज करने की मांग की है।


शीर्ष अदालत ने गत शुक्रवार को हरियाणा सरकार की ओर से दाखिल इस हलफनामे का जवाब देने के लिए याचिकाकर्ता संगठन को समय दिया और सुनवाई दो सप्ताह के लिए टाल दी। हरियाणा के अनुसूचित जाति वर्ग के एक संगठन ने इसी श्रेणी के लिए निर्धारित आरक्षण में से कोटे का लाभ लेने से वंचित रह गए वर्ग (डिप्राइव्ड शिड्यूल कास्ट) को आरक्षण देने वाले कानून को चुनौती देते हुए इसे रद करने की मांग की है। याचिका में विशेष रूप से कानून की धारा 2(सी), 3(1) और 3(2) को अनुसूचित जाति वर्ग के हितों के खिलाफ और संविधान के उपबंधों का उल्लंघन करने वाला बताया गया है।

इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया था। इस मामले में राज्य सरकार ने कानून में संशोधन करके अनुसूचित जाति वर्ग के लिए तय 20 प्रतिशत आरक्षण में से 50 प्रतिशत वंचित अनुसूचित जाति (डिप्राइव्ड शिड्यूल कास्ट) के लिए कर दिया है। सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में इसका लाभ मिलेगा। हरियाणा सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि इस कानून को पारित करना राज्य विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसमें किसी तरह का कोई उल्लंघन नहीं हुआ है। याचिकाकर्ता ईवी चिन्नैया के जिस फैसले को आधार बना रहा है, उस फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजा गया है।