सर्वे : पढ़ाई और नौकरियों में पिछड़ सकते हैं कोविड काल के छात्र


कोरोना काल में दुनिया के 95 फीसदी बच्चों को स्कूल बंद होने का सामना करना पड़ा है। इसके दुष्प्रभावों को लेकर हुए एक शोध में दावा किया गया है कि स्कूल बंद होने से विद्यार्थियों की यह पीढ़ी लंबे समय तक प्रभावित रह सकती है। उसे श्रम बाजार में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। यानी वे अच्छी नौकरी हासिल करने में पिछड़ सकते हैं।





नेचर ह्यूमन बिहेवियर जर्नल में प्रकशित एक शोध में दावा किया गया है। कोरोना काल में स्कूल बंद रहने से बच्चों की तकरीबन 3.5 महीने की अवधि के बराबर की स्कूल में होने वाली पढ़ाई नहीं हो सकी। यह क्षति एक स्कूल वर्ष के 35 फीसदी के बराबर है। इससे बच्चों के सीखने की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित हुई है। 

शोधकर्ताओं ने महामारी के दौरान स्कूल बंद होने को लेकर दुनिया भर में हुए 5997 शोधपत्रों का विश्लेषण करने के बाद यह नतीजा निकाला है। उच्च एवं मध्यम आय वाले 42 देशों के अध्ययनों से यह भी ज्ञात हुआ है कि स्कूल बंद होने के कारण बच्चे 291 किस्म के कौशल नहीं सीख पाए ।




रिपोर्ट में कहा गया है कि निम्न आए वाले देशों से पर्याप्त आंकड़े नहीं मिले हैं, लेकिन हालात इशारा करते हैं कि वहां यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर हो सकती है। अध्ययन के सह लेखक और ऑक्सफोर्ड यूनिवसिर्टी के समाजशास्त्री बेस्टाइन बेत्थेसर ने कहा कि कोविड महामारी के दौरान स्कूल बंद होने से पूरी एक पीढ़ी प्रभावित हुई है। 


आश्चर्य की बात यह रही कि पिछले साल के मध्य तक भी इस नुकसान की क्षतिपूर्ति के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए थे। इसलिए इसका असर लंबे समय तक होगा तथा ठोस उपाय अब भी नहीं किए गए तो कोविड काल के छात्रों का भविष्य प्रभावित हो सकता है।


छोटी कक्षाओं के बच्चों में दुष्प्रभाव ज्यादा: वर्धमान महावीर कॉलेज के कम्युनिटी मेडिसिन विभाग के निदेशक डॉ. जुगल किशोर ने कहा कि शुरुआती एवं छोटी कक्षाओं के बच्चों में यह दुष्प्रभाव ज्यादा हो सकते हैं।


नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत

शोध में सुझाया गया है कि सरकारों को इस समस्या से निपटने के लिए नीतिगत निर्णय लेने होंगे तथा बच्चों के सीखने की क्षति की भरपाई के लिए अतिरिक्त उपाय सुनिश्चित करने चाहिए। बता दें कि कोरोना का दौर तकरीबन खत्म हो चुका है, लेकिन इसके प्रभाव विभिन्न क्षेत्रों में नजर आ रहे हैं। मानव स्वास्थ्य पर इसके दुष्प्रभाव देखे गए हैं। अर्थव्यवस्थाएं अब भी कोविड महामारी के दुष्प्रभावों से उबर नहीं पाई है। यह अध्ययन बताता है कि छात्रों की एक पीढ़ी भी इससे हुई क्षति की पूर्ति करने में विफल रही है।