अपनी जेब से मिडडे मील खिलाने में कर्जदार हो गए यूपी के मास्टर साहब, दुकानदार भी उधार देने को तैयार नहीं

कानपुर में मिड डे मील या मध्याह्न भोजन योजना पर संकट छा गया है। परिषदीय स्कूलों के बच्चों को मिडडे मील खिलाने में शिक्षक कर्जदार हो गए हैं। एक-दो नहीं, बल्कि कानपुर में वर्तमान में 20 करोड़ रुपये की बकाया धनराशि हो चुकी है, नहीं मिलने से शिक्षक परेशान हैं। मार्च के बाद से अब तक केवल दो बार कन्वर्जन कॉस्ट शासन की ओर से भेजी गई है। सितंबर के मध्य में 2.18 करोड़ और नवंबर में 9.33 करोड़ मिले। यह रकम तब भेजी गई जब 30 करोड़ का बकाया हो चुका था। परिषदीय ब्लॉक के स्कूलों को खाद्यान्न व कन्वर्जन कॉस्ट (परिवर्तन लागत) की धनराशि उपलब्ध कराई जाती है। जनवरी के बाद से अब तक कन्वर्जन कॉस्ट और खाद्यान्न पर संकट बना हुआ है।



एमडीएम खिलाओ, कहीं से भी लाओ
अहम बात है कि पैसा भेजा नहीं जा रहा और शिक्षकों को सख्त निर्देश हैं कि बच्चों को एमडीएम अनिवार्य रूप से खिलाना है। परेशान शिक्षकों ने आसपास की दुकानों से या तो उधार सामग्री ली या अपनी जेब से खर्च कर सामान खरीदा। कई शिक्षक लाखों के कर्जदार हो चुके हैं। कुछ स्कूलों में प्रधानों ने मदद कर दी।



फल का बजट नहीं मिला
महीने में पांच बार बच्चों को फल खिलाना होता है। इसके लिए चार रुपये प्रति छात्र दिया जाता है। वर्ष 2021 से अब तक का बजट का फल नदारद है। दूध के लिए कोई अतिरिक्त धनराशि नहीं दी जाती है। परिवर्तन लागत से ही धनराशि इसमें खर्च करनी होती है। एमडीएम समन्वयक के मुताबिक सितंबर के बाद अब 9 करोड़ 33 लाख 83 हजार रुपये आए हैं जो स्कूलों को भेजे जा रहे हैं। जो धनराशि बकाया है उसके लिए डिमांड की गई है। 

केस-1
कटरी स्थित एक स्कूल में करीब 1.90 लाख रुपये बकाया हैं। कई दुकानों से खरीदारी की गई क्योंकि दुकानदार ने उधार देने से मना कर दिया। बीच में कई बार आंशिक भुगतान जेब से करना पड़ा है। 

केस-2
पतारा स्थित स्कूल के शिक्षक का कहना है कि विद्यालय में शिक्षक भले कितने हैं लेकिन एमडीएम के लिए प्रधानाध्यापक या इंचार्ज को जेब से खर्च करना पड़ता है। उसे तो अपने बच्चे पालना मुश्किल हो गया है।