मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट जन्मतिथि साबित करता है तो डीएनए टेस्ट नहीं: हाई कोर्ट


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि किसी स्कूल से जारी मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट को जन्मतिथि निर्धारित करने के लिए पर्याप्त कानूनी प्रमाण माना जाता है। जहां ऐसा सर्टिफिकेट गलत साबित नहीं हुआ, वहां डीएनए टेस्ट जरूरी नहीं है।

यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने अपर्णा अजिंक्य फिरोदिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से दिया है। कोर्ट ने कहा कि जैसा कि अपर्णा अजिंक्य फिरोदिया में कहा गया है कि डीएनए टेस्ट का आदेश नियमित तरीके से नहीं किया जा सकता है।
इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में किया जाता है, जब संबंधित व्यक्ति के माता-पिता का निर्धारण करने के लिए कोई अन्य कानूनी आधार नहीं है। इस मामले में ऐसा दस्तावेज है, जिसे जन्मतिथि के निर्धारण के लिए पर्याप्त कानूनी प्रमाण माना जाता है, यानी मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट इसलिए डीएनए टेस्ट के लिए आदेश करने की कोई स्थिति नहीं है। मामले के तथ्यों के अनुसार मेरठ की मवाना तहसील क्षेत्र के याकूब के नाम विवादित जमीन थी। उसके तीन बेटे शकील, जमील व फुरकान हैं। बड़े बेटे शकील ने याची मोबिन के साथ शादी की थी। उसकी मृत्यु हो गई। याची ने कहा कि विवाह से एक बेटी का जन्म हुआ है। विपक्षियों ने आरोप लगाया कि शकील की मृत्यु के बाद याची की दूसरी शादी से बेटी का जन्म हुआ। यह आरोप भी लगाया गया कि याची ने अपने जीवनकाल के दौरान शकील की देखभाल नहीं की इसलिए उसने अपने दो भाइयों के पक्ष में वसीयत की। याचियों ने तीनों प्राधिकारियों यानी चकबंदी अधिकारी, एसओसी और चकबंदी उप निदेशक के समक्ष अपने दावों का असफल विरोध किया।